सुप्रीम कोर्ट: जेल मैनुअल में जाति आधारित भेदभाव के प्रावधान, महाराष्ट्र-मध्य प्रदेश समेत ग्यारह राज्यों को नोटिस
- केंद्र और महाराष्ट्र, मध्य प्रदेश समेत ग्यारह राज्यों को नोटिस
- जेल मैनुअल में जाति आधारित भेदभाव के प्रावधान
डिजिटल डेस्क, नई दिल्ली. सुप्रीम कोर्ट ने बुधवार को केंद्र सरकार और महाराष्ट्र, मध्यप्रदेश सहित ग्यारह राज्यों को उस याचिका पर नोटिस जारी किया है, जिसमें आरोप लगाया गया है कि इन राज्यों के जेल मैनुअल कैदियों के बीच जाति आधारित भेदभाव को बढ़ावा देते हैं। मुख्य न्यायाधीश डीवाई चंद्रचूड़, जस्टिस जेबी पारदीवाला और जस्टिस मनोज मिश्रा की पीठ ने सुनवाई के दौरान याचिका में उठाए गए मुद्दों को महत्वपूर्ण और गंभीर बताते हुए हैरानी से पूछा कि जेल मैनुअल आज भी जाति आधारित अलगाव का प्रावधान करते है। याचिकाकर्ता की ओर से पेश वरिष्ठ वकील एस मुरलीधर ने कहा कि जेल के बैरकों में जाति आधारित भेदभाव जारी है और शारीरिक श्रम कार्यों तक फैला हुआ है, जो विमुक्त जनजातियों और आदतन अपराधियों के रूप में वर्गीकृत लोगों को प्रभावित कर रहा है। महाराष्ट्र और मध्यप्रदेश में इन्हें गंभीर भेदभाव का सामना करना पड़ता है।
वकील मुरलीधर ने कहा कि ऐसे उदाहरण है जहां अनुसूचित जातियों के व्यक्तियों को अलग और अन्य जातियों के व्यक्तियों को अलग रखा गया है। इस तरह का जाति आधारित भेदभाव जेल में कदम रखने के बाद से ही शुरू होता है। सॉलिसिटर जनरल ने भी इस स्थिति को अस्वीकार्य बताया और इससे निपटने के लिए संयुक्त प्रयासों की आवश्यकता जताई।
पीठ ने मामले में प्रारंभिक दलीलें सुनने के बाद राज्यों को नोटिस जारी करते हुए याचिकाकर्ता से भेदभावपूर्ण राज्यवार प्रावधानों को दर्शाने वाला एक सारणीबद्ध चार्ट प्रस्तुत करने को कहा। साथ ही सॉलिसिटर जनरल मेहता से इसमें न्यायालय की सहायता करने का अनुरोध किया। इस मामले अदालत ने जिन राज्यों को नोटिस जारी किया है, इसमें उत्तरप्रदेश, पश्चिम बंगाल, मध्य प्रदेश, आंध्र प्रदेश, तेलंगाना, पंजाब, ओडिशा, झारखंड, केरल, तमिलनाडु और महाराष्ट्र शामिल है। पत्रकार सुकन्या शांता द्वारा दायर याचिका में विभिन्न राज्यों के जेल मैनुअल में पाए गए भेदभावपूर्ण प्रावधानों को निरस्त करने की मांग की गई है। मामले में अगली सुनवाई 12 जनवरी को हो सकती है।