लंबित मामलों की संख्या बढ़ी: 176 दिन बंद रहते हैं सुप्रीम कोर्ट के दरवाजे

  • केंद्र सरकार ने औपनिवेशिक काल के हजारों कानूनों को निरस्त किया
  • लंबी छुट्टियों की नीति आज भी बरकरार
  • वर्ष 2024 को सुप्रीम कोर्ट को मिलने वाली छुट्टियों में अभी तक बदलाव नहीं

Bhaskar Hindi
Update: 2024-01-02 12:55 GMT

डिजिटल डेस्क, नई दिल्ली, सुनील निमसरकर।  केंद्र सरकार ने औपनिवेशिक काल के हजारों कानूनों को निरस्त कर दिया है, लेकिन सुप्रीम कोर्ट उस समय के न्यायपालिका को दी जाने वाली लंबी छुट्टियों की नीति को आज भी बरकरार रखा है। हालांकि, देश के मौजूदा मुख्य न्यायाधीश अदालत की मौजूदा अवकाश नीति में बदलाव करने के प्रति गंभीर है, लेकिन वर्ष 2024 को सुप्रीम कोर्ट को मिलने वाली छुट्टियों में अभी तक बदलाव नहीं दिख रहा है। यहीं वजह है कि इस साल भी 175 से अधिक दिन न्यायालय के दरवाजे आम लोगों के लिए बंद रहेंगे।

सुप्रीम कोर्ट ने नए साल 2024 का कैलेंडर जारी कर दिया है। 2024 में सुप्रीम कोर्ट की छुट्टियों पर नजर डाले तो पूरे साल में वह 190 दिन सुनवाई करेगा। जबकि 176 दिन अवकाश पर रहेगा। इसमें सबसे लंबा ग्रीष्मकालीन अवकाश है, जो 18 मई से 7 जुलाई 2024 तक यानी 49 दिनों तक रहेगा। इसके अलावा 9 दिन का ख्रिसमस, होली 5 दिन, दशहरा और दिवाली मिलाकर 12 दिनों तक अवकाश होगा। वहीं हाईकोर्ट की बात करें तो सुप्रीम कोर्ट के कामकाज के मुकाबले इसमें 200 से अधिक दिनों तक कामकाज चलता है। वहीं ट्रायल कोर्ट में तकरीबन 250 दिनों तक कामकाज होता है। सुप्रीम कोर्ट का भले ही कामकाज विशेष प्रकार का है, लेकिन इन आंकड़ों से यह तो साफ है कि देश की शीर्ष अदालत ही पूरे साल में सबसे ज्यादा छुट्टियों का लाभ उठाते है।

सामाजिक कार्यकर्ता रतनलाल कैन का कहना है कि लंबी छुट्टियां रहने के चलते ही सुप्रीम कोर्ट में लंबित मामलों की संख्या बढ़ी है। आज भी शीर्ष अदालत में 80 हजार मामले लंबित है। लोग वर्षों तक न्याय की प्रतीक्षा करते है। सरकार को अविलंब इसकी समीक्षा करनी चाहिए और लंबी छुट्टियों की ब्रिटिश परंपरा को समाप्त करने किए अविलंब विचार करना चाहिए, ताकि लोगों को अविलंब न्याय मिल सके। वही सुप्रीम कोर्ट के वकील एवं महाराष्ट्र बार एसोसिएशन के पदाधिकारी राजसाहेब पाटील ने कहा कि वे इस मामले में मुख्य न्यायाधीश से मुलाकात करके कोर्ट के कामकाज के दिनों में बढ़ोतरी और जनसंख्या के अनुपात में जजों की संख्या बढ़ाने की मांग को लेकर जल्द ही एक ज्ञापन सौंपेंगे। उनका कहना है कि देश के मौजूदा हालात को देखते हुए अदालतों को भविष्य में लंबी छुट्टियां लेने से बचना चाहिए।

गौरतलब है कि पूर्व कानून मंत्री किरेन रिजिजू सुप्रीम कोर्ट की लंबी छुट्टियों पर सवाल उठा चुके है। यहीं नहीं भाजपा सांसद सुशील कुमार मोदी के अगुवाई वाली संसद की स्थायी समिति ने न्याय प्रक्रिया एवं उनमें सुधार विषय पर आधारित अपनी रिपोर्ट में अदालत की लंबी छुट्टियों को औपनिवेशिक विरासत बताया है और मामलों की पेंडेंसी के लिए भी लंबी छुट्टियां वजह मानी है।

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