बांबे हाईकोर्ट: जमानत देते समय केवल अपराध की जघन्यता ही नहीं, जेल में बिताया समय भी देखा जाए
- अदालत से दोहरे हत्याकांड के एक आरोपी को मिली जमानत
- जेल में बिताया समय भी देखा जाए
डिजिटल डेस्क, मुंबई। बॉम्बे हाई कोर्ट ने 2015 के लोनावाला में हुए दोहरे हत्याकांड के एक आरोपी को रिहा करते हुए कहा कि जमानत देते समय केवल अपराध की जघन्यता ही नहीं जेल में बिताया गया समय भी देखा जाना चाहिए। आरोपी 8 साल से जेल में बंद है। मुकदमा लंबित रहने तक किसी व्यक्ति को अनिश्चित काल तक हिरासत में नहीं रखा जा सकता है। यह स्पष्ट रूप से संविधान में निहित मौलिक अधिकार का उल्लंघन करता है। बार-बार इसे न्यायसंगत माना गया है। न्यायमूर्ति भारती डांगरे की एकल पीठ ने 26 सितंबर के आदेश में कहा कि यह देखते हुए कि आरोपी आकाश सतीश चंडालिया को गंभीर आरोपों का सामना करना पड़ा। 20 जुलाई 2015 को पुलिस को दो लापता व्यक्तियों की शिकायत मिली। बाद में दोनों को लोनावाला के तम्हानी घाट के पास मृत पाया गया था। कथित तौर पर एक कुख्यात गैंगस्टर द्वारा मामले के सह-अभियुक्त और उसके सहयोगी द्वारा उन्हें पांच घंटे तक बेरहमी से पीटा गया था, जिससे उनकी मौत हो गयी थी।
वकील सना आर.खान ने लंबे समय तक कैद में रहने और मुकदमे में देरी होने पर जमानत के लिए दलील दी। उन्होंने कथित सह-अभियुक्त विकास गायकवाड़ को पिछले नवंबर में दी गई जमानत का भी हवाला दिया। अतिरिक्त लोक अभियोजक एस.आर.अगरकर ने आरोपों की गंभीरता हवाला देते हुए जमानत याचिका का विरोध किया कि अब तक 15 गवाहों की गवाही हो चुकी है। गवाही की गवाई के साथ मुकदमा शुरू हो चुका है। पीठ ने कहा कि एक अन्य सह-आरोपी यास्मीन सैय्यद को भी पिछले नवंबर में योग्यता पर विचार किए बिना जमानत दे दी गई थी। यह देखते हुए कि मुकदमे को समाप्त होने में तीन साल लग सकते हैं और आरोपियों को शायद ही कभी यरवदा जेल से ट्रायल कोर्ट में पेश किया जाता है।