नागपुर: मनोरोगियों की संपत्ति हड़पने की फिराक में रहते हैं रिश्तेेेेेेेेेेेेेेेदार
- 5 साल में 350 से अधिक मनोरोगियों का पुनर्वसन
- बेटे की ट्रेन से कटकर मृत्यु के बाद हुई मनोरोगी
डिजिटल डेस्क, नागपुर, चंद्रकांत चावरे| मनाेरोगी होने के अलग-अलग कारण होते हैं। दो मामलों में एक मां ने अपने बेटे की ट्रेन से कटकर मृत्यु देखी, तो मनोरोगी हुई। दूसरे में पिता मनोरोग से स्वस्थ हुआ, तो बेटा और भाई उसे ले जाने को तैयार नहीं थे। परिवार के प्राथमिक संबंध ही मनोरोगी को समझ पाते हैं, यदि प्राथमिक संबंधी नहीं हैं, तो चचेरे व अन्य रिश्ते पत्थर दिल हो जाते हैं। यह लोग मनोरोगी की संपत्ति हड़पने के चक्कर में रहते हैं। प्रादेशिक मनोचिकित्सालय में सालाना औसत 80 मरीजों का पुनर्वसन किया जाता है। इसमें कई तरह की समस्या आती है। मनोचिकित्सक व समाजसेवा अधीक्षकों की मदद से जब मरीज स्वस्थ हो जाता है, तो उसे परिजनों तक भेजा जाता है। पुनर्वसन करने के लिए दूसरे शहरों व प्रदेशों की पुलिस का पूरा सहयोग नहीं मिलने का अफसोस मनोचिकित्सालय के अधिकारियों ने जताया है।
केस 1- बेटे की ट्रेन से कटकर मृत्यु के बाद हुई मनोरोगी
55 साल की सुरेखा (बदला हुआ नाम) सड़क पर विक्षिप्त अवस्था में जिले की पारशिवनी पुलिस को मिली थी। न्यायालय के आदेशानुसार उसे 24 फरवरी 2023 को नागपुर के प्रादेशिक मनोचिकित्सालय में भर्ती कर उपचार शुरू किया गया। वह धीरे-धीरे सामान्य होने लगी। समाजसेवा अधीक्षक व मनोचिकित्सकों ने उससे बातचीत कर घर परिवार के बारे में जानकारी जुटाने का प्रयास किया। पता चला कि, वह बिहार के बलिया अंतर्गत सुकाय नामक गांव की थी। अधीक्षकों ने गूगल पर सर्च किया और उसके गांव का पता लगाया। पुलिस की मदद से परिजनों को फोटो भेजी, वीडियो कॉल पर बातचीत की। सुरेखा के परिवार में पति के अलावा एक बेटा, एक बेटी है। बताया गया कि, दो बेटे थे। दिवाली के दौरान पूरा परिवार ट्रेन से सफर कर रहा था। अचानक 22 साल के छोटे बेटे की आंखों के सामने ट्रेन से फिसलकर गिरने से कटकर मौत हो गई। यह घटना 2020 में हुई थी। इसका उसके दिमाग पर असर हुआ और वह एक दिन घर सेे गायब हो गई। बातचीत के बाद उसका बेटा परिजनों के साथ नागपुर पहुंचा। 11 नवंबर 2023 को सुरेखा को परिजन साथ ले गए।
केस 2- बेटा, पिता को घर ले जाने तैयार नहीं
जिले की हिंगना पुलिस ने न्यायालय के आदेशानुसार 50 साल के सुभाष (बदला हुआ नाम) मनोरोगी को 22 फरवरी 2024 को प्रादेशिक मनोचिकित्सालय में भर्ती कराया। उसके हाथ पर गोदना था। उपचार के बाद जब वह पूरी तरह स्वस्थ हो गया, तो उसके परिजनों का पता लगाने के लिए मनोचिकित्सक व समाजसेवा अधीक्षकों ने शुरुआत की। सुभाष ने बताया कि, वह मध्यप्रदेश के विदिशा के नया रामपुरा गांव का निवासी है। पुलिस की मदद से परिवार का पता लगाया गया। पता चला कि, परिवार में दो बड़े भाई, एक बेटा, पत्नी व बेटी है। वह करीब दो साल पहले घर छोड़कर निकल गया था। उसे पहले से मानसिक विकार था। सुभाष के घर छोड़ने के बाद पत्नी व बेटी भी कहीं चले गए। जब बेटे को व सुभाष के भाइयों को बताया गया कि, सुभाष स्वस्थ हो चुका है, उसे घर ले जाइए, लेकिन सगा बेटा और भाई इसके लिए तैयार नहीं हुए। उन्हें समझाया गया। अंतत: नियम-कानून का हवाला देकर उन्हें बुलाया गया। 20 मई 2024 को बेटा और भाई यहां आए और सुभाष को ले गए। तब तक सुभाष की पत्नी और बेटी की कोई जानकारी नहीं थी। इस मामले में पुलिस के पास गुमशुदा की शिकायत भी नहीं की गई थी।
केस 3 समस्याओं के बावजूद कर रहे पुनर्वसन
प्रादेशिक मनोचिकित्सालय ने 2023-24 में 74 महिला व 14 पुरुष मिलाकर कुल 88 मरीजों का पुनर्वसन किया है। पांच साल में 350 से अधिक मनोरोगियों को स्वस्थ होने के बाद घर भेजा गया है। समाजसेवा अधीक्षक कुंदा बिड़कर व संध्या दुर्गे इस कार्य में अहम भूमिका निभाती हैं। पुनर्वसन में कई तरह की अड़चनें आती हैं। कई बार मनाेरोगियों की भाषा समझ नहीं आती। दक्षिण भारत के हों, तो अधिक समस्या होती है। मनोराेगियों को पूछे गए सवालों का जवाब बराबर नहीं मिल पाता। दूसरे शहरों व प्रदेशों की पुलिस ऐसे मामलों में न के बराबर सहयोग करती है। नियमानुसार मरीज को 4 महीने से अधिक समय तक नहीं रखा जा सकता। परिजनों को लेकर जाना पड़ता है। मेंटल हेल्थ रिव्यू बोर्ड (एमएचआरबी) के अध्यक्ष न्यायाधीश होते हैं। इस कमेटी में मनोचिकित्सकों का समावेश होता है। मरीज के स्वास्थ्य व मानसिक स्वास्थ्य की जांच के बाद उसके पुनर्वसन का निर्णय लिया जाता है। प्रादेशिक मनोचिकित्सालय में 940 मरीजों को रखने की क्षमता है। इस समय यहां कुल 471 मरीज भर्ती हैं। इनमें पुरुष 261 व महिला मरीजों की संख्या 210 है।