हाईकोर्ट: तालिका स्तर पर कपास खरीद केंद्र शुरू करने की नीति स्पष्ट करें, वस्त्रोद्योग विभाग को आदेश
Clarify the policy of starting cotton procurement center at table level, order to textile industry department
डिजिटल डेस्क, नागपुर। बॉम्बे हाई कोर्ट के नागपुर खंडपीठ में किसानों के कपास खरीदी को लेकर जनहित याचिका प्रलंबित है। इस मामले में गुरूवार को न्या. नितीन सांबरे और न्या. अभय मंत्री के समक्ष हुई सुनवाई में कोर्ट ने राज्य सरकार के वस्त्रोद्योग विभाग के प्रधान सचिव को स्थानीय या तालिका स्तर पर कपास खरीद केंद्र शुरू करने की नीति स्पष्ट करने के आदेश दिए हैं। प्रधान सचिव को चार सप्ताह में इस संदर्भ में जवाब दायर करना है। नागपुर खंडपीठ में ग्राहक पंचायत महाराष्ट्र संस्थान के श्रीराम सातपुते ने यह जनहित याचिका दायर की है। याचिका के अनुसार, सरकारी कपास खरीद केंद्र समय पर शुरू नहीं होने के कारण व्यापारी गारंटी मूल्य से कम कीमत पर कपास खरीद रहे हैं, जिससे किसानों को आर्थिक नुकसान हो रहा है।
इसलिए दिवाली से पहले दशरहे के शुभ अवसर पर राज्य में सभी तालुका स्तरों पर सरकारी खरीद केंद्र शुरू किए जाने चाहिए, किसान की कृषि उपज बेचने के बाद सात दिन के अंदर कृषि उपज का पैसा किसान के बैंक खाते में जमा हो जाना चाहिए आदि मांग याचिका में की गई है। इस मामले पर गुरूवार को हुई सुनवाई में कोर्ट ने उक्त आदेश जारी किए। याचिकाकर्ता श्रीराम सातपुते ने खुद ही पक्ष रखा। केंद्र सरकार की ओर से डिप्टी साॅलिसिटर जनरल ऑफ इंडिया एड. नंदेश देशपांडे ने पैरवी की। कोर्ट ने केंद्र सरकार के वस्त्रोद्योग विभाग को सरकारी कपास खरीद केंद्र से सात दिनों के अंदर कितने कपास विक्रेता किसानों को भुगतान किया गया, इसके आंकड़े प्रस्तुत करने के आदेश दिए थे। साथ ही किसानों को भुगतान करने में हुए देरी पर स्पष्टीकरण मांगा था। केंद्र सरकार ने शपथपत्र दायर करते कोर्ट को बताया कि, अधिकतर किसानों को समय पर भुगतान किया गया है। कुछ ही किसानों को भुगतान करने में देरी हुई है। ऐसा नहीं है कि किसानो को पैसे नहीं दिए गए हैं, लेकिन प्रक्रिया होने से कम अधिक विलंब होता है। केंद्र के जवाब पर कोर्ट ने समाधान जताया।
राज्य शीघ्र भुगतान का प्रावधान करें
केंद्र सरकार ने कोर्ट में जानकारी दी कि, राज्य सरकार की मंजूरी के बाद ही केंद्र सरकार कपास विक्रेता किसानों को भुगतान करती है। अगर राज्य ने मंजुरी के लिए देरी कि तो किसानों को भुगतान करने में देरी होती है। इसपर कोर्ट ने राज्य सरकार को शीघ्र भुगतान का प्रावधान करने को कहा है।