Nagpur News: जिएं तो जिएं कैसे, हवा खराब और पानी बेकार, आबादी का 0.5% ही पर्यावरण को लेकर गंभीर

  • नेशनल पॉल्यूशन कंट्रोल डे पर विशेष
  • प्रदूषण पर नियंत्रण का जुनून जरूरी
  • सीवेज ट्रीटमेंट में 70% सफल सॉलिड वेस्ट अभी बड़ा सवाल

Bhaskar Hindi
Update: 2024-12-02 14:31 GMT

Nagpur News. हमारे युग की सबसे बड़ी विपत्तियों में से सबसे बड़ा है प्रदूषण, जो न केवल जलवायु परिवर्तन पर तेजी से प्रभाव डाल रहा है, बल्कि बढ़ती रुग्णता और मृत्यु दर का भी कारण है। ऐसे कई प्रदूषक हैं, जो मनुष्यों में बीमारी के प्रमुख कारक हैं। प्रदूषण, पर्यावरण और सार्वजनिक स्वास्थ्य के लिए एक गंभीर खतरा है।

आ रही जागरूकता, मगर धीरे-धीरे

आज नेशनल पॉल्यूशन कंट्रोल डे यानी राष्ट्रीय प्रदूषण नियंत्रण दिवस है। इस दिन सख्त पर्यावरणीय नियमों को बढ़ावा देकर और व्यक्तियों और उद्योगों से समान रूप से जिम्मेदार व्यवहार को प्रोत्साहित किया जाता है। देश को स्वच्छ और सुंदर बनाने के उद्देश्य से विभिन्न अभियान चलाए जाते हैं। इसमें नागपुर भी सहभागी होता है। लोगों में जागरूकता के लिए मैराथन, वॉकथॉन, कल्चरल प्रोग्राम, ड्रामा और कैंपेन चलाए जाते हैं। नतीजा आज यूथ पर्यावरण के प्रति जागरूक हो रहा है। हर कॉलेज में युवाओं का एक क्लब होता है, जो एक्टिविटी में पर्यावरण के प्रति जागरूकता' का एक कार्यक्रम जरूर शामिल करता है।

सीवेज के पानी का पुनर्चक्रण और पुनः उपयोग

आगामी दशक में भारत में जल संकट गंभीर स्तर पर पहुंचने की आशंका है। नीति आयोग के अनुसार, 2030 तक देश इतिहास के अपने सबसे खराब जल संकट का सामना कर सकता है, क्योंकि पीने योग्य पानी की मांग आपूर्ति से अधिक हो जाएगी। भारत की लगभग 40% जल आपूर्ति भूजल संसाधनों से आती है, जो "अस्थायी दरों’ पर समाप्त हो रही है। सही समाधान सीवेज के पानी का पुनर्चक्रण और पुनः उपयोग है।

प्रयास सराहनीय, लेकिन कसर है

नागपुर में भी सीवेज के पानी की फिर से इस्तेमाल लिए भांडेवाडी में एक सीवेज ट्रीटमेंट प्लांट (एसटीपी) है। यह प्लांट शहर से निकलने वाले सीवेज को साफ करता है और इसे निपटान, कृषि उपयोग या घरेलू उपयोग के लिए सुरक्षित बना रहा है। यह शहर के निवासियों और व्यवसायों द्वारा उत्पन्न 70% से अधिक सीवेज के पानी का पुनर्चक्रण कर रहा है।

हर दिन जनरेट होता है 650 एमएलडी सीवेज : ग्रीन विजिल फाउंडेशन के कौस्तुभ चटर्जी ने बताया कि वर्तमान में शहर 650 एमएलडी सीवेज हर दिन जनरेट करता है, जिसमें से मनपा का 200 एमएलडी एसटीपी, महाजनको का 135 एमएलडी एसटीपी और बाकी छोटे-बड़े 150 एमएलडी एसटीटी ऐसे कुल मिलाकर 485 एमएलडी एसटीपी है, जो सीवेज के पानी को फिर से इस्तेमाल के लायक बनाते हैं। मतलब 100 एमएलडी से अधिक का सीवेज हम आज भी पीली नदी, पोहरा नहीं और नाग नदी में बहा रहे हैं। 70% प्रतिशत सीवेज को हम एसटीपी के जरिये फिर से इस्तेमाल कर रहे हैं।

सॉलिड वेस्ट ट्रीटमेंट प्लांट जरूरी

कौस्तुभ चटर्जी, पर्यावरण विश्लेषक के मुताबिक शहर में 1250 मीट्रिक टन सॉलिड वेस्ट जनरेट होता है। कुछ लोग सेग्रीगेशन करते है, लेकिन ज्यादातर लोग इसे अलग नहीं करते। सबसे बड़ी बात है कि हमारे पास, सॉलिड वेस्ट ट्रीटमेंट प्लांट नहीं है। जब तक एक सॉलिड वेस्ट ट्रीटमेंट प्लांट नहीं होगा, शहर स्वच्छता रैंकिंग में ऊपर नहीं आ सकता।

वायु प्रदूषण

नागपुर का डाटा देखें तो एक्यूआई 200 के आस-पास तक पहुंच रहा है। हर बार यह पीएम यानी पर्टिक्युलेटेड मैटर के ऊपर-नीचे होने से ही जा रहा है। या तो पीएम 10 या पीएम 2.5 गड़बड़ कर रहा है। कभी इतना बढ़ जा रहा है, कि हम पॉल्यूटेड सिटी में शामिल होने की स्थिति में आ जाते हैं।

कारण : नागपुर के चारों तरफ थर्मल पवार प्लांट्स हैं। शहर में घरों का कंस्ट्रक्शन, रोड कंस्ट्रक्शन जारी है। सबसे अहम खुलेआम कचरा जलाया जा रहा है। इस वजह से पीएम में उछाल स्वाभाविक है।

जल प्रदूषण

नागपुर में जितने भी तालाब हैं, उनका पानी इंसानी उपयोग के लायक नहीं है। पीना तो दूर, नहाने लायक भी नहीं है। एक भी वाटर बॉडी ऐसी नहीं है जो आज साफ है। गांधी सागर तालाब, नायक तालाब, लेंडी तालाब और पुलिस लाइन टाकली तालाब की हालत दिनदिन खराब होती जा रही है।

कारण : अधिकतर तालाबों में सीवेज को एंट्री मिलती है। अंबाझरी में जलकुंभी भी इसका एक बड़ा कारण है। सीवेज में नाइट्रोजन फॉस्फोरस होता है। जो इसके लिए फूड का काम करता है, इसलिए वह बढ़ता जा रहा है।

भू-जल

पहले हर घर में एक कुआं होता था, 6 से 8 लोगों का जीवन यापन होता था। अब बहुमंजिला इमारत बना दी गई है और 200 लोग रहने आ गए। अब वो कुआं नहीं रहा, बोर डाला गया। बोर ग्राउंड वाटर को और नीचे करते जा रहे हैं। 30 साल भूजल कम गहराई में आसानी से मिलता था, अभी बहुत नीचे जाकर भी पानी नहीं मिलता। भूजल की स्थिति भी गंभीर है।

ध्वनि प्रदूषण

नागपुर में ध्वनि प्रदूषण उतना है नहीं, क्योंकि नागपुर के आस-पास में इंडस्ट्री नहीं है। यह कभी कभी होता है जैसे दिवाली हो, न्यू ईयर हो या फिर इंडिया क्रिकेट मैच जीती हो तब। शादी ब्याह में होता है। ट्रैफिक नॉइज़ की वजह से ध्वनि प्रदूषण हो रहा है।

कारण : इसकी वजह है कि नागपुर के सिग्नल जो है वह सिंक्रोनाइज्ड नहीं है। जिस वजह से उसे हर चौक पर रुकना पड़ता है और गाड़ी ज्यादा धुआं छोड़ती है और हॉर्न बजता है।

यह है हमारी विडंबना

ग्रीन लिविंग प्रैक्टिसेस की बात की जाए तो अभी भी बहुत कुछ करना बाकी है। हम सिर्फ पर्यावरण संरक्षण की बातें बोलते हैं, करते नहीं है। नए नए कपड़े खरीदते हैं, और हम यह भूल जाते हैं कि कितना रिसोर्सेज खर्चा हो रहा है उसे बनाने और घर तक पहुंचने के लिए। हम खाना वेस्ट करते हैं। हमें हर चीज नई चाहिए, हम किसी से मांगना नहीं चाहते। यही है कि हम ग्रीन लिविंग प्रैक्टिसेस अपना नहीं रहे हैं। शहर की पॉपुलेशन का सिर्फ 0.5 प्रतिशत पर्यावरण की बात करता है।

यह तो चक्र है

ई-रिक्शा से वायु प्रदूषण कम होगा, ऐसा नहीं है। ई-रिक्शा लिया गया था कि सोलर पर चलेगा, प्रदूषण कम करेगा, ऑटो रिप्लेस करेगा। अभी सभी ई-रिक्शा वाले चार्जिंग घर के इलेक्ट्रिसिटी पर कर रहे हैं। इलेक्ट्रिसिटी मतलब आप थर्मल पावर प्लांट की इलेक्ट्रिसिटी ले रहे हैं। वह सबसे ज्यादा प्रदूषित करने वाला माध्यम है।


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