अनोखी सेवा भावना: कॉलेज से लौटते वक्त हादसा देख जानवरों को समर्पित कर दी जिंदगी
- सात हजार से ज्यादा देसी नस्ल के श्वान-बिल्लियों को गोद लेने के लिए लोगों को किया प्रेरित
- देसी प्रजाति के जानवरों को दिलाते हैं अपना घर
- 13 वर्षों से लगातार आयोजित करते हैं एडॉप्शन कैंप
डिजिटल डेस्क, मुंबई, दुष्यंत मिश्र। विदेशी नस्ल के श्वान और बिल्लियों को मोटी कीमत चुकाकर पालने के बढ़ते शौक के बीच मुंबई के कुछ युवा लोगों को देसी नस्ल के श्वान और बिल्लियों को गोद लेने के लिए प्रेरित कर रहे हैं। लगातार कोशिशों के चलते महानगर में सात हजार से ज्यादा लोग देसी श्वान और बिल्लियों को गोद लेकर अपने परिवार का सदस्य बना चुके हैं। ‘वर्ल्ड फॉर ऑल अनिमल केयर एंड एडॉप्शन’ युवाओं को देसी नस्ल के जानवर गोद लेने के लिए प्रेरित करती है।
सड़क हादसे ने दिया उद्देश्य
एनजीओ के संस्थापक अध्यक्ष तारोनिश बुलसारा ने कहा कि इसकी शुरुआत 2010 में तब हुई जब मैंने कॉलेज से लौटते वक्त एक स्वान को देखा जो हादसे का शिकार हो गया था। मैं अपने पार्टनर के साथ श्वान को अस्पताल ले गया, दुर्भाग्य से इलाज के दौरान उसका एक पैर काटना पड़ा। बाद में जब डॉक्टरों ने हमें कहा कि अब उसे ले जा सकते हैं तो हमने सोचा कि अब तीन पैरों वाले छोटे से श्वान को हम सड़क पर कैसे छोड़ें। हमने सोशल मीडिया पर पेज बनाकर लोगों से एंजल नाम के उस श्वान को गोद लेने का आग्रह किया। एंजल को जल्द ही एक परिवार ने अपना लिया। इसके बाद भी जब गोद लेने के इच्छुक लोग पूछताछ करते रहे तो मैंने अपनी दोस्त रुचि नाडकर्णी के साथ मिलकर आसपास के दूसरे श्वानों को गोद लेने के लिए लोगों को प्रेरित करना शुरू कर दिया।
लगाते हैं एशिया का सबसे बड़ा एडॉप्थान
बुलसारा और उनके साथी 13 वर्षों से लगातार इस काम में जुटे हुए हैं। उनकी एनजीओ साल में एक बार एशिया का सबसे बड़ा एडॉप्शन कैंप भी लगाती है। बुलसारा ने बताया कि लॉकडाउन के चलते दो वर्षों तक हम एडॉप्शन कैंप नहीं लगा पाए थे, लेकिन इस साल फिर एडॉप्थान का आयोजन किया गया है। जिसमें 67 देसी जानवरों को अपना घर मिला।
दूसरे तरीकों से भी करते हैं जानवरों की मदद
बुलसारा ने बताया कि हम स्कूल, कॉलेज, निवासी इमारतों और झुग्गी-बस्तियों में जाते हैं और लोगों को जानवरों से अच्छा बर्ताव और खयाल रखने के लिए प्रेरित करते हैं। इसके अलावा संस्था एंबुलेंस चलाती है, जो जानवरों के घायल होने की सूचना पर उनकी मदद के लिए जाती है। हर महीने 80 श्वान और 100 बिल्लियों की नसबंदी भी की जाती है। इसके लिए काफी खर्च आता है जो लोगों से मिले दान से चलता है।
स्वदेशी नस्ल के जानवर बेहतर
बुलसारा कहते हैं कि हम भारतीयों की मानसिकता बन गई है कि विदेशी चीजें अच्छी होती हैं। यही सोच लोग जानवरों पर भी लागू करते हैं। लेकिन विदेशी जानवरों के लिए भारत का मौसम मुश्किल भरा होता है और वे बीमार हो जाते हैं। इसलिए देसी नस्ल के जानवरों को पालना ही बेहतर होता है।
खरीदिए मत गोद लीजिए
एनजीओ से जुड़े लोगों का मानना है कि जानवरों को खरीदना-बेचना गलत है और अगर आपको किसी को परिवार का सदस्य बनाना है तो उसे गोद लिया जाना चाहिए। हम परिवार के दूसरे सदस्यों को खरीदते नहीं है और जब जानवर भी परिवार का सदस्य होते हैं तो उन्हें भी खरीदना, बेचना गलत है।