नागपुर लोकसभा क्षेत्र: कांग्रेस ने देखा उतार चढ़ाव, भाजपा भी पिछड़ती रही, वोट प्रतिशत बढ़ाने का लक्ष्य
- वोट प्रतिशत बढ़ाने के लक्ष्य के साथ विविध संगठन काम कर रहे
- अधिक मतदान का लाभ किसे मिलेगा, देखने वाली बात
- मतदान बढ़ाने के दावे
डिजिटल डेस्क, नागपुर, रघुनाथसिंह लोधी। लोकसभा चुनाव में वोट प्रतिशत बढ़ाने के लक्ष्य के साथ विविध संगठन काम कर रहे हैं। प्रशासन भी इस दिशा में काम कर रहा है। ऐसे में देखना होगा कि अधिक मतदान का लाभ किसे मिलेगा। नागपुर लोकसभा की खासियत रही है कि यहां लंबे समय तक सामाजिक समीकरण चुनाव में प्रभावी रहे हैं। इस क्षेत्र को कांग्रेस का गढ़ कहा जाता रहा है। लेकिन कांग्रेस ने विविध चुनावों में उतार चढ़ाव देखें। पिछले दो चुनावों में भाजपा ने वोट पाने के मामले में काफी बढ़त पायी है। लेकिन भाजपा की स्थिति भी सदैव ठीक नहीं रही है। एक दौर ऐसा भी रहा है जब नागपुर लोकसभा से भाजपा की टिकट पर चुनाव लड़ाने के लिए उम्मीदवार को मनाने के लिए काफी प्रयास करने पड़ते थे।
मतदान बढ़ाने के दावे
नागपुर राष्ट्रीय स्वयंसेवक संघ का मुख्यालय भी है। भाजपा उम्मीदवार नितीन गडकरी संघ के स्वयंसेवक हैं। संघ ने हर बार की तरह इस बार भी 100 प्रतिशत मतदान का आवाहन किया है। मतदान बढ़ाने के लिए संघ व उससे जुड़े संगठनों के कार्यकर्ताओं ने विविध क्षेत्रों व समाज के मतदाताओं के बीच चर्चा अभियान शुरु कर दिया है। भाजपा ने गडकरी को 65 प्रतिशत मतदान दिलाने का लक्ष्य रखा है। इसके लिए भाजपा के वारियर्स बूथ स्तर पर काम कर रहे हैं। उधर कांग्रेस ने वोटों के विभाजन को रोकने की रणनीति पर काम शुरु किया है। भाजपा के विरोध में कांग्रेस के कथित परंपरागत मतदाताओं को बूथ तक ले जाने की व्यवस्था का नियोजन किया जा रहा है।
कांग्रेस ने देखें उतार चढ़ाव
कांग्रेस ने काफी उतार चढ़ाव देखें है। इस क्षेत्र में पहले भाजपा भले ही नहीं जीतती रही लेकिन कांग्रेस की जीत भी आसान नहीं थी। 1951 में अस्तित्व में आए इस लोकसभा क्षेत्र में 1952 में कांग्रेस नेत्री अनुसया काले को सांसद चुना गया था। वे नागपुर की पहली सांसद बनी। 1962 के चुनाव में कांग्रेस पराजित हो गई। निर्दलीय माधव श्रीहरि अणे चुनाव जीते थे। 1967 में नरेंद्र देवधरे की जीत ने कांग्रेस को यह सीट वापस दिलायी। लेकिन विदर्भ को महाराष्ट्र से अलग करने की मांग ने फिर से कांग्रेस को पटखनी दे दी। 1971 में आल इंडिया फारवर्ड ब्लाक पार्टी के जांबुवंतराव धोटे जीते। 1977 में गेव आवारी की जीत ने फिर से कांग्रेस को यह सीट वापस दिलायी। पराजय के बाद धोटे ने रणनीति बदली। इंदिरा गांधी के नेतृत्व में कांग्रेस से जुड़े। 1980 में कांग्रेस की टिकट पर धोटे जीते। यह वह दौर था जब देश में कांग्रेस संकट के दौर से गुजर रही थी। लेकिन इंदिरा गांधी के समर्थन में धोटे ने विदर्भ में कांग्रेस को मजबूत रखा था। हालांकि जल्द ही धोटे ने कांग्रेस से नाता तोड़कर विदर्भ जनता पार्टी बना ली। उसके बाद उन्होंने लोकसभा चुनाव नहीं जीता।
भाजपा में उम्मीदवार नहीं
2014 के चुनाव में नितीन गडकरी की जीत के साथ भाजपा ने इस क्षेत्र में अपनी धमाकेदार स्थिति बनायी। 2019 में भी वह काफी मतों के अंतर से जीती। लेकिन उससे पहले भाजपा के पास नागपुर में उम्मीदवार की कमी महसूस की जाती रही। गडकरी से पहले बनवारीलाल पुरोहित ने भाजपा की टिकट पर चुनाव जीता था। उस जीत के पहले पुरोहित कांग्रेस के विधायक, सांसद व मंत्री रहे थे। लिहाजा भाजपा पर आरोप लगता रहा कि उसे कांग्रेस से उम्मीदवार आयात करना पड़ रहा है। इस बीच भाजपा ने समाजवादी विचारक अटलबहादुरसिंह व उद्यमी रमेश मंत्री पर भी दांव लगाया। अटलबहादुरसिंह नागपुर के महापौर रह चुके थे। राजनीतिक तौर पर वे भाजपा के विरोधी रहे।
भाजपा कांग्रेस को मिले वोट
वर्ष- भाजपा- कांग्रेस
2009- 2,90,749- 3,15,148
2014- 5,87,787- 3,02,991
2019- 6,60,221- 4,44,327
मतदाता संख्या पहले,
वर्ष 2019
कुल मतदाता -21,61,096
पुरुष-10,97,087
महिला-10,63,932
अब
वर्ष 2024
कुल मतदाता- 22,18,259
पुरुष- 11,10,840
महिला- 11,07,197
इनका कहना है
विपीनकुमार ईटनकर, जिलाधिकारी व जिला निर्वाचन अधिकारी ने कहा कि नए मतदाओं की संख्या बढ़ी है। फर्जी मतदाता की पडताल की जा रही है। वोट प्रतिशतांक 75 प्रतिशत का लक्ष्य पाने की दिशा में प्रशासन काम कर रहा है।
चंद्रशेखर बावनकुले, अध्यक्ष भाजपा महाराष्ट्र ने कहा किभाजपा जीत का अंतर बढ़ाने के लक्ष्य के साथ नागपुर में चुनाव लड़ रही है। गडकरी को 65 प्रतिशत मतदान दिलाने का प्रयास किया जा रहा है।