Mumbai News: यूपी की 13 साल की बच्ची का सहारा बना मनपा का सायन अस्पताल, इलाज का खर्च उठाया
- न सिर्फ बच्ची को दी नई जिंदगी बल्कि इलाज का खर्च तक उठाया
- इंफेक्शन के चलते बार बार बदलने पड़ रहे थे पेसमेकर
- चौथी बार लगाया गया लीड लेस पेसमेकर
Mumbai News : यूपी की 13 साल की एक नाबालिक लड़की का मुंबई मनपा का सायन अस्पताल पिछले 7 सालों से सहारा बना हुआ है। 6 साल की उम्र से ही इस बच्ची का इलाज सायन अस्पताल करता आ रहा है। जन्मजात हृदय की बीमारी से पीड़ित इस बच्ची के हृदय के गति को सामान्य करने के लिए अस्पताल को चार बार पेसमेकर बदलना पड़ा। बच्ची के माता-पिता की आर्थिक स्थिति इतनी विकट थी कि वे इलाज का खर्च तक वहन नहीं कर पा रहे थे लेकिन अस्पताल ने बच्ची को नई जिंदगी देने के लिए इलाज का खर्च तक खुद ही वहन किया। 6 महीने के इलाज के बाद बच्ची को दीवाली के दिन अस्पताल स्व डिस्चार्ज दिया गया।
सायन अस्पताल के कार्डियोलॉजिस्ट व अतिरिक्त प्रोफेसर डॉ. मिलिंद फड़के ने बताया कि यूपी की रहनेवाली 13 वर्षीय चंदानी जब 6 साल की थी उसे हृदय की जन्मजात बीमारी के इलाज के लिए सायन अस्पताल में लाया गया था। इसमें हृदय की विद्युत संचालन प्रणाली असामान्य हो जाती है, जिससे हृदय गति अत्यंत धीमी हो जाती है। मरीज़ थक जाते हैं, उन्हें चक्कर आते हैं, और चेतना खोने व पतन की स्थिति आ सकती है। इस स्थिति को ठीक करने के लिए उपचार का एकमात्र विकल्प पेसमेकर है। वर्ष 2017 में चंदानी कॉलर बोन के ठीक नीचे बाईं ओर पहला पेसमेकर लगाया गया था। दुर्भाग्य से, कुछ महीनों बाद, उसे इम्प्लांटेशन की जगह इंफेक्शन होने लगा। एंटीबायोटिक से संक्रमण का इलाज करने के प्रयास असफल रहे। इसलिए होनेवाली जटिलताओं को ध्यान में रखकर पेसमेकर को हटाया गया और उसे घाव के पूरी तरह से ठीक होने के बाद डिवाइस के पुन: प्रत्यारोपण के लिए वापस आने की सलाह दी गई।
2024 में फिर लगाया गया पेसमेकर
वित्तीय और अन्य बाधाओं के कारण वह फॉलो-अप के लिए मुंबई आने में असमर्थ थी। मई 2024 में वह फिर से बेहोश होने लगी। उत्तर प्रदेश के एक असप्त में उसे फिर से पेसमेकर प्रत्यारोपण (दूसरी प्रक्रिया) से गुजरना पड़ा। दुर्भाग्य से एक महीने बाद, उसे फिर से उसी जगह पर इंफेक्शन हो गया। वह जून 2024 में सायन अस्पताल वापस आई। इस बार भी पेसमेकर को फिर से हटाना पड़ा। हृदय गति को सामान्य रखने के लिए उसे एक अर्ध-स्थायी पेसमेकर पर रखना पड़ा, जो शरीर के बाहर लगा हुआ था। हालाँकि, यह कोई दीर्घकालिक समाधान नहीं था।
संक्रमण पर नियंत्रण के बाद 18 अगस्त को तीसरी बार उसके शरीर में दाहिनी ओर एक और पेसमेकर प्रत्यारोपित किया गया। सितंबर में तीसरी बार पेसमेकर की जगह इंफेक्शन होने लगा। आखिरकार डॉक्टरों को यह पेसमेकर हटाना पड़ा।
चौथी बार लीड लेस पेसमेकर लगाया गया
बार- बार इंफेक्शन होने की वजह से इलेक्ट्रोफिजियोलॉजिस्ट डॉ. यश लोखंडवाला की सलाह पर चंदानी को लीडलेस पेसमेकर लगाया गया जो सामान्य पेसमेकर से काफी अलग है। एक छोटा गोली जैसा उपकरण है बिना चीरा लगाए उसे हृदय की मांसपेशियों में प्रत्यारोपित किया गया। डॉ. फड़के ने बताया कि इस डिवाइस की कीमत लगभग 7 लाख रुपये है और प्रक्रिया के लिए उपयोग किए जाने वाले अतिरिक्त उपकरण की लागत लगभग एक लाख रुपये कुल लगभग 8 लाख रुपए का खर्च था। बच्ची के माता-पिता इतनी बड़ी रकम देने की स्थिति में नहीं थे। अस्पताल के डीनडॉ. मोहन जोशी, विभाग के प्रमुख डॉ. प्रताप नथानी और डॉ. यश के प्रयासों से कंपनी ने लीड लेस पेसमेकर मुफ्त में मुहैया जबकि अन्य एक लाख रुपए का खर्च डॉ. फड़के की बहन और जीजा ने उठाया।