नागपुर खंडपीठ: कोर्ट के आदेश के बाद सड़कों पर पड़ा मलबा हटा, नाबालिग से अनैसर्गिक दुष्कर्म मामले में 20 साल की कैद
डिजिटल डेस्क, नागपुर. बॉम्बे हाईकोर्ट की नागपुर खंडपीठ ने शहर दिन ब दिन डेंगू-चिकनगुनिया के बढ़ते प्रकोप पर चिंता जताते शहर साफ-सुथरा रखने के मनपा को आदेश दिए थे। साथ ही कोर्ट ने सड़कों पर निर्माण कार्यो का पड़ा मलबा हटाने का पीडब्ल्यूडी को आदेश दिया था। इसके चलते पीडब्ल्यूडी ने कोर्ट में शपथपत्र दायर करते हुए बताया कि, सड़कों पर पड़ा मलबा तुरंत हटाया गया है। साथ ही भविष्य में सड़क पर मलबा न हो इसका ध्यान रखने का आश्वासन दिया। खामला में गंदगी हा घर बन चुके संचयनी कॉम्प्लेक्स से नागरिकों को होने वाली समस्या पर केंद्रित जनहित याचिका नागपुर खंडपीठ में प्रलंबित है। मामले में याचिकाकर्ता एड. तेजल आग्रे ने शहर में बढ़ रहे डेंगू के प्रकोप का मुद्दा उठाया है। पिछली सुनवाई में कोर्ट ने डेंगू-चिकनगुनिया से निपटने और शहर साफ-सुथरा रखने में मनपा विफल होने को लेकर नाराजगी जताते हुए स्पष्टीकरण मांगा था। साथ ही कोर्ट ने पीडब्ल्यूडी को सड़कों पर पड़ा मलबा हटाने का आदेश दिया था। इसके अलावा कोर्ट ने मनपा को स्वच्छता के लिए कार्यरत मनपा कर्मचारी और निजी एजेंसियों के कर्मचारियों को डेटा प्रस्तुत करने के आदेश दिया था। मामले पर हुई सुनवाई में पीडब्ल्यूडी के मुख्य अभियंता दिनेश नंदनवार ने शपथपत्र दायर करते हुए सड़कों पर पड़ा मलबा हटाने की कार्रवाई पूरी करने की जानकारी दी। साथ ही कार्रवाई की तस्वीरें भी पेश की गईं। इस मामले में याचिकाकर्ता एड. तेजल आग्रे ने खुद पक्ष रखा। मनपा की ओर से एड. सुधीर पुराणिक ने पैरवी की।
खाली भूखंड मालिकों पर कार्रवाई
इस मामले में मनपा ने शपथपत्र दायर करते हुए कोर्ट को बताया कि, शहर में खाली भूखंडों को गंदा रखने वाले मालिकों के खिलाफ नियमित कार्रवाई की जा रही है। साथ ही मनपा ने यह भी जानकारी दी कि, शहर की साफ-सफाई के लिए मनपा के 5 हजार 164 कर्मचारी काम कर रहे हैं। साथ ही कचरा संकलन करने वाले 2 निजी एजेंसियों के 1 हजार 897 कर्मचारी कार्यरत हैं।
नाबालिग से अनैसर्गिक दुष्कर्म, दो आरोपियों को 20 साल की कैद
उधर बारह साल के नाबालिग से अनैसर्गिक दुष्कर्म करने वाले दो आरोपियों को अतिरिक्त जिला न्यायालय ने पोक्सो कानून के तहत दोषी करार देते हुए 20 साल कैद और प्रत्येकी 10 हजार रुपए का जुर्माना लगाया। न्या. आर. पी. पांडे ने यह फैसला दिया। बादल ऊर्फ चिंटू जगदीश जीवतोडे (उम्र 20) और रविकांत फूलचंद चौरे (उम्र 34) यह कोर्ट ने दोषी करार दिए आरोपियों के नाम है। वाडी पुलिस थाने के क्षेत्र में 16 नवंबर 2022 को यह घटना सामने आई। घटना के दौरान पीडित नाबालिग कक्षा आठवीं में पढ़ता था। घटना के एक महिने पहले से स्कूल से आने के बाद पीडित नाबालिग को बस्ती कुछ बच्चे बाहर लेकर जाते थे। घरवालों इसका संदेह होने के कारण उन्होंने पीड़ित से पूछताछ की, लेकिन उसने इस बारे में कुछ नहीं बताया। इसलिए घरवालों ने मान लिया की वह खेलने जा रहा होगा। 16 नवंबर के दिन बस्ती के कुछ बच्चे किस लिए घर में बार बार बुलाने के लिए आते है, यह जानने के लिए पीड़ित के घरवाले दोपहर के समय स्कूल गए थे। उस दौरान उन्हे पता चला की वह बस्ती के बच्चे स्कूल में भी पीड़ित को बुलाने के लिए आए थे। ऐसे में जब घरवालों ने पीड़ित को विश्वास में लेकर पूछताछ की गई तो उसने सारी हकीकत बता दी। पिछले दो-तीन महिने से स्कूल छूटने के बाद यह आरोपी पीड़ित नाबालिग से अनैसर्गिक दुष्कर्म करते थे। इस मामले में घरवालों की शिकायत के आधार पर वाड़ी पुलिस ने आराेपियों के खिलाफ आपराधिक मामला दर्ज किया। इस मामले पर हुई सुनवाई में कोर्ट ने सभी पक्षों की दलीलें और सबूतों को ध्यान में लेते हूए दोनों आरोपियों को 20 साल कैद की सजा सुनाई। राज्य सरकार की ओर से एड. आसावरी पलसोडकर ने पैरवी की।
रजिस्ट्रार राजू हिवसे को राहत, अवमानना कार्रवाई से हुई मुक्ति
उधर राष्ट्रसंत तुकडोजी महाराज नागपुर यूनिवर्सिटी के कोहचाडे घोटाले में बरी हुए एक वरिष्ठ क्लर्क ने सेवानिवृत्ति के बाद सेवा लाभ न मिलने को लेकर बॉम्बे हाई कोर्ट की नागपुर खंडपीठ में याचिका दायर की थी। इस मामले में सेवा लाभ देने के कोर्ट के आदेश पर अमल होने के कारण कोर्ट ने नागपुर यूनिवर्सिटी के रजिस्ट्रार डॉ. राजू हिवसे सहित उच्च एवं तकनीकी शिक्षा विभाग के प्रधान सचिव, निदेशक तथा सह निदेशक को अवमानना कार्यवाही से मुक्त कर दिया। मामले पर न्या. नितीन सांबरे और न्या. अभय मंत्री के समक्ष सुनवाई हुई। नागपुर खंडपीठ में यूनिवर्सिटी के सेवानिवृत्त वरिष्ठ लिपिक दिनकर इंगले ने यह याचिका दायर की थी। याचिका के अनुसार वह नागपुर यूनिवर्सिटी के परीक्षा विभाग में वरिष्ठ लिपिक के पद पर कार्यरत थे। हालाँकि, 1999 में फर्जी मार्कशीट और पुनर्मूल्यांकन घोटाला सामने आया। जांच के दौरान पुलिस ने उनके खिलाफ परीक्षा कार्य में अनियमितता बरतने का मामला दर्ज किया। उनकी गिरफ्तारी के बाद उन्हें 1999 में नागपुर यूनिवर्सिटी द्वारा निलंबित कर दिया गया। उनके खिलाफ 24 मामले दर्ज थे। हालांकि, 2014 में कोर्ट ने उन्हें सभी अपराधों से बरी कर दिया। बाद में यूनिवर्सिटी ने उन्हें फिर से काम पर रख लिया। वह 2018 में सेवानिवृत्त हुए। इसे 1999 से 2014 तक निलंबित कर दिया गया था। इस दौरान उन्हें वेतन और अन्य लाभ नहीं मिला। इसे पाने के लिए उन्होंने आवेदन किया। लेकिन यूनिवर्सिटी ने कोई जवाब नहीं दिया, तो उन्होंने याचिका दायर की। कोर्ट ने राज्य सरकार को इंगले के दावे पर निर्णय लेने का निर्देश दिया था और वेतन लाभ के भुगतान करने को कहा था। आदेशों का पालन न करने पर कोर्ट ने उच्च एवं तकनीकी शिक्षा विभाग के प्रधान सचिव, उच्च शिक्षा निदेशक तथा सह निदेशक को अवमानना नोटिस जारी किया था। पिछली सुनवाई के दौरान यूनिवर्सिटी ने ही अभी तक यह प्रस्ताव सरकार को न भेजने की बात सामने आई। इसलिए कोर्ट ने प्रथम दृष्ट्या यूनिवर्सिटी की गलती मानते हुए रजिस्ट्रार डॉ. राजू हिवसे को अवमानना नोटिस जारी किया था। लेकिन अब कोर्ट के आदेश का अंमल होने के कारण कोर्ट ने सभी को अवमानना कार्रवाई से मुक्त करते हुए अवमानना याचिका का निपटारा कर दिया। याचिकाकर्ता की ओर से एड. भानुदास कुलकर्णी ने पैरवी की।