नागपुर: मेयो अस्पताल में कर्मचारी-अधिकारी मनमानी पर उतरे, घोटालेबाज भी सक्रिय
- मेयो में 12 दिन में तीन प्रभारी अधिष्ठाता
- बिगड़ रही व्यवस्था
डिजिटल डेस्क, नागपुर. राज्य भर के सरकारी अस्पतालों में दवाओं के साथ ही अन्य चिकित्सा सामग्री और सुविधाओं को लेकर माहौल गर्माया हुआ है। नांदेड़ व संभाजीनगर में मृत्यु का विषय और नांदेड़ के सरकारी अस्पताल के अधिष्ठाता के साथ सांसद द्वारा किए गए अशोभनीय बर्ताव का असर नागपुर में भी दिखाई दिया। राज्य के अनेक अस्पतालों व महाविद्यालयों में स्थायी अधिष्ठाता नहीं है। प्रभारियों के भरोसे कामकाज चल रहा है। सरकार द्वारा तबादला व पदोन्नति की जा रही है, वहीं रिक्त पदों की जिम्मेदारी प्रभारी को दी जा रही है। इस सारे चक्कर में सरकारी अस्पतालों की व्यवस्था बिगड़ रही है, जिसका असर मरीजों पर भी होने लगा है। इंदिरा गांधी शासकीय चिकित्सा महाविद्यालय व अस्पताल (मेयो) में 12 दिन में तीन प्रभारी अधिष्ठाता हुए हैं।
एक प्रभारी दूसरे को सौंप देता है प्रभार
मेयो अस्पताल में पूर्व अधिष्ठाता डॉ. संजय बिजवे के तबादले के बाद तीन प्रभारी अधिष्ठाता हो चुके हैं। 12 दिनों में तीनों ने इस प्रभार की जिम्मेदारी निभाई है। करीब 10 महीने पहले मुंबई के जेजे अस्पताल में सेवारत डॉ. संजय बिजवे को सरल सेवा से मेयो के अधिष्ठाता पद पर नियुक्ति दी गई थी। पिछले महीने उन्हें पदोन्नति देकर संभाजीनगर में सहसंचालक पद पर नियुक्त किया गया। उनके जाने से मेयो का अधिष्ठाता पद रिक्त हुआ। इसके बाद डॉ. भावना सोनवणे को प्रभारी अधिष्ठाता पद सौंपा गया। डॉ. सोनवणे ने 3 दिन जिम्मेदारी संभाली। उनके बाद डॉ. राधा मुंजे को प्रभार सौंपा गया। डॉ. मुंजे को अचानक किसी परिषद में हिस्सा लेने के लिए बाहर जाना पड़ा। उन्होंने अपना प्रभार डॉ. मकरंद व्यवहारे को सौंपा। अब यही प्रभारी अधिष्ठाता हैं। अब तो हाल यह है कि यहां किसी काम के लिए किसके पास जाना ओर किसे अधिष्ठाता मानना, यह समस्या पैदा हो चुकी है।
साल भर भी नहीं मिल रहा स्थायी अधिष्ठाता : मेयो में 2011 से 2015 तक अधिष्ठाता पद पर डॉ. प्रकाश वाकोड़े थे। उनके कार्यकाल में अनेक विकास कार्य और स्वास्थ्य सेवा में सुधार हुआ था। उनका तबादला हुआ तो उनके स्थान पर डॉ. मधुकर प्रचंड प्रभारी अधिष्ठाता बने। इसके 2 साल बाद डॉ. मीनाक्षी गजभिये ने अधिष्ठाता पद की जिम्मेदारी संभाली। 7 महीने में ही उनका तबादला हुआ। उनके बाद डॉ. पल्लवी साबले की अधिष्ठाता पद पर नियुक्ति हुई, लेकिन उन्होंने पदभार स्वीकार नहीं किया। बाद में डॉ. अजय केवलिया ने अधिष्ठाता पद की जिम्मेदारी निभाई। उनके बाद साल भर प्रभारी के भरोसे ही काम चलता रहा। 10 महीने कार्यकाल पूरा करने वाले डॉ. संजय बिजवे का हाल ही में पदोन्नति कर तबादला किया गया है। मेयो के इस हाल के कारण यहां की व्यवस्था बिगड़ चुकी है। यहां के कुछ कर्मचारी व अधिकारी मनमानी करते रहते हैं। घोटालेबाजों के फिर से सक्रिय होने की जानकारी सूत्रों ने दी है। इसलिए यहां स्थायी अधिष्ठाता का होना जरूरी है। बावजूद चिकित्सा शिक्षा व अनुसंधान विभाग मेयो के प्रति गंभीर नहीं है।