डॉक्टर्स डे: डॉक्टरी पेशे के लिए नहीं, सेवा के लिए की - कमाई का हिस्सा दिव्यांगों के उपचार पर खर्च

  • मेलघाट पहुंच मानवसेवा को बनाया मूलमंत्र
  • 15 साल से कमाई का हिस्सा दिव्यांगों के उपचार पर खर्च

Bhaskar Hindi
Update: 2024-07-01 15:01 GMT

डिजिटल डेस्क, नागपुर, चंद्रकांत चावरे| राज्य का मेलघाट, आदिवासियों का दुर्गम क्षेत्र। माथे पर कुपोषण का कलंक। शिक्षा, स्वास्थ्य, संसाधन और मूलभूत सुविधाओं से दूर। आधुनिक होते शहरों के विपरीत भयावह स्थिति। कौन कब किस बीमारी का शिकार होगा पता नहीं। उस मेलघाट क्षेत्र में जनमानस की सेवा करने वालों की संख्या अंगुलियों पर गिनी जा सकती है। मेलघाट के अतिदुर्गम क्षेत्र में 100 किलोमीटर के अंतर पर कोई अस्पताल, कोई प्रशिक्षित डॉक्टर, यहां तक कि स्वास्थ्य क्षेत्र में काम करनेवाले स्वयंसेवी संगठन तक नहीं है। पीढ़ियां बीत गईं, लेकिन वहां के आदिवासियों को मुख्य धारा में लाने का ईमानदारी से प्रयास नहीं हो रहा। ऐसे में उन आदिवासियों के पास ‘पाखंडियों’ से उपचार के अलावा विकल्प नहीं है। डॉ. आशीष सातव ने इसकी जानकारी ली ।

मेलघाट पहुंच मानवसेवा को बनाया मूलमंत्र

डॉ. सातव अपने दादा सर्वोदय नेता वसंतराव बोम्बटकर, महात्मा गांधी, विनोबा भावे आदि के साहित्य से प्रभावित हुए। हाईस्कूल में थे, तो समाजसेवी बाबा आमटे के श्रम संस्कार शिविर पहुंचे। इसके बाद डॉ. प्रकाश व डॉ. मंदा आमटे के कार्यों को देखा। डॉ. अभय व डॉ. रानी बंग आदि की मानवसेवा करीब से देखी। डॉ. सातव को लगा कि गांवों के लिए खास कर मेलघाट के लिए कुछ करना चाहिए। उन्होंने निश्चय लिया कि मेलघाट में एक अस्पताल की शुरुआत की जाए। डॉक्टर बनने के बाद डॉ. सातव ने 1997 में मेलघाट में नि:शुल्क सेवा कार्य शुरू किया। इसी साल महान ट्रस्ट नामक स्वयंसेवी संस्था स्थापित की। डॉ. अाशीष सातव के साथ डॉ. कविता सातव ने भी कंधे से कंधा मिलाकर दुर्गम क्षेत्र के आदिवासियों के लिए दिन-रात एक कर नि:शुल्क काम करना शुरू किया। 1997 में एक छोटे से कमरे से शुरू हुई यात्रा निरंतर जारी है।

यह है उपलब्धि

23 साल में महान ट्रस्ट और डॉ. सातव द्वारा धर्मार्थ अस्पताल चलाया जा रहा है। यहां 1.50 लाख से अधिक मरीजों का निशुल्क उपचार किया गया है। 3500 लोगों की गंभीर बीमारियों से जान बचायी है। डॉ. सातव व महान ट्रस्ट की कार्यप्रणाली व नीतियों को विविध राज्यों में लागू किया गया है। इसका लाभ 5 लाख से अधिक आदिवासियों को मिला है। 25 हजार आदिवासियों को अंधत्व का शिकार होने से बचाया गया है। तीन गांवों को शराबमुक्त किया है। कोरोना के दौरान 27 हजार मरीजों का उपचार किया। महान ट्रस्ट व डॉ. आशीष सातव को अनेक राष्ट्रीय व अंतरराष्ट्रीय पुरस्कार से नवाजा गया है।

15 साल से कमाई का हिस्सा दिव्यांगों के उपचार पर खर्च

सेवा के मामले में उपराजधानी के डॉक्टर हमेशा आगे रहे हैं। बाल चिकित्सा आर्थोपैडिक सर्जन डॉ. विराज शिंगाडे ऐसा ही एक नाम है। बीते 15 साल से वे अपनी कमाई का हिस्सा दिव्यांग बच्चों का ऑपरेशन कर उन्हें सामान्य श्रेणी में लाने के लिए खर्च करते हैं। उन्होंने 2006 से अपनी ओपीडी फीस की बचत से 3500 से अधिक बच्चों का निशुल्क ऑपरेशन किया है। इसके लिए नागाई नारायणजी मेमोरियल फाउंडेशन की स्थापना की है। सोमवार व शनिवार की कमाई परिवार के लिए और मंगलवार से शुक्रवार तक की कमाई दिव्यांग बच्चों के लिए खर्च करते है। शारीरिक, जन्मजात, तंत्रिका संबंधि दिव्यांगता के साथ साथ बर्न कॉन्टैक्टर वाले मरीजों का नि:शुल्क उपचार किया जाता है। मरीजों के रहने खाने की सारी व्यवस्था की जाती है। फाउंडेशन द्वारा हिंगना स्थित जुनेवाडी रोड किन्ही धानोली में एक केंद्र शुरू किया गया है। यहां दिव्यांगों के लिए जांच, उपचार, रहने खाने की सारी सुविधाएं नि:शुल्क है। इसके साथ ही परिजनों के लिए भी व्यवस्था की गई है। फाउंडेशन में विदर्भ समेत समीपस्थ राज्यों से मरीज आता है। अब तक यहां 16 हजार दिव्यांग बच्चों की जांच, 3200 से अधिक बच्चों की सर्जरी, 6 हजार बच्चों का उपचार और 3 हजार बच्चों को चिकित्सा सहायता प्रदान की गई है। कुछ माह पहले ही फाउंडेशन द्वारा निर्मित व्यापक चिकित्सा देखभाल आर रोग पुनर्वास केंद्र का उद्घाटन पूर्व राष्ट्रपति रामनाथ कोविद ने किया था। डॉ. विराज शिंगाडे के साथ डॉ. रश्मि शिंगाडे भी उनके सेवा कार्य में मदद करती है। उन्हें राष्ट्रीय व अंतरराष्ट्रीय स्तर के अनेक पुरस्कार प्राप्त हो चुके है। उनकी निशुल्क दिव्यांग सेवा निरंतर शुरू होती।


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