नागपुर: कोलार नदी में गंदा पानी, एसटीपी को कागजों में निपटा दिया, 4 साल हो रहा मंथन
- बढ़ते कदम खर्च के कारण ठिठके
- अन्य विकल्प पर विचार
- न एसटीपी बना, न जुर्माना लगा
डिजिटल डेस्क, नागपुर। चिचोली खापरखेड़ा व पोटा चनकापुर ग्राम पंचायत की नालियों से कोलार नदी में पहुंचने वाले पानी पर प्रक्रिया करने के लिए चिचोली में एसटीपी प्रस्तावित किया गया, लेकिन निधि के अभाव में प्रकल्प लड़खड़ा गया। चार साल से प्रशासन मंथन कर रहा है, लेकिन ठोस नतीजे पर नहीं पहुंच पाया। कोलार नदी में पहुंचने वाले पानी पर प्रक्रिया नहीं करने से इसका असर कन्हान नदी पर भी हो रहा है। कोलार नदी का पानी आगे बहते हुए कन्हान तक पहुंचता है और यही पानी बाद में कन्हान जलशुद्धिकरण केंद्र में जाता है। कन्हान जलशुद्धिकरण केंद्र से नागपुर शहर को जलापूर्ति होती है। ऐसे में कई क्षेत्र और नागरिक इससे प्रभावित होते हैं। अगर कोलार नदी में प्रक्रिया कर पानी को आगे छोड़ जाता है तो कन्हान नदी प्रदूषण कम होगा और लोगों को पानी भी शुद्ध मिलने में मदद होगी।
बढ़ते कदम खर्च के कारण ठिठके
चिचोली खापरखेड़ा व पोटा चनुकापुर ग्राम पंचायत का लाखों लीटर गंदा पानी कोलार नदी में जाने से नदी का प्रदूषण बढ़ रहा है। नदी को प्रदूषण से बचाने के लिए एसटीपी (सीवेज ट्रीटमेंट प्लांट) लगाने की दिशा में जिला परिषद ने कदम आगे बढ़ाए। चिचोली की सीमा में 0.99 हेक्टेयर जमीन एसटीपी के लिए चिह्नित की गई। जिप ने एसटीपी का इस्टीमेट तैयार किया। महाराष्ट्र प्रदूषण नियंत्रण मंडल के पास निधि के लिए प्रस्ताव भेजा गया। प्रदूषण नियंत्रण मंडल से लगातार पत्राचार करने पर भी निधि उपलब्ध नहीं की गई। आखिरकार जिप के पानी व स्वच्छता विभाग के पास उपलब्ध निधि से लो कॉस्ट ट्रीटमेंट प्लांट बनाने का तय हुआ। इसमें नीरी से तकनीकी सहयोग लिया गया। स्थानीय नागरिकों ने उसे विरोध किया। नागरिकों की भावना को भांपकर लो कॉस्ट ट्रीटमेंट प्लांट की जगह नांदेड़ की तर्ज पर ‘डिसेंट्रलाइज्ड वेस्ट वॉटर ट्रिटमेंट प्लांट’ बनाने का नियोजन किया गया। उस पर 3 से 4 करोड़ रुपए खर्च अपेक्षित है। निधि कहां से उपलब्ध कराया जाए, उसे लेकर प्रशासन मंथन कर रहा है। निधि का रास्ता नहीं मिलने से प्रशासन ने उसे ठंडे बस्ते में डाल दिया है।
न एसटीपी बना, न जुर्माना लगा
महाराष्ट्र प्रदूषण नियंत्रण मंडल (एमपीसीबी) ने जून 2020 में जिला परिषद को एसटीपी नहीं बनाने पर प्रति माह 5 लाख रुपए जुर्माना ठाेंकने की चेतावनी दी थी। एसटीपी पूरा करने के लिए मार्च 2021 तक डेडलाइन दी गई। उसे 3 साल पूरे हो गए, लेकिन न एसटीपी बना, न जुर्माना लगा।
अन्य विकल्प पर विचार
प्रशासन का कहना है कि गंदे पानी पर प्रक्रिया करने का प्रकल्प साकार करना ही है। एसटीपी का खर्च वहन नहीं कर पाने से दूसरे किसी तकनीक का उपयोग करने पर मंथन चल रहा है। प्रशासन अभी तक किसी नतीजे पर नहीं पहुंचा है। सूत्र बताते हैं कि जिप के पानी व स्वच्छता विभाग ने नदी में छोड़ जा रहे गंदे पानी को रोकने के लिए मनरेगा से शॉकपीट बनाए हैं। उसके माध्यम से नदी में छोड़ा जा रहा कितना गंदा पानी रोकना संभव है, यह समझ से परे है।