रेप मामला: आरोपी की जमानत के लिए पीड़ित की सहमति से बर्बाद होता है पुलिस और अदालत का समय
- आरोपी के खिलाफ सबूतों के बावजूद आरोपी को जमानत
- दुराचार का मामला दर्ज कराने के बाद
डिजिटल डेस्क, मुंबई। बॉम्बे हाई कोर्ट में दुराचार का एक मामला आया था। जिसमें आरोपी ने जमानत के लिए याचिका की थी। इस मामले में पीड़िता ने भी हलफनामा दायर करके आरोपी को जमानत दिये जाने के लिए सहमति दी थी। इस पर अदालत ने कड़ा रुख अपनाते हुए कहा कि पहले दुराचार के मामले दर्ज कराना और बाद में आरोपी की जमानत के लिए सहमति देने से पुलिस और अदालत का समय बर्बाद होता है। अदालत ने ऐसे मामलों में व्यक्तियों पर भारी जुर्माना लगाने के लिए एक मजबूत तंत्र की आवश्यकता पर बल दिया। पिछले साल 2 नवंबर को काशीमिरा पुलिस स्टेशन में दुराचार का एक प्रकरण दर्ज हुआ था। तभी से आरोपी साकेत अभिराज झा जेल में बंद है। आरोपी की ओर से हाई कोर्ट में जमानत याचिका दायर की गई है। जिस पर न्यायमूर्ति मनीष पितले की एकलपीठ के समक्ष सुनवाई हुई।इस दौरान याचिकाकर्ता के वकील ने दावा किया कि पीड़िता भी आरोपी को जमातन देने के लिए सहमत है।
इस पर पीठ ने नाराजगी व्यक्त करते हुए कहा कि मुंबई जैसे शहरी क्षेत्रों में अक्सर ऐसे मामले न्यायालय के समक्ष आते हैं, जहां दो वयस्कों के बीच संबंध खराब होने के कारण आपराधिक कार्यवाही शुरू हो जाती है। इससे पुलिस का बहुमूल्य समय जांच में बर्बाद हो जाता है। जबकि उस समय का इस्तेमाल गंभीर अपराधों की जांच में किया जा सकता है। वहीं कथित पीड़िता और आरोपी अपने मतभेदों को सुलझा कर एक साथ आते हैं और फिर पीड़िता जमानत देने और यहां तक कि ऐसी कार्यवाही को रद्द करने के लिए सहमति दे देती है। इससे न्यायालय का बहुमूल्य समय भी बर्बाद होता है। पीठ ने कहा कि हालांकि लगाए गए आरोप गंभीर हैं और आरोपी के खिलाफ पर्याप्त सबूत उपलब्ध हैं,इसलिए जमानत नहीं दिया जाना चाहिए। लेकिन अदालत ने पीड़िता के सहमति हलफनामे पर विचार करते हुए जमानत दे दी।
क्या है मामला
2 नवंबर 2023 को पीड़िता ने आरोप लगाया था कि आरोपी ने शराब के नशे में उसके साथ दुराचार किया। उसने उसका संपर्क नंबर सोशल मीडिया पर वायरल कर दिया, जिसके परिणामस्वरूप अजनबी लोग उससे अश्लील तस्वीरें मांगने लगे। इस पर काशीमिरा पुलिस स्टेशन नेभारतीय दंड संहिता (आईपीसी) की धारा 376, 376(2)(एन), 377, 384, 323, 504, 506, 500 और सूचना प्रौद्योगिकी अधिनियम, 2000 (आईटी अधिनियम) की धारा 67 के तहत मामला दर्ज किया था।