बॉम्बे हाईकोर्ट: आदिवासी बाहुल्य क्षेत्र में अनुसूचित जनजाति को 100 फीसदी आरक्षण के शासनादेश को चुनौती की याचिका खारिज

अदालत ने याचिकाकर्ताओं को मैट में जाने की दी इजाजत

Bhaskar Hindi
Update: 2023-09-27 15:33 GMT

डिजिटल डेस्क, मुंबई। बॉम्बे हाईकोर्ट ने राज्य सरकार के 50 फीसदी से अधिक आदिवासी बाहुल्य क्षेत्र में अनुसूचित जनजाति के लोगों को 100 फीसदी आरक्षण के शासनादेश (जीआर) को चुनौती देने वाली याचिका खारिज कर दी। अदालत ने याचिकाकर्ता को मैट में जाने की इजाजत दी है। न्यायमूर्ति सुनील बी.शुक्रे और न्यायमूर्ति फिरदौस फिरोज पूनिवाला की खंडपीठ के समक्ष बुधवार को बीगर आदिवासी समिति, सामाजिक विकास प्रबोधिनी और भूषण प्रकाश क्षीरसागर की ओर से वकील यशोदीप देशमुख, वकील राहुल ठाकरे और वकील वैदेही प्रदीप की दायर याचिका पर सुनवाई हुई। खंडपीठ ने आदिवासी समाज के लोगों के विकास के लिए सरकार के जीआर को उचित बताया। अदालत में आदिवासी समाज को 100 फीसदी आरक्षण देने से दूसरे समाज लोगों के बीच खाई चौड़ी होने और उनमें आपस में भेदभाव की भावना बढ़ाने की दलील को अस्वीकार कर दिया।

याचिकाओं में 29 अगस्त 2019 में सरकार की जारी अधिसूचना और उसके आधार पर इस साल 1 फरवरी को निकाले गए शासनादेश को चुनौती दी गयी थी। सरकार द्वारा जारी शासनादेश कहा गया है कि राज्य में जिस क्षेत्र में 50 फसदी से अधिक आबादी आदिवासी समाज की होगी, वहां तलाठी, सुपरवाइजर, ग्रामसेवक, आंगनवाड़ी सुपरवाइजर, अध्यापक, जनजाति विकास निरीक्षक, कृषक सहायक, पशु कृषि सहायक और नर्स समेत और स्थानीय स्तर पर सरकारी नियुक्तियों में अनुसूचित जनजाति को 100 फीसदी आरक्षण और 25 से 50 फीसदी आदिवासी समाज की आबादी होने पर 50 फीसदी आरक्षण होगा। पिछले दिनों अदालत में सरकार की ओर से दायर हलफनामा में जीआर का बचाव किया गया था।

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