हाईकोर्ट: जुर्माना न चुका पाने के कारण दोषी को जेल में रखना न्याय का उपहास
- गरीबी के कारण जुर्माना न चुकाने वाले को रिहा करने का निर्देश
- दुख के समय दया उचित
डिजिटल डेस्क, मुंबई. हाईकोर्ट ने कहा कि जुर्माना नहीं चुका पाने के कारण दोषी को जेल में रखना न्याय का उपहास है। न्याय के साथ-साथ उदारता भी नैतिक गुणों की दो चोटियों में से एक है। अदालत ने जेल की सजा काट चुके और गरीबी के कारण जुर्माना राशि नहीं भरने पर जेल में बंद व्यक्ति को रिहा करने का निर्देश दिया है। कोल्हापुर न्यायिक मजिस्ट्रेट ने दोषी साबित काले को कई मामलों में दोषी पाए जाने पर दो साल के कारावास और 2 लाख 65 हजार रुपए का जुर्माने की सजा सुनाई थी।
न्यायमूर्ति भारती डांगरे और न्यायमूर्ति मंजूषा देशपांडे की पीठ ने कहा कि न्याय कोई कृत्रिम गुण नहीं है, बल्कि इसमें उदारता भी शामिल है। कानून की प्रक्रिया के दुरुपयोग को रोकने के लिए अपनी सजा काट चुके व्यक्ति को जल्द जेल से रिहा किया जाना चाहिए। वह ट्रायल कोर्ट द्वारा सुनाई गई दो साल की सजा भुगत चुका है, लेकिन2 लाख 65 हजार रुपए का जुर्माना भुगतान नहीं कर पाने के कारण जेल में बंद है।
दुख के समय दया उचित
पीठ ने कहा कि कानून इस सिद्धांत को मान्यता देता है कि दुख के समय दया उचित है, जैसे सूखे के समय बारिश के बादल। याचिकाकर्ता समाज के आर्थिक रूप से कमजोर वर्ग से आता है। वह अपनी सजा पूरी होने के बाद भी जेल में बंद है, क्योंकि वह जुर्माने की राशि का प्रबंध नहीं कर पाया है। अगर उसे पूरी डिफॉल्ट सजा काटने का निर्देश दिया जाता है, तो उसे 9 साल की अतिरिक्त अवधि के लिए जेल में रहना होगा, जो हमारे विचार में न्याय का उपहास होगा।