कायाकल्प: पागलखाना नहीं जनाब मेंटल जिम कहिये
- स्वास्थ्य विभाग मेंटल अस्पताल का कर रहा कायाकल्प
- जन अवधारणा बदलने की है कवायद
- मानसिक रोगियों के भय को कम करने की दिशा में बढ़े कदम
- प्रदेश में 8 हजार लोगों को अस्पताल की आवश्यकता
डिजिटल डेस्क, मुंबई, मोफीद खान। राज्य में ब्रिटिश काल के समय बने मेंटल अस्पताल का कायाकल्प किया जा रहा है। इस कायाकल्प में मेंटल अस्पताल की "पागल खाना" के रूप में बनी छवि को भी बदला जा रहा है ताकि छोटी या बड़ी मानसिक बीमारी वाले मरीज बिना किसी कलंक या डर के इलाज करा सकें। राज्य का स्वास्थ्य विभाग मेंटल अस्पताल की अवधारणा को बदलते हुए इसे ‘मेंटल जिम' के रूप में तब्दील कर रहा है, जहां मरीजों का इलाज हंसी के डोज यानी लाफ्टर क्लब, योग और काउंसलिंग के मार्फत किया जाएगा।
हो रहा अस्पतालों का मेकओवर
राज्य का स्वास्थ्य विभाग वर्तमान में बेंगलुरू के नेशनल इंस्टीट्यूट ऑफ मेंटल हेल्थ एंड न्यूरोसाइंसेस (निम्हांस) की तर्ज पर ठाणे के मेंटल अस्पताल का कायाकल्प कर रहा है। ठाणे के अलावा कोल्हापुर और जालना में 365 बेड का नया मेंटल अस्पताल स्थापित किया जा रहा है। इन अस्पतालों के मेकओवर के साथ ही अस्पतालों की अवधारणा भी बदली जा रही है। महाराष्ट्र स्वास्थ्य सेवा निदेशालय में अतिरिक्त निदेशक (मानसिक स्वास्थ्य) डॉ. स्वप्निल लेले ने बताया कि मानसिक स्वास्थ्य से पीड़ित कोई भी व्यक्ति मेंटल अस्पताल जाना पसंद नहीं करता क्योंकि इसे लेकर रोगियों में यह भय बना रहता है कि वे पागलखाने में जा रहे हैं। इसी भय को दूर करने के लिए अब मेंटल अस्पताल को मानसिक व्यायाम शाला (मेंटल जिम) के रूप में विकसित किया जा रहा है।
हंसी का डोज मिलेगा और होगी कॉउंसलिंग
डॉ. लेले ने बताया कि 100 फीसदी मानसिक रोगियों में से सिर्फ एक फीसदी मरीजों को ही अस्पताल में भर्ती करने की जरूरत आन पड़ती है। शेष मरीजों में से अधिकांश मरीज जो एंग्जाइटी, पैनिक डिसऑर्डर आदि मानसिक रोग से पीड़ित हैं उनका इलाज बिना दवाई के भी किया जा सकता है। इन मानसिक रोगियों के व्यवहार में बदलाव लाने के लिए अस्पतालों में लाफ्टर क्लब, योग कक्षाएं और काउंसलिंग सत्र आयोजित किए जाएंगे।
प्रदेश के 1.2 करोड़ को मानसिक समस्या
डॉ. लेले ने बताया कि राज्य में 10 फीसदी आबादी को मनोचिकित्सकों की मदद की जरूरत होती है और उनमें से लगभग 7 फीसदी को अस्पताल में जाने की आवश्यकता होती है। उन्होंने बताया कि महाराष्ट्र की जनसंख्या 12 करोड़ आंकी गई है इसमें से 10 फीसदी यानी 1.2 करोड़ लोगों को कोई न कोई मानसिक बीमारी है। इसमें से 7 फीसदी यानी 7 लाख लोगों को अस्पताल की आवश्यकता पड़ती है। इसमें से सिर्फ एक फीसदी यानी 8 हजार मानसिक रोगियों को ही हर महीने अस्पताल में बेड की आवश्यकता पड़ती है। इस मांग को देखते हुए वर्तमान में जिन अस्पतालों का कायाकल्प किया जा रहा है, उनके जरिये इस मांग को पूरा करने का प्रयत्न किया जा है।
तैयार होगा मानसिक स्वास्थ्य का मसौदा
डॉ.लेले के अनुसार अस्पतालों के कायाकल्प में कम से कम छह साल लगेंगे। उन्होंने कहा कि राज्य एक मानसिक स्वास्थ्य नीति का मसौदा भी तैयार कर रहा है जिसमें वर्ष 2047 तक मानसिक रोग के इलाज के लिए लगनेवाले डॉक्टरों सहित सभी साधनों का समावेश किया गया है।