Nagpur News: सत्ता में पहुंचते ही विदर्भ चंडिका मंदिर को भूल जाते हैं, जब पृथक विदर्भ बनेगा, तब होगा विसर्जन
- 51 साल से मूर्ति के विसर्जन का इंतजार आंदोलनों के लिए जलती रही मशाल
- विदर्भवादियों के कारण नहीं पहुंच सकी मंगल कलश यात्रा
Nagpur News : चंद्रकांत चावरे | यहां इतवारी स्थित शहीद चौक परिसर में 51 साल से मौजूद विदर्भ चंडिका मंदिर की अहमियत भी राजनीति से प्रेरित है। यहां से सत्ता की सीढ़ी चढ़ने के बाद वापस इस मंदिर में शीश नवाने की जहमत कोई नेता नहीं उठाता है। यह मंदिर आंदोलन करने वालों के लिए आस्था की जगह है, पर चुनाव के रहने तक। हर चुनावी दौर में यह मंदिर नेताओं के दिलो-दिमाग को झंझोरना शुरू कर देती है। विदर्भ राज्य निर्माण आंदोलन का प्रमुख केंद्र रहा यह मंदिर फिर से चर्चा में है। 2019 में राज्य में भाजपा गठबंधन ने बहुमत पाया था, लेकिन विदर्भ में भाजपा पिछड़ गई थी। 2024 के लोकसभा चुनाव में राज्य में भाजपा पिछड़ गई। विदर्भ में भाजपा दो सीट पर ही सिमट कर रह गई। लिहाजा, इस बार राज्य की सत्ता के लिए भाजपा और कांग्रेस विदर्भ की सीटों पर अधिक जोर लगा रही है। विदर्भ के 11 जिलों को मिलाकर पृथक विदर्भ राज्य के निर्माण की मांग 1938 से की जा रही है। पृथक विदर्भ की मांग को खारिज कर संयुक्त महाराष्ट्र की स्थापना की तैयारियां चल रही थीं। इसके चार दिन पहले विदर्भवादियों का आक्रोश चरम पर पहुंचा। आंदोलन का मुख्य केंद्र इतवारी शहीद चौक था। 1972 में लोकनायक बापूजी अणे के हाथों पृथक विदर्भ आंदोलन की शक्तिस्वरूपा के रूप में विदर्भ चंडिका की स्थापना की गई। यह मिट्टी की मूर्ति है।
पांच बार बने विधायक, दो बार सांसद
1960 से पृथक विदर्भ का आंदोलन उग्र होता गया। उस समय पृथक विदर्भ के आंदोलन का नेतृत्व करने वाले प्रमुख विदर्भवादी नेताओं में ब्रिजलाल बियाणी, राधामोहन शर्मा आदि शामिल रहे। समय के साथ उनकी संख्या बढ़ती गई। इस बीच विदर्भवीर के नाम से जांबुवंतराव धोटे ने आंदोलन को और बड़ा स्वरूप दिया। उन्हें विदर्भवीर कहा जाता था। विदर्भ के विविध मुद्दों को लेकर उनके जनांदोलन के लोकप्रिय बना दिया था। वे विधानसभा चुनाव में पांच बार जीते। 1971 और 1980 में नागपुर से सांसद बने। 2002 में विदर्भ जनता कांग्रेस की नागपुर में स्थापना की। उनकी उपलब्धि को नागपुर शहीद स्थापित विदर्भ चंडिका के समक्ष प्रण लेकर किए गए विविध जन आंदोलन का परिणाम माना जाता है।
जब पृथक विदर्भ बनेगा, तब होगा विसर्जन
जांबुवंतराव धोटे के जीते जी विदर्भ अलग नहीं हो सका। 83 साल की आयु में 18 फरवरी 2017 को उनका हृदयविकार से निधन हुआ। उनके बाद इस आंदोलन की उग्रता कम हुई, लेकिन अन्य विदर्भवादियों ने विदर्भ की आस का आंदोलन अब तक शुरू रखा है। इस आंदोलन का प्रेरणास्थल आज भी नागपुर के शहीद चौक में स्थापित विदर्भ चंडिका देवी है। 64 साल से यह मिट्टी की मूर्ति विदर्भ आंदोलन की साक्षी है। किसी भी संगठन या राजनीतिक पार्टी की विविध मांगों को लेकर होने वाले अधिकतर आंदोलन की शुरुआत इसी स्थान से शुरू हुई है। वैसे ही कोई भी विदर्भवादी नेता चुनाव लड़ता है तो वह पहले विदर्भ चंडिका के दर्शन करता है।
विदर्भवादियों के कारण नहीं पहुंच सकी मंगल कलश यात्रा
विदर्भवादियों का एक किस्सा, जिसने मुख्यमंत्री यशवंतराव चव्हाण को नागपुर में कदम रखने से रोक दिया था। संयुक्त महाराष्ट्र का मंगल कलश लेकर मुख्यमंत्री यशवंतराव चव्हाण आनेवाले थे। कलश यात्रा हाथी पर निकाली जानेवाली थी। विदर्भवादियों को यह कलश यात्रा रास नहीं आयी, इसलिए जिस हाथी पर कलश यात्रा निकाली जानेवाली थी, उसके पैर में पटाखें बांधकर जला दिये गए। इस घटना से प्रशासन डर गया। हाथी पर कलश यात्रा निकालने से रोक दिया गया। उधर जब इस घटना की जानकारी मिली, तो वह मंगल कलश नागपुर समेत विदर्भ के किसी भी जिले में नहीं लाया गया। संयुक्त महाराष्ट्र स्थापना की खुशी में वसंत साठे के नेतृत्व में एक शोभायात्रा निकाली गई। जब यह शोभायात्रा इतवारी के शहीद चौक विदर्भ चंडिका परिसर से गुजरने लगी, तो विदर्भवादियों ने उन्हें घेर लिया। उनके बीच युद्ध जैसी स्थिति हो गई। आंदोलकों को खदेड़ने पुलिस पहुंची। आंसू गैस छोड़ी गई। चार हजार लोगों को गिरफ्तार किया गया। उन्हें दूसरे शहर में ले जाने के लिए छह डिब्बे की ट्रेन का जुगाड़ किया गया था। नागपुर महानगर पालिका ने भी पृथक विदर्भ का प्रस्ताव मंजूर किया था, लेकिन इतने सालों में पृथक विदर्भ नहीं बन सका। इधर, विदर्भ चंडिका देवी की स्थापना स्थल को पक्के मंदिर का स्वरूप दिया गया। अब यह प्रेरणास्थल आमजनों की आस्था स्थल बना है। इसी मंदिर परिसर में अब भी विदर्भवादी अपनी पृथक विदर्भ की मनोकामना पूर्ति के लिए समय-समय पर आकर अपना संकल्प दोहराते हैं।