बॉम्बे हाईकोर्ट के मामले: परब को आयकर का नोटिस रद्द, पुणे के सेवानिवृत्त वैज्ञानिक को राहत, बार में पकड़े व्यक्ति के खिलाफ मामला भी रद्द
- शिवसेना के उद्धव गुट के विधायक अनिल परब के खिलाफ आयकर का नोटिस रद्द
- अदालत ने आईआईटीएम के सेवानिवृत्त वैज्ञानिक और तकनीकी अधिकारी को धोखाधड़ी के मामले से किया बरी
- किसी व्यक्ति पर केवल छापेमारी के समय बार और रेस्तरां में उपस्थित होने के लिए मुकदमा नहीं चलाया जा सकता
डिजिटल डेस्क, मुंबई. बॉम्बे हाई कोर्ट ने शिवसेना के उद्धव गुट के विधायक अनिल परब के खिलाफ आयकर का जारी नोटिस को रद्द कर दिया है। अदालत ने माना कि उन्हें आयकर के क्षेत्राधिकार निर्धारण अधिकारी के बजाय फेसलेस मूल्यांकन अधिकारी द्वारा नोटिस जारी किया जाना चाहिए था। परब के कर मूल्यांकन को फिर से खोलने के संबंध में नोटिस आकलन वर्ष 2016-2017 और 2019-2020 के लिए भेजे गए थे। न्यायमूर्ति जी.एस.कुलकर्णी और न्यायमूर्ति एस.सुंदरसन की पीठ के समक्ष अनिल परब की दो याचिकाओं पर सुनवाई हुई। पीठ ने कहा कि उन्हें फेसलेस मूल्यांकन अधिकारी द्वारा नोटिस जारी किया जाना चाहिए था। जबकि यह क्षेत्राधिकार कर निर्धारण अधिकारी (जेएओ) द्वारा जारी किया गया था। आयकर अधिनियम की धारा 148 के तहत नोटिस जारी किए गए थे, जो मूल्यांकन को फिर से खोलने के संबंध में है। जब कोई मामला फिर से खोला जाता है, तो करदाता को एक नोटिस भेजा जाता है।याचिकाकर्ता के वकील ने दलील दी कि अदालत के पहले के एक फैसले में यह प्रक्रिया निर्धारित की थी कि नोटिस जेएओ द्वारा जारी नहीं किया जा सकता है, बल्कि एफएओ द्वारा जारी किया जाना चाहिए। आयकर विभाग ने दापोली साईं रिसॉर्ट घोटाले में परब का नाम सामने आने के बाद उनके खिलाफ कार्रवाई की। इसके बाद परब ने आयकर के नोटिस को हाई कोर्ट में चुनौती दी।
पुणे के सेवानिवृत्त वैज्ञानिक को बॉम्बे हाई कोर्ट से राहत
पुणे के भारतीय उष्णकटिबंधीय मौसम विज्ञान संस्थान (आईआईटीएम) सेवानिवृत्त वैज्ञानिक डॉ.गुफरान बेग और तकनीकी अधिकारी विपिन रघुनाथ माली को बॉम्बे हाई कोर्ट से बड़ी राहत मिली है। अदालत ने उन्हें पुणे में डिजिटल डिस्प्ले सिस्टम की खरीद में हुई धोखाधड़ी के मामले में बरी कर दिया है। पीठ ने कहा कि विशेष न्यायाधीश के पिछले साल के 15 अप्रैल के आदेश को रद्द कर दोनों याचिकाकर्ताओं को धोखाधड़ी के मामले से बरी किया जाता है। न्यायमूर्ति संदीप वी.मार्ने की पीठ के समक्ष डॉ.गुफरान बेग और विपिन रघुनाथ माली की अोस से वकील रेबेका गोंजाल्विस और वकील चांदनी चावला की दायर याचिकाओं पर सुनवाई हुई। पीठ ने कहा कि मैं यह मानने में असमर्थ हूं कि सीबीआई के पास एकत्र की गई सामग्री के आधार पर याचिकाकर्ताओं को दोषी ठहराने का कोई मौका है। ऐसे में याचिकाकर्ताओं के खिलाफ मुकदमा जारी रखना न केवल एक औपचारिकता होगी, बल्कि कानून की प्रक्रिया का दुरुपयोग भी होगा।भारत सरकार के पृथ्वी विज्ञान मंत्रालय के तत्वावधान में कार्यरत पुणे का भारतीय उष्णकटिबंधीय मौसम विज्ञान संस्थान (आईआईटीएम) एक स्वायत्त निकाय है। याचिकाकर्ता डॉ. गुफरान बेग आईआईटीएम में वैज्ञानिक के पद पर और उनके साथ विपिन माली वरिष्ठ तकनीकी अधिकारी के पद पर कार्यरत थे। आईआईटीएम ने शहरों में वायु गुणवत्ता की निगरानी और रिपोर्टिंग के लिए ‘वायु गुणवत्ता, मौसम पूर्वानुमान और अनुसंधान प्रणाली (सफर) नामक एक कार्यक्रम लागू किया, जिसके तहत डिजिटल डिस्प्ले सिस्टम के माध्यम से शहरों के भीतर विभिन्न स्थानों लगाने का प्रस्ताव रखा। इसमें 12 आउटडोर एलईडी डिस्प्ले और 5 इनडोर डिस्प्ले सिस्टम खरीदने का फैसला किया।मेसर्स वीडियो वॉल इंडिया प्राइवेट लिमिटेड (मेसर्स वीडियो वॉल्स) को 4 करोड़ 66 लाख रुपए का डिजिटल डिस्प्ले सिस्टम खरीदने और एक साल के संचालन और रखरखाव का अनुबंध दिया गया। डॉ.बेग ने मेसर्स वीडियो वॉल्स द्वारा आपूर्ति किए गए 12 डिजिटल डिस्प्ले बोर्ड के संबंध में 26 मार्च 2012 को परीक्षण रिपोर्ट जारी की। इसके बाद डिस्प्ले पुणे शहर के विभिन्न भागों में लगाए गए थे। सात साल बाद केंद्रीय जांच ब्यूरो (सीबीआई) को मेसर्स वीडियो वॉल द्वारा 12 घटिया डिजिटल डिस्प्ले सिस्टम की आपूर्ति और अनियमितताओं के बारे में जानकारी मिली।सीबीआई की जांच में पता चला कि ठेकेदार मेसर्स वीडियो वॉल्स ने चीन से एलईडी डिस्प्ले इकाइयां खरीदीं, जो गुणवत्ता और कीमत में सस्ती थीं। आरोप है कि बेग और माली की मिलीभगत करके आईआईटीएम को धोखा दिया। सीबीआई ने तत्कालीन टीईसी और सीईसी के सदस्यों समेत विभिन्न व्यक्तियों के बयान दर्ज किए और 30 जून 2020 को एक एफआईआर दर्ज की गई। सीबीआई ने कुल छह आरोपियों के खिलाफ विशेष न्यायाधीश के समक्ष आरोप पत्र दायर किया है, जिसमें याचिकाकर्ताओं को आरोपी बनाया गया है
बॉम्बे हाई कोर्ट-अदालत ने छापेमारी के दौरान बार में पकड़े गए व्यक्ति के खिलाफ दर्ज मामले को किया रद्द
बॉम्बे हाई कोर्ट ने एक बार में छापेमारी के दौरान पकड़े गए व्यक्ति को लेकर अहम फैसला सुनाया है। अदालत ने कहा कि किसी व्यक्ति पर केवल छापेमारी के समय बार और रेस्टोरेंट में उपस्थित होने के लिए मुकदमा नहीं चलाया जा सकता है। अदालत ने व्यक्ति के खिलाफ दर्ज मामले को रद्द कर दिया।न्यायमूर्ति अजय गडकरी और न्यायमूर्ति डॉ.नीला गोखले की पीठ के समक्ष चारकोप निवासी 34 वर्षीय व्यवसायी मितेश रमेश पुनमिया की ओर से वकील रुतुज वारिक और वकील शुभंकर आव्हाड़ की दायर याचिका पर सुनवाई हुई। पीठ ने अपने फैसले में कहा कि किसी व्यक्ति पर केवल छापेमारी के समय पर बार और रेस्टोरेंट में उपस्थित होने के लिए मुकदमा नहीं चलाया जा सकता है। हमें यह मानने में कोई हिचकिचाहट नहीं है कि याचिकाकर्ता के खिलाफ कोई अपराध नहीं बनता है। अदालत ने माना कि धारा के प्रावधानों को देखने से पता चलता है कि आरोपी व्यक्ति सार्वजनिक स्थान पर कोई अश्लील कार्य करने में लिप्त हो या सार्वजनिक स्थान पर अश्लील गीत गाए। रिकॉर्ड पर ऐसा कोई सबूत नहीं है, जो यह दर्शाता हो कि याचिकाकर्ता कोई अश्लील कार्य कर रहा था या अश्लील गीत गा रहा है। बार और रेस्टोरेंट में पाए गए ग्राहकों से संबंधित केवल एक सामान्य कथन है कि वे शो का आनंद ले रहे थे और महिला कलाकारों को ‘प्रोत्साहित' कर रहे थे। याचिकाकर्ता को नाचने वाली महिलाओं पर पैसे फेंकते हुए नहीं पाया गया। वह केवल छापेमारी के दौरान बार एवं रेस्टोरेंट में मौजूद था।क्या है पूरा मामलामुंबई पुलिस की समाज सेवा शाखा की टीम ने गुप्त सूचना के आधार पर नागपाडा पुलिस स्टेशन के अंतर्गत स्थित सी प्रिंसेस बार और रेस्तरां पर छापा मारा, तो वहां महिलाएं अश्लील डांस कर रही थी। ग्राहक डांस कर रही महिलाओं पर पैसे फेंक रहे थे। पुलिस टीम ने बार एवं रेस्टोरेंट के मैनेजर, वेटर और डांस कर रही महिलाओं समेत ग्राहकों को गिरफ्तार किया। इसमें याचिकाकर्ता भी शामिल था। उनके खिलाफ नागपाड़ा पुलिस स्टेशन में 19 फरवरी 2016 भारतीय दंड संहिता की धारा 294 और 114, 34 और महाराष्ट्र पुलिस अधिनियम की धारा 131(ए) के अंतर्गत मामला दर्ज किया। यह मामला मझगांव स्थित अतिरिक्त मुख्य न्यायिक मजिस्ट्रेट के समक्ष लंबित है।