नागपुर: रंग लाई मेहनत - बाल गृह के 27 बच्चों ने दी थी दसवीं की परीक्षा, सभी हुए पास

  • बचपन के दर्द को शिक्षा के माध्यम से देंगे मात
  • 20 लड़कियां व 7 लड़के अब चुनेंगे जीने की राह

Bhaskar Hindi
Update: 2024-05-28 10:08 GMT

डिजिटल डेस्क, नागपुर, चंद्रकांत चावरे | इस साल बाल गृह के कुल 27 बच्चों ने दसवीं बोर्ड की परीक्षा दी थी। सोमवार को आए नतीजों में सभी बच्चे पास हो गए हैं। इसमें 20 लड़कियां और 7 लड़के हैं। उन्होंने 70 से 78 फीसदी तक अंक प्राप्त किए हैं। बाल संरक्षण अधिकारी मुश्ताक पठान ने बताया कि उन्हें आगे की कक्षाओं में प्रवेश के लिए बाल गृह की तरफ से सुविधा उपलब्ध कराई जाएगी। कुछ दिनों पहले आए बारहवीं कक्षा के नतीजे में सुधार गृह के 25 बच्चों ने सफलता प्राप्त की थी। हर साल औसत 25 बच्चे दसवीं बोर्ड की परीक्षा में इतनी ही संख्या में बारहवीं बोर्ड की परीक्षा देते हैं। विभाग के सूत्रों के अनुसार बाल गृह के बच्चों की देखभाल, रहना-खाना व शिक्षा की व्यवस्था की जाती है। बच्चे छोटे होने पर उन्हें दत्तक देने के लिए भी प्रयास किये जाते हैं। इसके अलावा बच्चों के पुनर्वसन की दिशा में भी काम किया जाता है। 

केस 1 - संतोष (बदला हुआ नाम)

सोमवार को संतोष की दसवीं बोर्ड का नतीजा आया। वह 72 फीसदी अंक लेकर पास हुआ। सात साल पहले उसे पुलिस ने भीख मांगते हुए देखा। पुलिस ने उसे बाल गृह को सौंपा था। उस समय उम्र 8 साल थी। यहां आने के बाद स्कूल में दाखिला, रहने, खाने की सारी व्यवस्था की गई। अब 15 साल का हो गया है। पुरानी यादें साझा की तो पता चला कि पारिवारिक विवाद के चलते मां छोड़कर चली गई। कुछ समय बाद पिता किसी चक्कर में पड़कर अचानक रात को घर का सामान लेकर लापता हुए। खुद का घर नहीं था। एक बारदाने की झोपड़ी में रहते थे। जब मां-बाप दोनों चले गए तो पेट पालना मुश्किल हुआ। तब संतोष रोता हुआ झोपड़ी से निकला और भीख मांगकर दिन गुजारने लगा। आस थी कि मां-बाप मिलेंगे। कुछ दिन बीते, लेकिन कोई नहीं आया। तब अकेले ही जीना पड़ेगा यह सोचकर भीख मांगने की राह चुनी। अब वह दसवीं पास हो चुका है। शिक्षा के माध्यम से वह अपना भविष्य संवारने में लगा है। सरकारी मदद मिल रही है।

केस 2 - आशा (बदला हुआ नाम)

एक छोटे से घर में मां-बाप के साथ रहने वाली हंसती खेलती आशा को बड़ी उम्मीद थी कि वह मां-बाप के बीच सुरक्षित है। लेकिन ऐसा नहीं था। 9 साल की उम्र से ही उसके साथ मां-बाप अत्याचार करते रहे। कभी मारना-पीटना तो कभी खाना नहीं देना। कभी और किसी कारण से परेशान करना। ऊपर से बाहरी व्यक्ति की बुरी नजरें उसकी दुश्मन बनती जा रही थी। सार यही था कि बेटी होने के कारण वह मां-बाप को रास नहीं आ रही थी। सगे मां-बाप ने इतनी बेदर्दी की कि एक दिन आशा घर छोड़कर निकल गई। फुटपाथ पर सोना, भीख मांगना के सिवा कोई रास्ता नहीं था। कुछ दिन बीते। एक दिन पुलिस की नजर पड़ी। उसे बड़े ही लाड़-प्यार से अपने साथ ले गए। वह दोबारा अपने घर नहीं जाना चाहती थी। उसे सुधार गृह में रखा गया। स्कूल में दाखिल किया गया। सारी सुविधाएं मिलने लगी। 73 फीसदी अंक लेकर वह दसर्वी बोर्ड की परीक्षा पास हुई। अब वह शिक्षा को हथियार बनाकर अपने जीवन का संघर्ष विराम की दिशा में आगे बढ़ना चाहती है।

इन कारणों से बाल गृह में बच्चे

महिला व बालविकास विभाग अंतर्गत बाल गृह में रहने वाले हर बच्चे की एक दर्द भरी कहानी है। किसी न किसी कारण से उनके सामने ऐसी मजबूरी आ जाती है कि उन्हें घर छोड़ देना पड़ता है। कोई गुमशुदा होता है, कोई अत्याचार पीड़ित होता है, कोई मां-बाप बच्चों को छोड़ देते हैं, पारिवारिक विवाद के चलते बच्चों को प्रताड़ित किया जाता है, कभी मां घर छोड़ देती है तो कभी पिता चले जाता है, बच्चों को संभालने वाला कोई नहीं होता, लड़कियां नहीं चाहने वाले उसे भगा देते हैं। ऐसे अनेक कारणों से बच्चों पर भीख मांगने की नौबत आ जाती है। बाल गृह में रखे जाने वाले बच्चों का समुपदेशन कर, उनमें अपनेपन की भावना जगाई जाती है। उनके रहने, खाने व शिक्षा की व्यवस्था की जाती है। सरकारी खर्च पर उन्हें आवश्यक सामग्री उपलब्ध कराई जाती है। 21 साल के होने तक उनकी जिम्मेदारी उठाई जाती है। शिक्षित होने पर वे अपने लिए जीने की राह खोज लेते हैं। आगे की शिक्षा देने के लिए भी प्रयास किये जाते हैं। कुछ बच्चे उच्च शिक्षित होकर बड़े पदों पर सेवारत होते हैं। पुलिस द्वारा लाए गए बच्चे बाल कल्याण समिति की अनुमति से ही बाल गृह में रखे जाते हैं।

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