Nagpur News: प्रो. साईबाबा ने कहा था कौन लौटाएगा मेरी जिंदगी के 10 साल, काफी दिनों से थे बीमार

  • 7 महीने पहले जेल से छूटने के बाद नागपुर में हुई थी पत्रपरिषद
  • नक्सल समर्थक के आरोप से हाई कोर्ट ने किया था निर्दोष बरी
  • आदिवासियों के हक के लिए आवाज उठाना बना प्रमुख कारण

Bhaskar Hindi
Update: 2024-10-14 14:14 GMT

Nagpur News : दिल्ली विश्वविद्यालय के पूर्व प्रोफेसर जी. एन. साईबाबा (57) का शनिवार को निधन हो गया। साईबाबा पित्ताशय में संक्रमण और स्वास्थ्य संबंधी अन्य समस्याओं से पीड़ित थे। इसी के चलते उनका निधन हो गया। नक्सलियों से संबंधों के चलते वे 10 साल जेल में रहने के बाद मार्च 2024 में बॉम्बे हाई कोर्ट की नागपुर खंडपीठ ने प्रो. साईबाबा समेत 5 आरोपियों को निर्दोष बरी किया था। 7 मार्च को नागपुर सेंट्रल जेल से छूटने के बाद झांसी रानी चौक स्थित एक कार्यालय में उनकी पत्रपरिषद आयोजित की गई थी। प्रो. साईबाबा की नागपुर ही यह आखिरी पत्रपरिषद होगी। इसमें प्रो. साईबाबा ने कहा था कि, दिल्ली विश्वविद्यालय में प्रोफेसर था, उस समय मेरा करिअर पीक पर था, ऐसे में मुझ पर झूठा मामला चलाकर मुझे जेल भेजा गया। मेरी जिंदगी के यह 10 साल मुझे कौन लौटाएगा। साथ ही उन्होंने यह भी कहा था कि, देश के इतिहास में ऐसी पहली घटना होगी जहां खुद हाई कोर्ट ने दूसरी बार निर्दोष बरी करने का महत्वपूर्ण फैसला दिया है।

नक्सली समर्थक होने को लेकर उन्हें गड़चिरोली सत्र न्यायालय ने 7 मार्च 2017 को आजीवन कारावास की सजा सुनाई थी। साईबाबा के साथ ही 5 अन्य आरोपियों महेश तिरकी, पांडू नरोटे, हेम मिश्रा, प्रशांत राही और विजय तिरकी को भी कोर्ट ने सजा सुनाई थी। जिसके खिलाफ प्रा. साईबाबा और अन्य आरोपियों ने नागपुर खंडपीठ में याचिका दायर की थी। इस मामले में न्या. विनय जोशी और न्या. वाल्मिकी मेंजेस ने प्रा. जी. एन. साईबाबा समेत सभी आरोपियों को निर्दोष बरी किया। कोर्ट ने अपने आदेश में स्पष्ट किया कि, आरोपियों के विरोध में कार्रवाई करते हुए यूएपीए एक्ट के प्रावधानों का पालन नहीं किया गया। कोर्ट के आदेश के बाद प्रो. साईबाबा को नागपुर सेंट्रल जेल से रिहा कर दिया गया। इसके बाद आयोजित पत्रपरिषद में प्रो. साईबाबा ने अपनी बात रखी थी। इस पत्रपरिषद में प्रो. साईबाबा की पत्नी, भाई, एड. निहालसिंग राठोड प्रमुखता से उपस्थित थे।

प्रो. साईबाबा ने यह भी कहा था कि, 10 साल पहले न्या. सच्चर, आईएएस अधिकारी सुरेंद्र मोहन, प्रो. रणधीर सिंह जैसे लोकतांत्रिक लोग दिल्ली में मानवाधिकार के लिए काम कर रहे थे। उन्होने मुझे मानवाधिकार के हक के लिए सहयोग करने को कहा था। उस समय एक ओर ऑपरेशन ग्रीन हंट के तहत कार्रवाई की जा रही थी, वहीं दूसरी ओर आदिवासियों की जगह माइनिंग को देने को लेकर कई संगठन आवाज उठा रहे थे। तब देश और विदेश के मानवाधिकार संगठन ने इन सभी घटनाओं का डॉक्यूमेंटेशन करने को कहा था। इन आदिवासियों के हक और मानवाधिकार के लिए आवाज उठाना मेरे गिरफ्तारी का प्रमुख कारण बना। लोगों के हक ले लिए उठ रही आवाज को दबाते हुए झूठे आरोप लगाकर मुझे जेल भेजा गया।

प्रो. साईबाबा ने सेंट्रल जेल में उचित चिकित्सा ना मिलने का दावा भी किया था। मुझ पर झूठे सबूतों के आधार पर झूठा मामला चलाया गया। 10 साल तक मुझे जेल में रखा गया। जब में जेल गया तो सिर्फ व्हीलचेयर पर था। लेकिन वहां उचित चिकित्सा ना मिलने से, बाथरूम और टायलेट के लिए जाना भी मेरे लिए मुश्किल था। एक तरह से मेरे साथ क्रूरता ही की जा रही थी। अगर 50 प्रतिशत भी संविधान का सही अमल हो तो ऐसी घटना रोकी जा सकेगी।

 

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