नागपुर: मेडिकल में वार्ड बॉय की जगह परिजन खींचते हैं स्ट्रेचर

  • परिजन खींचते हैं स्ट्रेचर
  • करना पड़ रहा वार्ड बॉय का काम
  • कैसी अव्यवस्थाएं

Bhaskar Hindi
Update: 2023-12-18 13:13 GMT

डिजिटल डेस्क, नागपुर, अभय यादव | एशिया के सबसे बड़े अस्पताल में शुमार मेडिकल कॉलेज व अस्पताल में कुछ ही दिन पहले महामहिम राष्ट्रपति ने अमृत महोत्सव में शिरकत की थी। इस दौरान अस्पताल में मरीजों की देख-रेख में कोई कोर-कसर नहीं छोड़ी जा रही थी, लेकिन अब फिर वहीं पुराने ढर्रे पर काम शुरू हो गया है। अस्पताल में मरीज को लेकर आने वाले परिजनों को खुद ही स्ट्रेचर व व्हील चेयर खींचना पड़ रहा है। एेसे में अगर मरीज स्ट्रेचर या व्हील चेयर से कोई नीचे गिर जाता है, तो कौन जिम्मेदार होगा? ऐसा सवाल मरीजों को लेकर आने वाले परिजन अस्पताल प्रशासन से कर रहे हैं। प्रधानमंत्री ने कहा था कि, देश में सरकारी अस्पतालों का निजीकरण करना जरूरी हो गया है, अब लगता है, वह समय आ गया है। जब तक सरकारी अस्पतालों का निजीकरण नहीं किया जाता, ये अस्पताल ऐसे ही ढर्रे पर चलते रहेंगे। मेडिकल अस्पताल में गरीब तबके के लोग दूर-दराज से आते हैं। इनके ठहरने की उचित सुविधा तक नहीं है। कई मरीजों के परिजन पेड़ों के नीचे रात काटने पर मजबूर होते हैं।

स्ट्रेचर व व्हील चेयर पर ढोते हैं मेडिकल का सामान

सूत्रों के अनुसार मेडिकल में बाहर से आने वाले मरीजों को कई बार स्ट्रेचर व व्हील चेयर तक नसीब नहीं होती। पिछले दिनों एक पिता अपनी मासूम बेटी को मेडिकल में लेकर पहुंचा, तो स्ट्रेचर नहीं मिला, तो वह बेटी को कंधे पर लादकर सलाइन की बोतल लगाकर पत्नी के साथ कभी इस वार्ड तो कभी उस वार्ड के चक्कर लगाता रहा। निजी अस्पताल में हर कदम पर मार्गदर्शन करने वाले लोग रहते हैं, लेकिन मेडिकल अस्पताल में ऐसी कोई व्यवस्था नहीं है। हां, अस्पताल में मरीज को भले ही समय पर आसानी से स्ट्रेचर न मिले, लेकिन वार्ड बॉय को स्ट्रेचर या व्हील चेयर पर मेडिकल का सामान ढोते देखा जा सकता है। कई बार मरीज के परिजनों से इस बात को लेकर तू-तू, मैं-मैं होते भी देखा जा सकता है। वरिष्ठ अधिकारी एसी के कमरे से बाहर निकलेंगे, तब गरीब मरीजों के दर्द का एहसास होगा।

आखिर कहां ड्यूटी करते हैं

सूत्रों के अनुसार मरीजों के परिजन हर बार यही सवाल उठाते हैं कि, मेडिकल में वार्ड बॉय की नियुक्ति गरीब मरीजों की सेवा के लिए सरकार ने की है, लेकिन आखिर वे ड्यूटी कहां करते हैं। जब भी कोई मरीज अस्पताल में आता है, तो वार्ड बॉय को ढंूढते रह जाओगे, वाली कहावत चरितार्थ होती नजर आती है। वार्ड बॉय कहीं नजर नहीं आते हैं। मरीज के परिजनों को खुद स्ट्रेचर या व्हील चेयर पर उसे खींचकर कभी एक्सरे कक्ष, तो कभी इमरजेंसी वार्ड, तो कभी वार्ड में रेफर करने पर खुद ही ले जाना पड़ता है। नागपुर में जैसे-जैसे बड़े-बड़े अस्पतालों का मकड़जाल फैल रहा है, मेडिकल अस्पताल में व्यवस्था और लचर व निष्क्रिय होती जा रही है।

300 से अधिक वार्ड बॉय

सूत्रों के अनुसार मेडिकल अस्पताल में 60 से अधिक वार्ड हैं। जानकारी के अनुसार प्रत्येक वार्ड में 5 से अधिक वार्ड बॉय की नियुक्ति है। यानी 300 से भी ज्यादा वार्ड बॉय हैं, बावजूद इसके मरीजों के परिजन मरीज को संबंधित वार्ड या डॉक्टर के पास स्ट्रेचर व व्हील चेयर पर खुद ले जाने के लिए मजबूर हैं। आखिर वार्ड बॉय कहां लापता हो जाते हैं, यह सवाल मरीज को लेकर आने वाले हर परिजन और रिश्तेदार की जुबान पर रहता है। जानकारों की मानें तो किसी भी अस्पताल में स्ट्रेचर या व्हील चेयर पर मरीज को ले जाने का अपना एक तरीका होता है, गलत तरीके से अगर स्ट्रेचर या व्हील चेयर को खींचा जाए, तो मरीज नीचे गिरने से जख्मी हो सकता है। ऐसे में कौन जिम्मेदार होगा। सवाल यह उठता है कि, आखिर अस्पताल के डॉक्टर ये क्यों नहीं पूछते कि, जब परिजन स्ट्रेचर या व्हील चेयर पर खींच रहे हैं, तो वार्ड बॉय कहां ड्यूटी कर रहे हैं। पीडित मरीजों के परिजनों का कहना है कि अगर डॉक्टर चाहें तो यह अंधेर गर्दी मेडिकल से खत्म हो सकती है। 



Tags:    

Similar News