आयोजन: परसाई जन्मशती पर गिरीश पंकज ने कहा-सामाजिक परिवर्तन की जमीन तैयार करता है व्यंग्य
- हिन्दी व्यंग्य और परसाई संगोष्ठी
- वरिष्ठ साहित्यकारों ने रखे सारगर्भित उद्गार
- व्यंग्यात्मक रचनाएं सुनाकर श्रोताओं को किया मंत्रमुग्ध
डिजिटल डेस्क, नागपुर । व्यंग्य सामाजिक परिवर्तन की जमीन तैयार करता है। सामाजिक विसंगतियों पर प्रहार करते हुए उन विद्रूपताओं के कारणों और कारकों को बेनकाब करता है जो समाज को खोखला करते हैं। व्यंग्यकार हरिशंकर परसाई ने अपनी रचनाओं के माध्यम से सुंदरता की एक नई कसौटी परसाई जन्मशतीगढ़ी। यह बात वरिष्ठ साहित्यकार गिरीश पंकज ने परसाई जन्मशती के अवसर पर कही। वे राष्ट्रसंत तुकड़ोजी महाराज नागपुर विश्वविद्यालय के हिन्दी विभाग द्वारा आयोजित "हिन्दी व्यंग्य और परसाई" विषयक संगोष्ठी को सम्बोधित कर रहे थे। इस अवसर उन्होंने कहा कि व्यंग्यकार जागृति लाता है और समाज को झकझोरता है। व्यंग्य हमें वर्तमान में जीना सिखाता है।
कथनी और करनी में अन्तर आ गया है : संगोष्ठी के विशिष्ट अतिथि सावित्रीबाई फुले पुणे विश्वविद्यालय के हिन्दी विभागाध्यक्ष प्रो. विजय कुमार रोडे ने कहा कि आधुनिक युग में समाज में विसंगतियां बढ़ गई हैं। मनुष्य की कथनी और करनी में अन्तर आ गया है। ऐसी स्थिति में मनुष्य की चेतना के जागरण के लिए व्यंग्य साहित्य की महत्त्वपूर्ण भूमिका है। परसाई जी ने समाज को संवेदनशील और जागरूक बनाने के लिए निरंतर प्रयास किया। महात्मा गांधी अंतरराष्ट्रीय विश्वविद्यालय, वर्धा के दूरस्थ शिक्षा के सहायक निदेशक डॉ. प्रकाश नारायण त्रिपाठी ने कहा कि हरिशंकर परसाई मानवीय मूल्यों के गहन अन्वेषक थे। डॉ. रूपेश कुमार सिंह ने कहा कि व्यंग्य साहित्य को लोकप्रियता के शिखर पर पहुंचाने का कार्य परसाई ने किया।
सिंधु महाविद्यालय की हिन्दी प्राध्यापिका डॉ. सपना तिवारी ने कहा कि परसाई ने हिन्दी रचनात्मकता को एक नया आयाम दिया और लेखकीय नैराश्य को समाप्त किया। नागपुर के प्रसिद्ध व्यंग्यकार एवं कवि नीरज व्यास ने अपनी कविताओं के माध्यम से व्यंग्य के सूक्ष्म अंतर को समझाते हुए कहा कि व्यंग्य सामाजिक विसंगतियों की सर्जरी करता है। समापन सत्र में विचार व्यक्त करते हुए आयुर्वेदाचार्य डॉ. गोविन्द प्रसाद उपाध्याय ने कहा कि हरिशंकर परसाई समाज के सजग प्रहरी थे। उनकी रचनाओं के आकलन से ज्ञात होता है कि सामाजिक विसंगतियों को दूर करने की उनमें छटपटाहट थी। वे अत्यंत संवेदनशील लेखक थे। उन्होंने जोर देकर कहा कि करुणा और आक्रोश के समागम का नाम हरिशंकर परसाई है। प्रमुख अतिथि वरिष्ठ गीतकार डॉ. बुद्धिनाथ मिश्र ने अपनी व्यंग्यात्मक रचनाएं सुनाकर श्रोताओं को मंत्रमुग्ध कर दिया।
लेखन कर्म ही उनका परिचायक है : समापन समारोह की अध्यक्षता कर रहे नागपुर विश्वविद्यालय के मानविकी संकाय के अधिष्ठाता डॉ. शामराव कोरोटी ने अपने अध्यक्षीय उद्बोधन में कहा कि हरिशंकर परसाई का लेखन कर्म ही उनका परिचायक है। व्यंग्य साहित्य समस्याओं के समाधान का साहित्य है। धन्यवाद ज्ञापित करते हुए हिन्दी विभागाध्यक्ष डॉ. मनोज पाण्डेय ने कहा कि व्यंग्य की पूर्णता का प्रतीक हरिशंकर परसाई है। उनके व्यंग्य में मानवीय विकृतियों पर प्रहार भी है और मूल्य व्यवस्था निर्मित करने की तड़प भी। यही सरोकार हिन्दी व्यंग्य को विशिष्ट और पठनीय बनाता है।