खानापूर्ती: पीओपी की मूर्तियां बिकने से माटी कलाकारों की आंखे नम, कार्रवाई के नाम पर रसीद काटी
- कार्रवाई के नाम पर रसीद काटी गई
- इसके बाद में खूप बिकी मूर्तियां
- कुछ मूर्तियां जब्त, अंतिम तीन दिनों में आस्था से खिलवाड़
डिजिटल डेस्क, नागपुर. गणेशोत्सव के लिए पीओपी की मूर्तियाें की खरेदी व बिक्री पर प्रतिबंध के लिए विविध विभागों के साथ मिलकर नागपुर महानगर पालिका द्वारा नीति-नियम बनाए गए थे। जिन दुकानों में पीओपी मूर्तियां पायी गई, वहां से 10 हजार रुपए का चालान किया गया। बाद में इन्हीं दुकानदारों ने पीओपी की मूर्तियां बेचकर लोगों की आस्था से खिलवाड़ किया। कोई पीओपी की मूर्ति को साडू मिट्टी की तो कोई मिट्टी मिक्स बताकर बेच रहा था। यहां तक की पीओपी की मूर्ति को मिट्टी की बताकर लोगों को धोखा दिया गया। इस चक्कर में स्थानीय माटी कलाकारों की मिट्टी की मूर्तियों को नापसंद किया गया। मिट्टी की मूर्तियां बेचनेवाले कलाकार व दुकानदार दोनों के पास मूर्तियां बच गई। वहीं पीओपी की मूर्तियां सर्वाधिक संख्या में आने से वे भी बच गई।
दो साल में बढ़ गया पीओपी मूर्तियों का का धंधा
कोरोनाकाल के दौरान घरेलु विसर्जन का चलन शुुरु हुआ। इसलिए मिट्टी की गणेश मूर्तियों की मांग बढ़ने लगी थी। दो साल बाद फिर से पीओपी की मूर्तियों का चलन शुरु हुआ। विसर्जन के लिए स्थानीय प्रशासन द्वारा कृत्रिम टैंकों की व्यवस्था की जानी लगी। पिछले दो साल से बाजार में पीओपी की मूर्तियां बेचने का धंधा फिर से बढ़ गया। नागपुर में गणेश स्थापना से करीब डेढ़ महीना पहले से बाहर से पीआेपी मूर्तियों का संग्रहण किया जाता है। यह मूर्तियां अमरावती, बड़नेरा, अकोला, परतवाड़ा, अहमदनगर, पुणे, मुंबई, पेण आदि शहरों से मूर्तियां आयात की जाती है। इन मूर्तियों को बेचने के लिए 15 दिन पहले से बाजारों में दुकानें सज जाती है। गांधीबाग, जागनाथ रोड, गांधी पुतला, चितार ओली, सक्करदरा, मानेवाड़ा, धरमपेठ, खामला, जरीपटका, इंदोरा, गोकुलपेठी समेत शहर के अन्य स्थानों में मिलाकर कुल 450 से अधिक दुकानों में मूर्तियां बेची जाती है। करीब 40 फीसदी मिट्टी की व 60 फीसदी पीओपी की मूर्तियां बेची जाती है। जिले में करीब 4 लाख मूर्तियों की मांग है।
मिट्टी के नाम पर धोखा, 15 फीसदी मूर्तियां बची
विदर्भ का सबसे बड़ा केंद्र होने के कारण यहां दूसरे शहरों के लोग भी पीओपी की मूर्तियां लाकर दुकानें लगाते है। यह दुकानदार औने-पौने दामों में पीओपी की मूर्तियां बेच देते हैं। इस कारण स्थानीय कलाकारों द्वारा बनायी गई मिट्टी की मूर्तियाें के प्रति रुझान कम हो जाता है। लोग मिट्टी की बजाया पीओपी ही खरीदते है। उनके साथ मिट्टी के नाम पर धोखा किया जाता है। इस साल 15 फीसदी मूर्तियां बच चुकी है। जिसमें मिट्टी और पीओपी का प्रमाण बराबरी का है। पीओपी की बाहर से आयात की जानेवाली आधे से अधिक मूर्तियां कहीं न कहीं से खंडित हो जाती है। दुकानदार उन मूर्तियों को जोड़ देते हैं। बाद में उस पर आर्टिफिशियल श्रृंगार से जोड़ों काे छिपा देते है। यही खंडित पीओपी की मूर्तियां गणेशभक्तों को औने-पौने दामों में थमा दी जाती है।
मनपा को मिली 897 पीओपी मूर्तियां
नागपुर महानगर पालिका ने पीओपी मूर्तियां बेचनेवाले दुकानदारों पर कार्रवाई के नाम पर जुर्माना लगाया। इसमें 10 हजार रुपए की रसीद बनायी गई। 10 हजार की रसीद काटने के बाद चंद मूर्तियां जब्त की गई। देखा जाए तो पीओपी मूर्तियां बेचनेवालों के लिए यह कार्रवाई राहत साबित हुई है। क्योंकि एक छोटी गाड़ी में कमसे कम 150 और बड़ी गाडी में 250 मूर्तियां लायी जाती है। कोई एक गाड़ी तो कोई 4 गाड़ी भरकर पीओपी मूर्तियां आयात करता है। इन दुकानदारों से 10-20 मूर्तियां जब्त व 10 हजार जुर्माने की कार्रवाई मायने नहीं रखती। एक या दो बार कार्रवाई के बाद यहीं दुकानदार खुलेआम पीओपी की सारी मूर्तियां बेचते हैं। इस बार भी कार्रवाई के बाद दुकानदारों ने खुलेआम पीओपी की मूर्तियां बेची। इस साल महानगर पालिका के उपद्रव शोध पथक ने 27 अगस्त से 07 सितंबर तक अलग-अलग जोन की 91 दुकानों में कार्रवाई कर 798 पीओपी की मूर्तियां जब्त कर 9.10 लाख रुपए जुर्माना वसूला। सूत्रों के अनुसार यहां 2 लाख से अधिक पीओपी की मूर्तियां बेचने का अनुमान है। मनपा के पास पीओपी व मिट्टी की मूर्तियों की पहचान करने विशेषज्ञों की टीम नहीं होने के कारण हर साल पीओपी की मूर्तियां खूब बिकने की चर्चा है।