समय पर इलाज जरूरी: सालाना 22 फीसदी बच्चे होते हैं इविंग सार्कोमा से पीड़ित, दिव्यांगता का खतरा टलेगा

  • 10 से 20 साल के बच्चों में बीमारी
  • लक्षण दिखते ही जांच कराना जरूरी

Bhaskar Hindi
Update: 2024-04-01 13:59 GMT

डिजिटल डेस्क, नागपुर, चंद्रकांत चावरे | शासकीय चिकित्सा महाविद्यालय व अस्पताल (मेडिकल) के कैंसर रोग विभाग में सालाना 22 फीसदी बच्चे ऐसे आते हैं, जिन्हें ‘इविंग सार्कोमा’ नामक बीमारी होती है। यह हड्‌डी का सॉफ्ट टिश्यू कैंसर है, जिसका समय पर इलाज नहीं होने पर बच्चों को पैरालिसिस या अन्य तरह की दिव्यांगता आने का खतरा रहता है। मेडिकल के कैंसर रोग विभाग में हर साल 2300 नए मरीजाें का पंजीयन होता है। इनमें विविध प्रकार के कैंसर के मरीज होते हैं। इन्हीं में बच्चों को होने वाले अलग-अलग कैंसर के प्रकार भी शामिल होते हैं। सालाना कैंसर से पीड़ित 90 बच्चों का पंजीयन होता है। इन 90 बच्चों में 20 बच्चे यानी 22 फीसदी को ‘इविंग सार्कोमा’ कैंसर होता है। इन बच्चों की आयु 10 से 20 वर्ष होती है। मेडिकल के कैंसर रोग विभाग से संलग्न एक स्वयंसेवी संस्था कैनकिड्स है, जो कैंसर रोग विभाग की निगरानी व मार्गदर्शन में काम करती है। ऐसे बच्चों की जांच व उपचार कैनकिड्स द्वारा मुफ्त में किया जाता है। समय पर उपचार होने से वे 2 साल के भीतर ही स्वस्थ हो जाते हैं।

जानें, ‘इविंग सार्कोमा’के बारे में : यह कैंसर हडि्डयों के सॉफ्ट टिश्यू के आसपास होता है। शरीर की मुख्य हड्डियों के साथ किसी भी हड्‌डी में यह हो सकता है। अधिकतर पेल्विक की हड्‌डी, छाती में, स्पाइन व कपाल के सॉफ्ट टिश्यू में होता है। इसे नजरअंदाज करने पर शरीर के अन्य हिस्साें में भी फैलने का खतरा बना रहता है। इसका फैलाव बोन मैराे, हार्ट, फेफड़े, किडनी पैर, हाथ, कूल्हे, रीढ़ या खोपड़ी की हड्‌डी, हाथ, पैर, गर्दन में होने की संभावना बनी रहती है। यदि समय पर इलाज नहीं होने पर पैरालिसिस या हमेशा के लिए दिव्यांगता का खतरा बना रहता है।

ऐसे लक्षण दिखाई दें तो जांच जरूरी : ‘इविंग सार्कोमा’ होने का मुख्य कारण ज्ञात हो पाना मुश्किल होता है, लेकिन अब तक यह सामने आया है कि कुछ क्रोमोसोमल बदलाव (डीएनए) सेल में क्षति पहुंचाते हैं, जिसे ईडब्ल्यूएसआर वन कहते हैं, यह सेल को तेजी से बढ़ाते हैं। यह स्वस्थ्य टिश्यू को नष्ट कर देते है। परिवार में अनुवांशिक बीमारी होने पर अन्य सदस्य प्रभावित होते हैं। लक्षणों में हडि्डयों में असह्य दर्द, बुखार, बार-बार फ्रैक्चर होना, दर्द होना, इन्फलेमेशन और ट्यूमर के पास नमी, थकावट, वजन में कमी, यदि ट्यूमर स्पाइन के आसपास हो तो कुछ मामलों में पैरालिसिस, टनटन की आवाज या अंग का सुन्न होना आदि लक्षण दिखायी देते है।

लक्षण दिखते ही जांच कराना जरूरी

डॉ. अशोक कुमार दीवान, कैंसर रोग विभाग प्रमुख, मेडिकल के मुताबिक कैंसर से संबंधित कोई भी लक्षण दिखने पर पहले विशेषज्ञ डॉक्टरों को या मेडिकल के कैंसर रोग विभाग में आकर जांच करवानी चाहिए। कैनकिड्स के माध्यम से भी बच्चों के कैंसर का पूरा इलाज किया जाता है। कैनकिडस् द्वारा पूरा खर्च उठाया जाता है। जल्द ही मेडिकल का अपना अत्याधुनिक कैंसर इन्स्टिटयूट का निर्माण हो रहा है। यहां अत्याधुनिक सुविधाएं होंगी। इससे विदर्भ, मध्य भारत के मरीजों को लाभ मिलेगा।

कीमोथेरेपी पहला इलाज : ट्यूमर की स्थिति जानने के लिए जांच, ब्लड टेस्ट, इमेजिंग टेस्ट, सीटी टेस्ट, एक्स से, एमआरआई, पीईटी-सीटी स्कैन, और रेडियोन्यूक्लाइड बोन स्कैन किया जाता है। बायोप्सी द्वारा निकाला गया कैंसर कोशिकाओं जेनेटिक टेस्टिंग के लिए भेजा जाता है। डीएनए में बदलाव को समझने के लिए जेनेरिक टेस्टिंग भी की जाती है। जांच के दौरान सामने आनेवाले परिणाम के आधार पर उपचार किया जाता है। इलाज के लिए बीमारी के चरण को देखते हुए 6 माह से 1 साल या इससे अधिक समय लगता है। कीमोथेरेपी इसका पहला इलाज है। इसके बाद मरीज दोबारा एमआरआई और सीटी स्कैन करवा सकता है। यदि कैंसर की कोशिकाएं निकल जाती है तो रेडिएशन थेरेपी के स्थान पर सर्जरी की सलाह दी जाती है। किसी भी कैंसर कोशिकाओं को निकालने के लिए रेडिएशन थेरेपी की सलाह दी जाती है।


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