प्रतिबद्धता: राज्यपाल पद से पुरोहित के इस्तीफे ने चौंकाया, कारण को लेकर लगाए जा रहे तर्क
- सिद्धांत के लिए प्रतिबद्ध
- राज्यपाल पद से पुरोहित के इस्तीफे ने चौंका दिया
- तर्क दिए जा रहे हैं
डिजिटल डेस्क, नागपुर. पंजाब के राज्यपाल व केंद्र शासित चंडीगढ़ के प्रशासक पद से बनवारीलाल पुरोहित के इस्तीफे ने राजनीतिक जानकारों को चौंकाया है। इस्तीफे के कारण को लेकर कई तर्क लगाए जा रहे हैं। देश की राजनीति में पहचान बनाने वाले नागपुर के प्रमुख जनप्रतिनिधियों में पुरोहित शामिल हैं। उनके व्यक्तित्व व बेबाकी को लेकर कई किस्से सुनाए जाते रहे हैं। ऐसे में यह भी तर्क लगाया जा रहा है कि उनका स्वभाव उनके पद को लेकर संकट तो नहीं बना। पुरोहित ने राष्ट्रपति को लिखे पत्र में इस्तीफे को लेकर लिखा है कि वे निजी कारणों व कुछ प्रतिबद्धताओं के कारण इस्तीफा दे रहे हैं। लिहाजा यह जानने का प्रयास किया जा रहा है कि निजी कारण और विशेषकर ऐसी कौन सी प्रतिबद्धता हो सकती है, जो उनके इस्तीफे का कारण बनी।
सिद्धांत के लिए प्रतिबद्ध
जहां तक पुरोहित की राजनीतिक पहचान का विषय है, वे नागपुर में भाजपा के पहले लोकसभा सदस्य चुने गए थे। भाजपा के प्रति एकनिष्ठ नहीं रहे। नागपुर में भाजपा के लोकसभा सदस्य रहते हुए पुरोहित ने भाजपा के तत्कालीन बड़े नेता प्रमोद महाजन व नितीन गडकरी का जमकर विरोध किया था। खनिज संबंधी जमीन का वह विवाद इतना बढ़ा था कि लालकृष्ण आडवाणी को नागपुर में आकर पुरोहित से सुलह का प्रयास करना पड़ा था, लेकिन बात नहीं बनी थी। वर्ष 1980-82 में कांग्रेस में रहते हुए राज्य मंत्रिमंडल में शामिल रहे पुरोहित कांग्रेस के नेताओं से भी कई विषयों पर सत्ता की परवाह किए बिना कड़ी असहमति जताते रहे।
मंदिर निर्माण का आंदोलन तेज हुआ
1992 में अयोध्या में मंदिर निर्माण का आंदोलन तेज हुआ तो पुरोहित आंदोलन में शामिल हो गए। उस समय वे नागपुर से कांग्रेस के सांसद थे। मंदिर आंदोलन में शामिल होने के कारण पुरोहित को लोकसभा व कांग्रेस की सदस्यता गंवानी पड़ी थी। रामभक्त के तौर पर उनकी पहचान बनी, लेकिन राष्ट्रीय स्वयंसेवक संघ के कार्यकर्ता की पहचान नहीं बन पाई। अपने सिद्धांत के लिए प्रतिबद्ध रहे पुरोहित के बारे में अब यही जानने का प्रयास किया जा रहा है कि किस प्रतिबद्धता के कारण उन्होंने इस्तीफा दिया। उनके करीबी चुप हैं।