जबलपुर: गारमेंट क्लस्टर में सालों से जंग खा रहा वॉशिंग एंड डाईंग प्लांट
- प्रदूषण एनओसी न मिलने के कारण संचालन अटका
- रोजगार से जुड़े अहम इश्यू पर नहीं है किसी का भी ध्यान
- बिना इस प्लांट के जींस का प्रोडक्शन नामुमकिन जैसा ही है।
- प्लांट को बनाने के लिए भारत सरकार से फंड मिला था।
डिजिटल डेस्क,जबलपुर। एक ओर जहाँ सरकार द्वारा मप्र और जबलपुर में गारमेंट और टेक्सटाइल्स सेक्टर में निवेश के लिए काॅन्क्लेव और रोड शो किए गए। वहीं दूसरी ओर जबलपुर गारमेंट फैशन डिजाइन क्लस्टर एसोसिएशन स्थित वाॅशिंग और डाईंग प्लांट को पर्यावरण एनओसी नहीं मिलने के कारण यहाँ लगी मशीनें वर्षों से जंग खा रही हैं।
बताया जाता है कि फण्ड की किश्त देरी से मिलने और क्लस्टर के प्रबंधन में बीच में बदलाव होने के चलते इसके दूसरे पार्ट ईटीपी (एफ्युएंट ट्रीटमेंट प्लांट) को लगाने में करीब 6 साल लग गए। इसके कारण पूरा कम्प्लीट प्लांट 2023 में बनकर तैयार हुआ। अब इसकी पर्यावरण एनओसी नहीं मिल रही है।
यदि यहाँ पर काम चालू हो जाता ताे न केवल शहर बल्कि पूरे महाकौशल को जींस की सप्लाई यहाँ से हो सकती थी। यही नहीं क्लस्टर में बनाई गई जींस को दूसरे शहरों में निर्यात भी किया जा सकता था।
जानकारी के अनुसार जबलपुर में सालाना करीब 100 करोड़ की जींस दूसरे शहरों से आयातित करके बेचनी पड़ रही हैं यदि यह सेंटर वर्किंग में आ जाए तो जबलपुर के व्यापारियों का कामकाज बढ़ेगा और शहर के करीब 5 हजार युवाओं को रोजगार भी हासिल होगा।
इस सेंटर का नाम है जींस वॉशिंग एंड डाईंग सेंटर। इसे वर्ष 2017 में गारमेंट क्लस्टर कैम्पस में स्थापित किया गया था। इसके बाद यहाँ पर पहले पानी की टंकी और वर्ष 2023 में ईटीपी (एफ्युएंट ट्रीटमेंट प्लांट) बनाया गया, तब से लेकर अब तक यह सेंटर दिन-ब-दिन कबाड़ में तब्दील होता जा रहा है, लेकिन इसे चालू कराने की फिक्र किसी को नहीं है।
प्लांट के चालू होने पर बन सकती हैं जींस
क्लस्टर में बनाए गए प्लांट में जींस की धुलाई और कलरिंग का काम किया जाता है। बिना इस प्लांट के जींस का प्रोडक्शन नामुमकिन जैसा ही है। प्लांट को बनाने के लिए भारत सरकार से फंड मिला था।
इसमें वाॅशिंग मशीन पर एक करोड़ 74 लाख, ईटीपी पर 50 लाख, पानी टंकी पर करीब 50 लाख तथा इंफ्रास्ट्रक्चर पर करीब 80 लाख रुपए की राशि खर्च हुई है। इस प्रकार लगभग चार करोड़ की राशि खर्च हो चुकी है। जानकारी के अनुसार मध्यप्रदेश के भोपाल और इंदौर में ऐसे प्लांट बहुत बेहतर ढंग से काम कर रहे हैं।
प्लांट की राह में यह है बाधा
इस सेंटर को चालू कराने में बाधा है पर्यावरण से जुड़ी अनुमति। एक तरफ व्यापारी कह रहे हैं कि प्रदूषण नियंत्रण बोर्ड द्वारा एनओसी न मिलने से सेंटर कबाड़ होता जा रहा है। वहीं दूसरी तरफ बोर्ड के अफसर कह रहे हैं कि नियमों के विपरीत जाकर इस सेंटर का निर्माण किया गया है, जबकि निर्माण के पहले बोर्ड से अनुमति ली जानी चाहिए थी।
निकाला जा सकता है बीच का रास्ता
जानकारों का कहना है कि इस मामले में बीच का रास्ता भी निकाला जा सकता है। जनप्रतिनिधि और अधिकारी एक साथ बैठकर इस सेंटर को लेकर बीच का रास्ता निकाल सकते हैं, जिससे शहर का भी भला हो सके और पर्यावरण को भी नुकसान न हो। दु:खद यह है कि अभी तक इस दिशा में किसी तरह का प्रयास नहीं किया जा सका है।
इस मामले में जनप्रतिनिधियों से संपर्क किया गया, लेकिन आश्वासन ही दिए गए। उधर अधिकारी भी इस ओर ध्यान नहीं दे रहे हैं। ठीक इसी तरह का सेंटर जब देश और प्रदेश के दूसरे शहरों में वर्किंग कर रहा तो जबलपुर में क्यों नहीं, यह सबसे बड़ा सवाल है।
मशीनें कबाड़ हो रहीं
इस प्लांट को पूरा बनाने में करीब चार करोड़ की लागत आई है। जानकारी के अनुसार जिस दिन से मशीनें लगी हैं, एक दिन भी काम नहीं किया गया। एक बार टेंडर हुआ था, लेकिन जब प्रदूषण नियंत्रण बोर्ड की हरी झंडी नहीं मिली तो टेंडर भी कैंसल करना पड़ा।
प्लांट प्रदूषण नियंत्रण बोर्ड की अनुमति लिए बिना ही बना दिया गया है। एनओसी के लिए करीब एक साल पहले ही आवेदन मिला है। प्लांट नियमानुसार नहीं लगा है। वाॅशिंग प्लांट से दिक्कत नहीं है। डाईंग प्लांट से घातक केमिकल युक्त पानी निकलेगा, साथ ही चिमनी से धुआँ भी निकलेगा। बाजू में पुलिस कॉलोनी है। इससे यहाँ पर प्रभाव पड़ेगा।
आलोक जैन, क्षेत्रीय अधिकारी, प्रदूषण नियंत्रण बोर्ड
ईटीपी प्लांट (एफ्युएंट ट्रीटमेंट प्लांट) लगने के बाद एनओसी के लिए प्रदूषण नियंत्रण बोर्ड में आवेदन किया गया था। एनओसी नहीं मिलने के कारण वाॅशिंग प्लांट और डाईंग प्लांट का टेंडर भी पूरा नहीं हो सका। जबकि टेंडर पूर्व में निकाला जा चुका है और तीन पार्टियाँ इसमें शामिल भी हुई थीं।
दीपक जैन, एमडी, जबलपुर गारमेंट फैशन डिजाइन क्लस्टर एसोसिएशन