आक्रोश: शराब कारखाने की मान्यता रद्द करने 17 गांवों के लोगों ने प्रस्ताव भेजा
शराब बिक्री के विरोध में आक्रामक भूमिका
डिजिटल डेस्क, गड़चिरोली। आदिवासी बहुल और नक्सलग्रस्त गड़चिरोली जिले में वर्ष 1993 में शराब बंदी का कानून लागू किया गया। बावजूद इसके सरकार ने गड़चिरोली जिला मुख्यालय के एमआईडीसी में शराब कारखाने को मान्यता प्रदान की है। प्रस्तावित शराब कारखाने की मान्यता तत्काल रद्द करते हुए जिले के आदिवासियों की शराब से रक्षा करने की मांग को लेकर अब 17 गांवों के नागरिकों ने आक्रामक भूमिका अपनाने का निर्णय लिया है। पोटेगांव इलाका समिति की अगुवाई में इन गांवों के नागरिकों ने शराब कारखाने की मान्यता रद्द करने का प्रस्ताव पारित करते हुए राज्य के मुख्यमंत्री, उपमुख्यमंत्री को भिवजाया है। ऐसा न करने पर जिलेभर में आदिवासी समुदाय की ओर से तीव्र आंदोलन करने की चेतावनी भी समिति ने दी है।
समिति ने अपने पत्र में बताया कि, शराब के कारण स्वास्थ्य खराब होता है। साथ ही पैसे की बर्बादी होती है। जिले में व्यापक रूप से किए गए आंदोलन के बाद सरकार ने वर्ष 1993 में यहां शराब बंदी का कानून लागू किया। इस शराब बंदी को बरकरार रखने के लिए महाराष्ट्र भूषण डा. अभय बंग की अगुवाई में मुक्तिपथ नामक उपक्रम भी शुरू किया गया। पिछले चार वर्ष से इस उपक्रम के माध्यम से नशामुक्ति का अभियान चलाया जा रहा है। इसी अभियान के चलते सैकड़ों ग्रामीणों ने नशे से तौबा करने का फैसला लिया। साथ ही अधिकांश गांवों की महिलाओं ने कड़े कदम उठाते हुए अपने-अपने गांवों की शराब बिक्री बंद करवायी है। ऐसी स्थिति में अब सरकार स्वयं होकर गड़चिरोली में शराब कारखाना शुरू करने का प्रयास कर रही है। हाल ही में राज्य के एक कैबिनेट मंत्री के हाथों कारखाने के निर्माणकार्य का भूमिपूजन किया गया।