नागपुर लोकसभा: कभी गडकरी के करीबी ने दी थी मात, अब सीधे गडकरी से करने जा रहे हैं मुकाबला
- क्षेत्र के कांग्रेस उम्मीदवार विकास ठाकरे के बारे में जानिए
- 2017 में नागपुर मनपा के चुनाव में 151 में से केवल 29 सदस्य कांग्रेस के जीते थे
- मनपा के नेता प्रतिपक्ष रहते हुए भी ठाकरे अपनी सीट नहीं बचा पाए
डिजिटल डेस्क, नागपुर, रघुनाथसिंह लोधी। कांग्रेस ने लोकसभा चुनाव में नागपुर क्षेत्र से भाजपा उम्मीदवार नितीन गडकरी के विरुद्ध विधायक विकास ठाकरे को मैदान में उतारा है। ठाकरे ने कुछ दिन पहले ही कहा था कि वे लोकसभा चुनाव लड़ने की इच्छा नहीं रखते हैं। गडकरी की उम्मीदवारी से नागपुर क्षेत्र को चुनाव दृष्टि से वीआईपी क्षेत्र माना जाता है। ऐसे में यह जानने की उत्सकुता बढ़ जाती है कि आखिर विकास ठाकरे कौन हैं? क्या वे चुनावी मुकाबले में दमदारी के साथ ठहर पाएंगे? असल में विकास ठाकरे की पहचान डाऊन टू अर्थ नेता की है। करीब ढाई दशक के राजनीतिक जीवन में उन्होंने काफी संघर्ष किया है। ऐसे भी मौके आए जब उनका राजनीतिक भविष्य संकट में नजर आने लगा लेकिन वे राजनीति में डंटे रहे। खास बात है कि ठाकरे कभी गडकरी के करीबी से चुनाव में मात खा चुके थे, लेकिन अब वे सीधे गडकरी से मुकाबला करेंगे। ठाकरे की राजनीति नागपुर महानगर पालिका पर अधिक केंद्रित रही है। वर्चस्व की राजनीति में वे कांग्रेस के ही बड़े माने जाते रहे नेताओं के निशाने पर रहे। कांग्रेस के मंत्री रहे सतीश चतुर्वेदी, नितीन राऊत, अनीस अहमद ने उनके विरोध में मोर्चा भी खोला था।
वर्ष 2017 में नागपुर मनपा के चुनाव में 151 में से केवल 29 सदस्य कांग्रेस के जीते थे। उस चुनाव में मनपा के नेता प्रतिपक्ष रहते हुए भी ठाकरे अपनी सीट नहीं बचा पाए। उन्हें भाजपा उम्मीदवार दिलीप दिवे ने 800 मतों के अंतर से पराजित किया। दिलीप दिवे के भाई सुधीर दिवे नितीन गडकरी के जनसंपर्क अधिकारी रहे हैं। गडकरी परिवार की कंपनियों में सुधीर दिवे एमडी भी रहे हैं। चुनाव में पराजित होने के बाद ठाकरे की मनपा में इंट्री पर भी संकट आ गया। उन्होंने स्वयं को नामांकित सदस्य नियुक्त कराने का प्रयास किया। लेकिन कांग्रेस के ही नगरसेवकों ने उनकी राह में बाधा लायी। ठाकरे के विरोधी किशोर जिचकार को नामांकित सदस्य नियुक्त किया गया। ठाकरे ने बांबे उच्च न्यायालय की नागपुर खंडपीठ तक दौड़ लगायी। नामांकित सदस्य नियुक्ति के मामले पर रिट याचिका दाखिल की। लेकिन न्यायालय ने वह याचिका खारिज कर दी। यहां तक कि ठाकरे समर्थक संजय महाकालकर को मनपा में नेता प्रतिपक्ष पद से तत्काल हटाकर कांग्रेस के ही दूसरे गुट ने तानाजी वनवे को नेता प्रतिपक्ष नियुक्त कर दिया। यह मामला भी विभागीय आयुक्त कार्यालय तक पहुंचा लेकिन ठाकरे को ही मात खानी पड़ी।
2002 में पहली बार नगरसेवक चुने गए ठाकरे उसी वर्ष महापौर भी चुने गए थे। 2005 के बाद नागपुर मनपा की सत्ता में कांग्रेस नहीं लौट पायी। लेकिन ठाकरे का संघर्ष जारी रहा। 2009 में दक्षिण पश्चिम विधानसभा क्षेत्र में वे भाजपा उम्मीदवार देवेंद्र फडणवीस से पराजित हुए थे। 2014 में पश्चिम नागपुर विधानसभा क्षेत्र में पराजित हुए। लेकिन 2019 में उन्होने पश्चिम नागपुर में ही भाजपा उम्मीदवार सुधाकर देशमुख को पराजित कर दिया। कभी विदर्भ की राजनीति के कद्दावर नेता समझे जानेवाले दत्ता मेघे के समर्थक रहे सुधाकर देशमुख बाद में नितीन गडकरी के समर्थक बने थे। इस चुनाव को लेकर ठाकरे आत्मविश्वास के साथ कहते हैं- कोई क्षेत्र किसी का गढ़ नहीं होता है। नागपुर भाजपा का गढ़ रहता तो यहां 13 बार कांग्रेस लोकसभा चुनाव नहीं जीतती।