नागपुर खंडपीठ: कछुआ गति से लोणार लेक का विकास, देरी पर बुलढाणा के जिलाधिकारी से जवाब तलब
- अतिक्रमण के मुद्दे पर कोर्ट ने जताई चिंता
- बुलढाणा के जिलाधिकारी से जवाब तलब
- कई रहस्य समेटे हुए लेक किसी धरोहर से कम नहीं
डिजिटल डेस्क, नागपुर. बॉम्बे हाईकोर्ट की नागपुर खंडपीठ में लोणार लेक के संरक्षण को लेकर जनहित याचिका प्रलंबित है। मामले में न्या. नितीन सांबरे और न्या. अभय मंत्री के समक्ष हुई सुनवाई में लोणार सरोवर के समयबद्ध विकास में हो रही देरी को लेकर कोर्ट ने जमकर फटकार लगाई। साथ ही कोर्ट ने योजना समिति के सचिव के तौर पर बुलढाणा के जिलाधिकारी को विकास में हो रही देरी पर जवाब दायर करने के आदेश दिए। इसके अलावा कोर्ट ने समिति के अध्यक्ष तौर पर विभागीय आयुक्त पर भी नाराजगी जताई।
मामले पर हुई सुनवाई में न्यायालय मित्र एड. एस. एस. सन्याल ने कोर्ट में एक पुर्सिस दायर किया। इसमें एड. सन्याल ने लोणार सरोवर के विकास के लिए गठित योजना समिति के बैठक के कार्यवृत्त की जानकारी देते हुए कोर्ट को बताया कि लोणार सरोवर के विकास की चीजें कछुए की गति से आगे बढ़ रही हैं और समयबद्ध विकास सुनिश्चित करने के लिए समिति के अध्यक्ष और सचिव ने कोई समर्पित प्रयास नहीं किया। इस पर कोर्ट ने गंभीरता से संज्ञान लेते हुए जमकर फटकार लगाई। परियोजना में हो रही देरी पर बुलढाणा के जिलाधिकारी से स्पष्टीकरण मांगा। इस मामले में अब 21 अगस्त को अगली सुनवाई रखी है। राज्य सरकार की ओर से एड. दीपक ठाकरे ने पैरवी की।
अतिक्रमण के मुद्दे पर कोर्ट ने जताई चिंता
हाईकोर्ट ने लोणार सरोवर क्षेत्र में अतिक्रमणकारियों का कब्जा जारी रहने पर चिंता जताई। कोर्ट ने कहा कि पुनर्वास परियोजना के कार्यान्वयन के बावजूद, अतिक्रमणकारी, जिन्हें विकसित घर आवंटित किए गए हैं, लेकिन फिर भी उन्होंने इस क्षेत्र पर कब्जा करना जारी रख हैं। इस कारण सरोवर का पानी प्रदूषित होना, पीएच वैल्यू और जैव विविधता पर भी इसका प्रभाव पड़ रहा है।
कई रहस्य समेटे हुए लेक किसी धरोहर से कम नहीं
आपको बता दें लोनार लेक में कुछ ऐसी ज्योग्राफिकल कंडीशंस हैं, जिनको लेकर जियोलॉजिस्ट से लेकर साइंटिस्ट भी हैरान हैं। दुनिया भर से टूरिस्ट और रिसर्चर्स हर साल इस लेक को देखने आते हैं। कहां है ये लोनार लेक
- लोनार लेक खारे पानी की झील है, जो महाराष्ट्र के बुलढ़ाणा जिले में है।
- साइंटिस्टों का मानना है कि यह झील उल्का पिंड की टक्कर से बनी है।
- इसका खारा पानी इस बात को दर्शाता है कि कभी यहां समुद्र था।
- करीब दस लाख टन वजनी उल्का पिंड टकराने से ये झील बनी होगी।
1.8 किलोमीटर डायमीटर और गहराई 500 मीटर
- करीब 1.8 किलोमीटर डायमीटर की इस उल्कीय झील की गहराई लगभग पांच सौ मीटर है।
- इस झील के पानी पर आज भी देश-विदेश के कई साइंटिस्ट रिसर्च कर रहे हैं।
- कहा जाता है कि झील के पानी में समय-समय पर बदलाव होते हैं।
- यह बदलाव क्यों होते हैं इस बात पर आज भी रहस्य कायम है और कई साइंटिस्ट