रंग मंच: थिएटर में लोगों की बढ़ रही रुचि, मिल रहा नेम और फेम, इंटरनेशनल स्तर पर पहचान

  • रंगमंच के कलाकारों ने नेशनल इंटरनेशनल स्तर पर बनाई पहचान
  • संतरा नगरी के कई कलाकारों ने फिल्मफेयर अवार्ड अपने नाम किया

Bhaskar Hindi
Update: 2024-04-05 10:51 GMT

डिजिटल डेस्क, नागपुर। हर मायने में विकास की ओर बढ़ रहा है, फिर चाहे वो एजुकेशन, हेल्थ या शहर का डेवलपमेंट हो। ऐसे में प्रोफेशनल फील्ड से अलग कलाकारों की भी एक दुनिया है, जहां उनके काम को नेशनल और इंटरनेशनल स्तर पर नेम-फेम मिल रहा है। फील्म ‘झुंड’ में अमिताभ बच्चन के साथ डॉन की भूमिका निभाने के लिए अंकुश गेडाम को फिल्मफेयर से नवाजा गया। उसी प्रकार ‘झाड़ीपट्टी’ के लोगों पर फिल्म बनाने और उसे बेहतरीन तरीके से पेश करने पर तृशांत इंगले ने भी फिल्मफेयर हासिल किया। ऋतुराज वानखेड़े ने ‘जयंती’ फिल्म में अहम भूमिका निभा कर अपनी अदाकारी से फिल्मफेयर अपने नाम किया। सांची जीवने ने ‘पैदागीर’ फिल्म में अहम किरदार निभाया और उन्हें 11वें दादासाहब फाल्के अवार्ड से सम्मानित किया गया। यह सभी कलाकार नागपुर के हैं। खास बात यह है कि इनमें से अधिकतर कलाकारों ने रंगमंच (थिएटर) से करियर की शुरुआत की है।

एक्टिंग की जड़ है थिएटर

ऋतुराज वानखेड़े, अभिनेता (जयंती फेम) के मुताबिक मेरे करियर की शुरुआत थिएटर से हुई है। जब हम प्रैक्टिस करते थे, तब सिर्फ प्रतियोगिताएं हुआ करती थीं, थिएटर का उतना कल्चर नहीं था। आज-कल मैं देख रहा हूं कि थिएटर में लोगों की रुचि बढ़ने लगी है, उन्हें अवसर मिलने लगे हैं। पहले थिएटर प्रतियोगिता पर निर्भर हुआ करता था, लेकिन अब ऐसा नहीं है। जो लोग महंगे एक्टिंग स्कूल, इंस्टिट्यूट में नहीं जा सकते, वह थिएटर का सहारा लेकर प्रैक्टिस करते हैं। लोग समझने लगे हैं कि थिएटर ही एक बेसिक ट्रेनिंग का माध्यम है, जिसमें सिर्फ वक्त देने की जरूरत है। मेरा मानना है कि आप कितनी भी फिल्म, टेलीविज़न और वेब सीरीज कर लें, लेकिन आखिर में थिएटर ही एक्टिंग की जड़ है।

पहचान की उम्मीद से अब हर दूसरे दिन नाटक की प्रस्तुति

तृशांत इंगले, अभिनेता और निर्देशक (झॉलीवुड फेम) के मुताबिक केवल नागपुर के ही नहीं, बल्कि दुनिया के किसी भी कोने के कलाकार हों, जो थिएटर से वास्ता रखते हैं, उन्हें पहचान मिल रही है। मैं बहुत खुश हूं कि मेरा शहर भी इसमें शामिल है। पहले थिएटर महीने में एक या दो बार हुआ करते थे, लेकिन जब से छोटे शहरों के कलाकारों को भी पहचान मिलने की उम्मीद जागी है, तब से अब नाटक की प्रस्तुति सप्ताह में हर दूसरे दिन हो रही है। अब सोशल प्लेटफार्म का चलन इतना बढ़ गया है कि लोगों को थिएटर के बारे में जानकारी मिलने लगी है।

सामाजिक बदलाव जरूरी

सांची जीवने, अभिनेत्री (पैदागीर फेम) के मुताबिक मैं बचपन से इस क्षेत्र से जुड़ी हूं। मेरे माता-पिता थिएटर आर्टिस्ट हैं। मैंने देखा है कि सालों काम करने के बाद भी यदि मेहनत को पहचान नहीं मिलती है, तो कैसा लगता है। कई थिएटर आर्टिस्ट या सामान्य लोग अपने बच्चों को इस क्षेत्र में भेजने से कतराते हैं, लेकिन अब इसकी तस्वीर बदल रही है। बहुत से थिएटर आर्टिस्ट के ग्रुप चल रहे हैं। युवा इन ग्रुप से जुड़ रहे हैं और लगन से काम कर रहे हैं। आप कितना भी सीख लें, नाम कमा लें। अगर आप अपने जड़ से जुड़ें हों, तो यह कामयाबी, उपलब्धि के मायने हैं। इससे सामाजिक बदलाव भी जरूरी है, तभी आपको मिल रहे अवार्ड्स की कीमत है।


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