जबलपुर: नोटिस के 32 वर्ष बाद भी क्यों नहीं की कार्रवाई
- डिफेंस जमीन पर कब्जे का मामला, रक्षा संपदा अधिकारी व अन्य को नोटिस
- सुनवाई के दौरान याचिकाकर्ता ने स्वयं अपना पक्ष रखा।
- किसी सार्वजनिक सुविधा के लिए जमीन लेने से पहले या तो अधिग्रहण की प्रक्रिया पूरी करें या भूमिस्वामी से सहमति बनाएँ।
डिजिटल डेस्क,जबलपुर। मप्र हाई कोर्ट में एक याचिका दायर कर कहा गया कि शहर के छावनी क्षेत्र में डिफेंस की जमीन पर कई लोगों का वर्षों से अवैधानिक कब्जा है। वर्ष 1992 में 44 कब्जाधारकों को नोटिस जारी किया गया था, लेकिन इनमें से अधिकतर प्रकरणों में अभी भी कार्रवाई नहीं की गई है।
जस्टिस राजमोहन सिंह व जस्टिस देवनारायण मिश्रा की खंडपीठ ने इस मामले में डायरेक्टर जनरल डिफेंस इस्टेट, रक्षा संपदा अधिकारी जबलपुर व अन्य को नोटिस जारी कर जवाब माँगा है। मामले पर अगली सुनवाई 13 अगस्त को होगी।
जबलपुर निवासी आबिद हुसैन ने याचिका दायर कर बताया कि डिफेंस इस्टेट ऑफिसर ने पब्लिक प्रेमिसेस एविक्शन एक्ट के तहत 44 लाेगों को 1992 में डिफेंस की जमीन से कब्जा छोड़ने का नोटिस जारी किया था।
उन्होंने बताया कि इनमें से करीब 17 प्रकरणों का निराकरण कर दिया गया, लेकिन शेष मामलों में अभी तक कार्रवाई नहीं की गई है। सुनवाई के दौरान याचिकाकर्ता ने स्वयं अपना पक्ष रखा। उन्होंने कहा कि उक्त लोगों का डिफेंस की जमीन पर अवैध कब्जा है।
उन्होंने आरोप लगाया कि डिफेंस इस्टेट ऑफिसर किसी के प्रभाव में कार्रवाई नहीं कर रहे हैं। उन्होंने तर्क दिया कि उक्त एक्ट के तहत नोटिस के तत्काल बाद कार्रवाई का प्रावधान है। याचिकाकर्ता ने इस संबंध में कई बार संबंधित अधिकारियों को अभ्यावेदन प्रस्तुत किया, लेकिन कोई कार्रवाई नहीं की गई, इसलिए हाई कोर्ट में याचिका दायर की गई।
अनुशासनात्मक प्राधिकारी का आदेश किया निरस्त
मप्र हाई कोर्ट के जस्टिस विवेक जैन की एकलपीठ ने कैश कलेक्शन कर्मी को बर्खास्त किए जाने संबंधी अनुशासनात्मक प्राधिकारी का आदेश निरस्त कर दिया। कोर्ट ने नए सिरे से सुनवाई के निर्देश दे दिए।
कोर्ट ने अपने आदेश में साफ किया कि यदि अनुशासनात्मक प्राधिकारी तीन माह की निर्धारित समय सीमा में ऐसा नहीं करते हैं तो याचिकाकर्ता वेतन सहित सभी लाभों को पाने का हकदार होगा। शिवहरि श्रीवास्तव की ओर से दलील दी गई कि वह मध्य प्रदेश विद्युत मंडल में कैश कलेक्शन कर्मी के पद पर कार्यरत था।
वर्ष 2003-04 में उपभोक्ताओं से लगभग 70 हजार रुपये बिजली की राशि लेकर जमा न करने के आरोप में उसके विरुद्ध विभागीय कार्यवाही प्रारंभ की गई। इसके अलावा उसके विरुद्ध पुलिस में भी प्रकरण दर्ज कराया गया था।
बिना नियम के नगर निगम निजी भूमि पर नहीं कर सकता कब्जा
मध्यप्रदेश हाईकोर्ट ने एक मामले में अहम व्यवस्था देते हुए कहा कि बिना किसी नियम या प्रावधान के सरकार या नगर निगम किसी भी व्यक्ति की निजी जमीन पर कब्जा या अपना अधिकार नहीं जता सकते।
किसी सार्वजनिक सुविधा के लिए जमीन लेने से पहले या तो अधिग्रहण की प्रक्रिया पूरी करें या भूमिस्वामी से सहमति बनाएँ। कोर्ट ने नगर निगम के एडिशनल कमिश्नर के उस आदेश को मनमाना करार दिया जिसके जरिए निजी व्यक्ति को उसकी जमीन पर बने नाले को खोलने कहा गया था।
जस्टिस जीएस आहलूवालिया की एकलपीठ ने एडिशनल कमिश्नर के आदेश को निरस्त करते हुए उन पर 15 हजार रुपए की कॉस्ट लगाई। कोर्ट ने उन्हें एक माह के भीतर कॉस्ट की राशि हाईकोर्ट रजिस्ट्री में जमा कराने कहा।
जबलपुर निवासी सुनीता कोहली की ओर से अधिवक्ता अंशुमान सिंह ने पक्ष रखा। उन्होंने बताया कि एडिशनल कमिश्नर ने 5 अगस्त 2024 को याचिकाकर्ता को नोटिस जारी कर उसकी निजी जमीन पर बने नाले को खोलने कहा था। उन्होंने दलील दी कि नगर निगम बिना अधिग्रहण की प्रक्रिया के इस तरह मनमाने तरीके से किसी की निजी जमीन को अपने कब्जे में नहीं ले सकता।