बॉम्बे हाईकोर्ट ने एक निदेशक से आयकर वसूली को किया खारिज
- निदेशक से आयकर वसूली को किया खारिज
- बॉम्बे हाईकोर्ट में सुनवाई
डिजिटल डेस्क, मुंबई। बॉम्बे हाई कोर्ट ने एक कंपनी के निदेशक के खिलाफ आयकर वसूली को इस आधार पर रद्द कर दिया है कि निदेशक ने आयकर अधिनियम की धारा 179(1) के संदर्भ में उस पर डाले गए बोझ का पर्याप्त रूप से निर्वहन किया है। न्यायमूर्ति के.आर.श्रीराम और न्यायमूर्ति एम.एम. साथेय की खंडपीठ के समक्ष कंपनी के निदेशक की याचिका पर सुनवाई हुई। खंडपीठ ने देखा कि निदेशक ने वित्तीय नियंत्रण की कमी, निर्णय लेने की शक्ति की कमी और निदेशक के रूप में भी निर्धारित कंपनी में एक बहुत ही सीमित भूमिका दिखाने के लिए रिकॉर्ड सामग्री पेश किया है। याचिकाकर्ता ने आयकर अधिनियम 1961 की धारा 179 के तहत आयकर अधिकारी द्वारा दिए गए आदेश को चुनौती दी थी, जिसमें याचिकाकर्ता को कंपनी से कथित रूप से देय करों के लिए उत्तरदायी ठहराया गया था।
याचिकाकर्ता ने दलील दिया कि जिस समय वह कंपनी के निदेशक थे, उस दौरान आयकर विभाग की ओर से कर या शुल्क की कोई बकाया की मांग नहीं की गई थी। 8 साल की लंबी अवधि के बाद याचिकाकर्ता को कारण बताओ नोटिस जारी किया गया, जिसमें उसे जवाब देने का निर्देश दिया गया। करदाता कंपनी के खिलाफ बकाया मांग के लिए उसके खिलाफ धारा 179 के तहत कार्यवाही क्यों नहीं शुरू की जानी चाहिए? याचिकाकर्ता ने एक विस्तृत जवाब दायर किया था और सभी दस्तावेजों, समझौतों आदि को पेश करते हुए तर्क दिया था कि कंपनी से कर की गैर-वसूली को याचिकाकर्ता द्वारा किसी भी घोर उपेक्षा, दुराचार या कर्तव्य के उल्लंघन के लिए जिम्मेदार नहीं ठहराया जा सकता है।
आयकर विभाग ने दलील दी कि, जो इसके निदेशकों की भागीदारी के बिना संभव नहीं थी। याचिकाकर्ता निजी कंपनी का निदेशक होने के नाते निर्धारित कंपनी द्वारा कर के भुगतान के लिए संयुक्त रूप से और अलग-अलग उत्तरदायी था।