नागपुर: खून की कमी कैसे हो पूरी, साल भर में मात्र 21 हजार यूनिट ही संकलित

  • चाहिए था 42 हजार यूनिट रक्त
  • सरकारी में रक्तदान के प्रति रुझान हुआ कम
  • गरीब मरीजों को बाहर से रक्त खरीदनेे की मजबूरी
  • आवश्यकता के हिसाब से नहीं होता रक्त संकलन

Bhaskar Hindi
Update: 2024-01-02 14:55 GMT

डिजिटल डेस्क, नागपुर. सरकारी ब्लड बैंकों को लेकर आज भी लोगों की मानसिकता नहीं बदली है। परिणामस्वरूप इन ब्लड बैंकों में रक्त संकलन जरूरत के हिसाब से आधा ही हो पाता है। मेडिकल, मेयो, डागा व सुपर स्पेशलिटी अस्पताल की ब्लड बैंकों बीते साल 21 हजार यूनिट रक्त संकलन हुआ था, जबकि यहां हर साल 42 हजार यूनिट रक्त की आवश्यकता होती है। यानी आधे मरीजों को बाहर से रक्त खरीदना पड़ता है। कई कारणों के चलते सरकारी ब्लड बैंकों में रक्त संकलन का प्रमाण कम हुआ है। रक्तदान के क्षेत्र में काम करने वाली कुछ संस्थाएं हमेशा सरकारी ब्लड बैंकों में रक्तदान करने का आह्वान किया जाता है, लेकिन इसका खास असर होता दिखाई नहीं देता।

शिविरों के माध्यम से संकलन

सामान्यत: रक्त के आठ समूह मुख्य माने जाते हैं। इनमें चार जो पॉजिटिव ए प्लस, बी प्लस, ओ प्लस और एबी प्लस हैं। इन्हीं ग्रुप के चार निगेटिव ग्रुप है। सूत्रों के अनुसार सर्वाधिक पॉजिटिव ब्लड ग्रुप की आवश्यकता होती है। बीते साल मेयो में 5500, मेडिकल मंे 10500, डागा में 2500 और सुपर स्पेशलिटी में 2500 यूनिट रक्त संकलन हुआ। कुल मिलाकर 21000 यूनिट रक्त संकलन हुआ है। यह संकलन शिविरों, स्वैच्छिक रक्तदाताओं और संस्थाओं के माध्यम से आयोजित शिविरों के माध्यम से संकलन हुआ है।

आधे मरीज निजी ब्लड बैंकों पर आश्रित

सूत्रों ने बताया कि जितना रक्त संकलन होता है, उससे दोगुने रक्त की आवश्यकता होती है। ऐसे में गरीब मरीजों को बाहर से रक्त खरीदना पड़ता है। सरकारी अस्पतालों में उपचार करवाने वाले मरीज गरीब वर्ग के होते हैं। ऐेसे में उन्हें समय पर सरकारी ब्लड बैंकों से रक्त नहीं मिलने से निजी ब्लड बैंकों से महंगे दाम चुकाकर रक्त खरीदना पड़ता है। सरकारी में भर्ती मरीजों को मुफ्त में रक्त देने का नियम है, लेकिन पर्याप्त मात्रा में संकलन नहीं होने से आधे मरीजों को निजी ब्लड बैंकों में प्रति यूनिट 1800 से 2500 रुपए तक खर्च करना पड़ता है।

चाय-नाश्ते के लिए नहीं मिलता फंड

सूत्रों ने बताया कि रक्तदाताओं का रुझान सरकारी के मुकाबले निजी ब्लड बैंकों के प्रति अधिक है। निजी ब्लड बैंक रक्तदाताओं के नियमित संपर्क में रहते हैं। शिविर आयोजित करनेवाले संगठनों को सारी सुविधाएं उपलब्ध कराई जाती है। रक्तदाताओं को विविध उपहार दिया जाता है। सरकार ने सरकारी ब्लड बैंक में रक्तदाताओं के लिए 20 साल पहले 10 रुपए खर्च करने का नियम बनाया था। 20 साल पहले 2 रुपए की चाय, 3 रुपए की कॉफी और 2 या 3 रुपए का बिस्कुट का पैकेट मिलता था। 20 साल बाद अब चाय का दाम 7 से 10 रुपए, कॉफी 10 से 15 रुपए और बिस्कुट का पैकेट 10 रुपए हो चुका है। अप्रैल 2020 से यह फंड मिलना बंद हो गया है।

और यह भी बंद

पहले सरकारी ब्लड बैंकों में रक्तदान करनेवाले रक्तदाताओं को 10 साल पहले नैको (नेशनल एड्स कंट्रोल आर्गनाइजेशन), एसबीटीसी (स्टेट ब्लड ट्रांसफ्युजन कौंसिल) व एमसैक (महाराष्ट्र स्टेट एड्स कंट्राेल सोसायटी) इन संस्थानों से भी रक्तदाताओं के लिए निधि दी जाती थी। यह तीनों संस्थान एक-दूसरे से संलग्न संगठन है। इनके माध्यम से प्रति रक्तदाता 20 रुपए दिये जाते थे। 2015 से यह निधि भी मिलना बंद हो गई है। अब अस्पताल प्रबंधन खुद यह खर्च करता है। ऐसे कारणों से सरकारी ब्लड बैंकों में रक्तदाताओं की संख्या कम हो रही है। यहां बार बार रक्त की किल्लत से जूझना पड़ता है।

Tags:    

Similar News