संकट में किसान: जीवनदायिनी प्राणहिता ही बनी किसानों के लिए अभिशाप
लगातार चार वर्ष से फसलें हो रही बर्बाद फिर भी नहींं मिल रही वित्तीय मदद
रूपराज वाकोड़े,गड़चिरोली । नदियों को जीवनदायिनी कहा जाता है। लेकिन सिरोंचा तहसील की प्राणहिता नदी तट पर बसे खेतों के लिए यही नदी अब अभिशाप बन गयी है। जल संग्रहण के लिए जैसे ही गोदावरी नदी के मेडीगड्डा बैरेज के सभी 86 गेट बंद किये जाते हैं, प्राणहिता नदी का जलस्तर बढ़ जाने से खेतों में लगाई गयी फसल पूरी तरह नष्ट हो जाती है। पिछले चार वर्षों से फसलों के नुकसान का सिलसिला लगातार जारी होने के बाद भी अब तक सरकार या प्रशासन ने इन किसानों की सुध नहीं ली है। फलस्वरूप संबंधित किसानों में रोष व्यक्त किया जा रहा है। राज्य के अंतिम छोर पर गड़चिरोली जिले की सिरोंचा तहसील बसी हुई है। प्रकृति ने इस तहसील काे नदियों का वरदान दिया है। सिरोंचा से गोदावरी, इंद्रावती और प्राणहिता नदी सटी हुई है। इन तीनों नदियों के कारण क्षेत्र के स्थानीय किसानों को पूरे सालभर तक सिंचाई की अतिरिक्त व्यवस्था नहीं करनी पड़ती। लेकिन जब से गोदावरी नदी पर तेलंगाना राज्य ने मेडीगड्डा बांध का निर्माण किया है, उसी समय से तीनों नदियां किसानों के लिए जीवनदायिनी की जगह अभिशाप बन गई है। सिरोंचा शहर के अधिकांश किसानों के खेत प्राणहिता नदी के तट पर बसे हुए हंै। तहसील में रोजगार के कोई अन्य अवसर उपलब्ध नहीं होने से अधिकांश सुशिक्षित बेरोजगार भी अपने खेतों में विभिन्न प्रकार की फसलें उगाकर अपने परिवार का गुजर-बसर कर रहे हैं।
सिरोंचा परिसर में खासकर मिर्च, कपास, धान, मुंगफली की फसल उगाई जाती है। नदी तट पर ही खेत बसे होने के कारण किसानों को सिंचाई के लिए बारिश पर निर्भर नहीं होना पड़ता। लेकिन जैसे ही तेलंगाना राज्य को पानी की कमी महसूस होती है, मेडीगड्डा बांध के सारे 86 गेट बंद कर दिये जाते हंै। इस बैरेज में पानी संग्रहण की प्रक्रिया जिस समय शुरू हाेती है, ठीक उसी समय प्राणहिता नदी का जलस्तर तीव्र गति से बढ़ जाता है। यह पानी नदी तट पर बसे खेतों में पहुंच जाता है जिसके चलते खेतों में जलजमाव की स्थिति निर्माण हो जाती है। खेतों में लगाई गयी फसलें पूरी तरह पानी में रहने के कारण फसलें नष्ट हो जाती है। फसलों के नुकसान का यह सिलसिला पिछले चार वर्षों से लगातार जारी है। बावजूद इसके सरकार और प्रशासन की ओर से सिरोंचा के नुकसानग्रस्त किसानों के लिए अब तक कोई कारगर कदम नहीं उठाया गया है। किसानों ने फसलों के नुकसान के ऐवज में अनेक बार वित्तीय मदद की मांग की है। लेकिन किसानों की इस मांग पर अनदेखी हो रहीं है। जिससे किसानों में रोष व्यक्त किया जा रहा है। वर्तमान में अक्टूबर माह शुरू होकर मेडीगड्डा बांध के सारे गेट शुरू है। इसी कारण प्राणहिता नदी का जलस्तर नियंत्रित है। लेकिन जैसे ही नवंबर माह शुरू होगा, वैसे ही पानी संग्रहण की प्रक्रिया आरंभ होगी। ऐसी स्थिति में एक बार फिर फसलों के नुकसान का मंजर सिरोंचा के नदी तट पर बसे खेतों में देखने मिलेगा। लगातार हो रहे नुकसान को देख कुछ किसानों ने अपने खेतों में फसलें उगाना भी बंद कर दिया है।