बॉम्बे हाईकोर्ट: महिला को आपत्तिजनक ईमेल भेजने वाले के खिलाफ दर्ज एफआईआर रद्द नहीं

  • अदालत ने कहा-सोशल मीडिया पर महिलाओं की गरिमा को ठेस पहुंचाने वाला पोस्ट करना अपराध
  • कोलाबा पुलिस स्टेशन का मामला

Bhaskar Hindi
Update: 2024-08-23 15:40 GMT

डिजिटल डेस्क, मुंबई। एक महिला को आपत्तिजनक ईमेल भेजने वाले व्यक्ति के खिलाफ दर्ज एफआईआर को बॉम्बे हाई कोर्ट रद्द करने से इनकार कर दिया। अदालत ने कहा कि सोशल मीडिया पर महिलाओं की गरिमा को ठेस पहुंचाने वाला पोस्ट करना अपराध है। अदालत ने इस बात पर जोर दिया कि कानून को आधुनिक तकनीकी गतिविधियों के अनुकूल होना चाहिए।

न्यायमूर्ति अजय गडकरी और न्यायमूर्ति नीला गोखले की पीठ के समक्ष दक्षिण मुंबई स्थित कोलाबा के कॉनॉट मेंशन इमारत के निवासी जोसेफ पॉल डिसूजा द्वारा दायर याचिका पर सुनवाई की। याचिकाकर्ता की ओर से पेश हुए वकील हरीश जगतियानी ने दलील दी कि कथित आपत्तिजनक ईमेल की सामग्री किसी भी तरह से कथित अपराधों के दायरे में नहीं आती है। आईपीसी की धारा 509 (छेड़छाड़) में किसी महिला की गरिमा को ठेस पहुंचाने के लिए बोले गए शब्द या इशारा करना शामिल है। जगतियानी ने दलील दी कि 'भाषण' शब्द का अर्थ हमेशा मौखिक उच्चारण' होता है, न कि लिखित शब्द जिसका अर्थ है कि 'भाषण' शब्द में ई-मेल का उल्लेख नहीं है।

इस पर पीठ ने कहा कि आधुनिक तकनीक ने सूचना के व्यापक दायरे को खोल दिया है। इसलिए आपत्तिजनक सामग्री वाला ईमेल भेजकर महिला का अपमान करना और भारतीय दंड संहिता की धारा 509 के तहत महिला की गरिमा को ठेस पहुंचाना है। यह ऐसे इशारों या कृत्यों से संबंधित है, जिनका उद्देश्य किसी महिला के लज्जा उत्पादन करना या उसका अपमान करना हो। यह एक संज्ञेय अपराध है, जिसमें मौखिक हमले शामिल हैं। यह केवल महिलाओं पर लागू होता है। यह अपराध बोलना या इशारे करना, वस्तुओं का प्रदर्शन करना और किसी महिला की निजता में दखल देना है। पीठ ने माना कि मामला प्रथम दृष्टया इंटरनेट पर अश्लील सामग्री प्रसारित करके एक महिला का अपमान करने के अपराधों का खुलासा करता है। हालांकि अदालत ने एफआईआर में लगाए गए एक महिला के साथ छेड़छाड़ करने और धमकाने जैसे कुछ आरोपों को हटा दिया।

क्या है पूरा मामला

शिकायतकर्ता ज़िनिया खजोतिया की कोलाबा पुलिस स्टेशन में दर्ज कराई गई एफआईआर में कहा गया था कि उनकी मां 1942 से सहकारी आवास सोसायटी की अध्यक्ष थीं। उनकी मां बूढ़ी थीं और सोसायटी के मामलों को देखने में असमर्थ थीं। इसलिए याचिकाकर्ता जोसेफ ने बिना चुने हुए ही अध्यक्ष का पद हथिया लिया और इमारत के अन्य निवासियों की कड़ी आपत्ति के बावजूद सोसायटी के काम में हस्तक्षेप करना शुरू कर दिया। इस मुद्दे के कारण कथित तौर पर जोसेफ ने ज़िनिया और सोसायटी के अन्य सदस्यों को तीन ईमेल भेजे, जिन्हें उनके (शिकायतकर्ता) वकील कुशाल मोर ने मामले को अश्लील प्रकृति का बताया, जिससे उनकी गरिमा को ठेस पहुंची। मोर ने कहा कि जोसेफ ने 80 वर्षीय विधवा ज़िनिया को जान से मारने की धमकी भी दी थी, इसके लिए उन्होंने मुंबई पुलिस के साइबर अपराध जांच सेल से संपर्क किया था।

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