नागपुर: डॉ. संजय दुधे ने कहा - अब जो दौर है उसमें हरित पृथ्वी समय की मुख्य मांग है
- रिसर्च पेपर प्रस्तुत किया
- ई-वेस्ट' में भारत तीसरे स्थान पर
डिजिटल डेस्क, नागपुर. पृथ्वी बड़े पैमाने पर जल और वायु प्रदूषण से जूझ रही है और इसके लिए हम सभी जिम्मेदार हैं। यदि हम स्वयं को प्रदूषण के प्रतिकूल प्रभावों से बचाना चाहते हैं, तो पृथ्वी को हरा-भरा और स्वच्छ बनाना समय की मांग है। यह विचार राष्ट्रसंत तुकड़ोजी महाराज नागपुर विद्यापीठ के प्र-कुलगुरु डॉ. संजय दुधे ने व्यक्त किए। एलएडी एंड श्रीमती आर.पी. महिला कॉलेज की ओर से हाल ही में "हरित पृथ्वी-स्वच्छ पृथ्वी' विषय पर राष्ट्रीय सम्मेलन का आयोजन किया गया था। सम्मेलन का उद्घाटन डॉ. दुधे ने किया।
दिखाई गई डॉक्यूमेंट्री
कार्यक्रम में पर्यावरण, वन और जलवायु परिवर्तन मंत्रालय की पूर्व सलाहकार वैज्ञानिक संचिता जिंदल, वुमेन एजुकेशन सोसाइटी के अध्यक्ष एड. सुनील मनोहर, प्राचार्य डॉ. पूजा पाठक, उपप्राचार्य डॉ. किरण पाटील, डॉ. रिजुता बापट एवं संयाेजक डॉ. दीपाली चहांदे उपस्थित थे। इस दौरान अतिथियों के हाथों से ई-प्रोसिडिंग का विमोचन किया गया। पिछले साल नागपुर में भारी बारिश से एलएडी कॉलेज को हुए आर्थिक नुकसान पर एक डॉक्यूमेंट्री दिखाई गई। सम्मेलन में देशभर से 150 शोधार्थियों ने भाग लिया।
रिसर्च पेपर प्रस्तुत किया
पर्यावरण के प्रति विद्यार्थियों में जागरूकता लाने के लिए महाविद्यालय द्वारा किए जा रहे प्रयास की डाॅ. दुधे ने सराहना की। पूजा पाठक ने स्वागत भाषण दिया, जबकि दीपाली चाहंदे ने सम्मेलन की अवधारणा के बारे में विस्तार से जानकारी दी। दोपहर में आयोजित तकनीकी सत्र में डाॅ. विशाल सरदेशपांडे, डाॅ. राहुल रालेगांवकर, डॉ. उत्तरा पांडे और मुकुंद पात्रिकर, प्रवीण मोते और डॉ. अनुपमा कुमार ने विभिन्न विषयों पर मार्गदर्शन किया। अगले सत्र में डॉ. तुतू सेनगुप्ता, डॉ. नंदा राठी, डाॅ. संगीता सहस्त्रबुद्धे ने अनुसंधान पेपर प्रस्तुत किया। समापन सत्र में वन संरक्षण विभाग की श्रीलक्ष्मी अन्नाबथुला और महिला शिक्षा सोसाइटी के उपाध्यक्ष डॉ. अविनाश देशमुख प्रमुख अतिथि थे। इस अवसर पर पर्यावरण के क्षेत्र में उल्लेखनीय कार्य करने वाले तनवीर मिर्जा, आनंद भवालकर और प्रशांत वानखेड़े को सम्मानित किया गया। मृणालिनी ठोंबरे ने रिपोर्ट प्रस्तुत की। संचालन मिनाक्षी कुलकर्णी और आभार प्रदर्शन सहसंयाेजक प्रचिति बगाडे ने किया।
"ई-वेस्ट' में भारत तीसरे स्थान पर
सभी पर्यावरणीय समस्याएं उपभोक्तावाद से संबंधित हैं और पृथ्वी पर संसाधनों का उपयोग दिन-प्रतिदिन बढ़ता जा रहा है। भारत की जनसंख्या तेजी से बढ़ रही है। इसके कारण कचरे की मात्रा भी बढ़ रही है। संचिता जिंदल ने बताया कि भारत दुनिया में प्लास्टिक कचरा पैदा करने में पांचवें और ई-वेस्ट पैदा करने में तीसरे स्थान पर है। कचरे का व्यवस्थापन, रीसाइक्लिंग, "टेक-मेक-टेक' का आर्थिक चक्र फायदेमंद हो सकता है। उन्होंने भारत सरकार के पर्यावरण मंत्रालय द्वारा क्रियान्वित की जा रही विभिन्न पर्यावरण संरक्षण योजनाओं की जानकारी दी।