जोंक से त्वचा रोग का इलाज करा रहे हैं अधिकतर युवा
- बाहर से खरीदते हैं जाेंक
- संक्रमण का खास ध्यान
- समुपदेशन के बाद उपचार
डिजिटल डेस्क, नागपुर, चंद्रकांत चावरे| आयुर्वेदिक उपचार की प्राचीन पद्धति का उपयोग शहर के आयुर्वेदिक अस्पतालों में होने लगा है। शासकीय आयुर्वेदिक महाविद्यालय व अस्पताल में जाेंक (कृमि प्रजाति का एक जीव) से त्वचा व बालों के विविध विकार का उपचार किया जा रहा है। अस्पताल में हर महीने 110 से अधिक पीड़ितों का इलाज किया जा रहा है।
बाहर से खरीदते हैं जाेंक
उपचार पद्धति के लिए अस्पताल को बाहर से जाेंक खरीदने पड़ते हैं। एक जोंक की कीमत कम से कम 200 रुपए बताई गई है। अस्पताल को उपचार के लिए अौसत 3 से 4 हजार रुपए खर्च करने पड़ते हैं। एक मरीज को चार से पांच बार उपचार करवाना पड़ता है। एक बार में कम से कम 15 मिनट व अधिकतम 45 मिनट तक जोंक को चिपकाकर रखना पड़ता है। इसके बाद रक्त संचार तेज हो जाता है। उपचार करवाने वालों में दाद, खुजली, मुंहासे और गंजेपन की समस्या वाले मरीज अधिक होते हैं।
जहां जमता रक्त वहां छोड़ते जाेंक
गंजेपन को दूर करने के लिए सबसे पहले सिर के बाल साफ किए जाते हैं। जहां बाल झड़ रहे हैं या काफी समय से नहीं उग रहे, वहां जोक को रखा जाता है। प्रभावित हिस्से के खराब रक्त को जोंक चूस लेते हैं। इससे सिर के अंदर बाल उगाने वाला न्यूट्रीशियन मिलने लगता है। इससे पहले जोंक को हल्दी पानी में रखा जाता है। इससे रक्त अवशोषित करने की उसकी क्षमता बढ़ जाती है। लकवा में जहां रक्त जम जाता है, वहां इन्हें छोड़ा जाता है।
संक्रमण का खास ध्यान
जाेंक की विशेषता यह होती है कि उसके लार में हिरुडिन नामक एंजाइम होता है, जो रक्त में थक्का नहीं जमने देता। एक बार में जोंक 5 मिली लीटर खून चूसने की क्षमता रखते हैं। यह प्रक्रिया निश्चित अवधि में कई बार करनी पड़ती है। जब तक प्रभावित अंग से दूषित रक्त को पूरी तरह चूस नहीं लिया जाता, तब तक उपचार शुरू रहता है। दूषित रक्त खत्म होने के बाद स्वच्छ रक्त का प्रवाह होता है। संक्रमण न हो, इसके लिए एक जोंक का एक ही मरीज के लिए प्रयोग किया जाता है। दूषित रक्त चूसने के बाद उसको उल्टी कराई जाती है, ताकि जाेंक मुंह से दूषित रक्त बाहर निकाल सके।
समुपदेशन के बाद उपचार
डॉ. लुईस जॉन, निवासी वैद्यकीय अधिकारी, मेडिकल अस्पताल के मुताबिक पिछले कुछ सालों से इस पद्धति से उपचार किया जा रहा है। हजारों मरीज इस उपचार पद्धति का लाभ उठा चुके हैं। इसमें त्वचा रोग, बालों की समस्या, लकवाग्रस्त मरीजों का समुपदेशन के बाद उन्हें इस पद्धति से उपचार दिया जाता है। यह आयुर्वेद पर आधारित प्राचीन पद्धति है। हमारे यहां आने पर मरीजों को इस उपचार पद्धति के संबंध में मार्गदर्शन किया जाता है।
त्वचा विकार के 50 से अधिक मरीजों का उपचार
शासकीय आयुर्वेदिक महाविद्यालय व अस्पताल में आयुर्वेद पर आधारित अलग अलग पद्धतियों से बीमारियों का उपचार किया जाता है, लेकिन त्वचा रोग, बालों की विविध समस्याएं, पैरालिसिस के बाद मस्तिष्क में जमने वाली रक्त की गांठ आदि समस्याओं में जाेंक का उपयोग किया जाता है। इसके लिए पहले मरीजाें का समुपदेशन किया जाता है। अनुमति के बाद विकार ग्रस्त हिस्से में जोंक चिपकाकर दूषित रक्त मोक्षण किया जाता है। इसे लीच थेरेपी कहा जाता है। अस्पताल में हर महीने त्वचा से संबंधित विविध बीमारियों के 50 से अधिक मरीजों का उपचार किया जाता है। वहीं बालों की समस्या से ग्रस्त औसत 25 मरीज व लकवा के 25 मरीजों का उपचार हो रहा है। इसके अलावा हृदयरोग में खून के थक्के जमने पर भी इस उपचार पद्धति का प्रयोग किया जा रहा है। दावा है कि इस पद्धति से मरीजों को कम समय में तेजी से लाभ मिलता है। त्वचा व बालों के विकार से संबंधित मरीजों में अधिकतर युवा 30 से 40 आयु वर्ग के होते हैं।