'दस का दम' दिखा कर चांद पर लैंड करेगा चंद्रयान-3, इस बार गलती की कोई गुंजाइश नहीं, ISRO ने की है ये खास तैयारी
डिजिटल डेस्क, नई दिल्ली। भारत का चंद्रयान-3 लॉन्चिंग के लिए तैयार है। आज मंगलवार को चंद्रयान-3 की लॉन्चिंग की रिहर्सल भी पूरी कर ली गई है। यह रिहर्सल पूरे 24 घंटे तक चली। भारतीय अंतरिक्ष अनुसंधान संगठन (ISRO) की टीम ने श्रीहरिकोटा के लॉन्च सेंटर से लेकर अन्य स्थानों के सभी केंद्र, टेलिमेट्री सेंटर और कम्यूनिकेशन यूनिट्स की तैयारियों का जायजा लिया। इस दौरान माहौल लॉन्च के समय जैसा ही था।
बता दें कि रिहर्सल के दौरान ऐसा इसलिए भी किया जाता है, ताकि तकनीकी दिक्कतों पर काम किया जा सके। साथ ही, लॉन्च से पहले सभी क्रमों पर ध्यान रखा जाता है। बस अब इंतजार शुक्रवार (14 जुलाई) के दिन का है। जब चंद्रयान-3 पूरी दुनिया में भारत के लिए अपनी मिसाल पेश करेगा। चंद्रयान-3 शुक्रवार दोपहर 2:35 बजे श्रीहरिकोटा के सतीश धवन स्पेस सेंटर के दूसरे लॉन्च पैड से लॉन्च होगी। यह चंद्रयान-2 का फॉलो-अप मिशन है, जिसकी सितंबर 2019 में सॉफ्टवेयर में तकनीकी खामियों के चलते चंद्रमा पर क्रैश लैंडिंग हुई थी।
जानकारी के मुताबिक, चंद्रयान-3 दस चरणों में चंद्रमा की सतह तक पहुंचने वाला है।
पहला चरण
इसमें धरती पर होने वाली सभी प्रकिया शामिल है। इसमें तीन स्टेज शामिल हैं। पहली- रॉकेट लॉन्च करने से पहले की स्टेज। दूसरी- लॉन्च और रॉकेट को अंतरिक्ष की कक्षा तक ले जाना। तीसरी- इसमें धरती की अलग-अलग कक्षाओं से रॉकेट आगे बढ़ाया जाता है। इस दौरान चंद्रयान-3 धरती के चारों ओर लगभग 6 चक्कर पूरा करेगा। इस पूरी प्रक्रिया को पृथ्वी केंद्रित चरण के रूप में जाना जाता है। इसके बाद रॉकेट दूसरे चरण के तैयार होता है।
दूसरा चरण
दूसरे फेज में चंद्रमा की ओर चंद्रयान-3 को आगे भेजा जाएगा। इसमें ट्रैजेक्टरी को ट्रांसफर किया जाता है। यानी इस दौरान स्पेसक्राफ्ट (चंद्रयान-3) लंबे समय के लिए सोलर ऑर्बिट की ओर रहते हुए चंद्रमा की ओर आगे बढ़ता है।
तीसरा चरण
इस फेज में स्पेसक्राफ्ट को चांद्र की कक्षा में भेजा जाता है। इस फेज को लूनर ऑर्बिट इंसर्सन फेज के नाम से भी जाना जाता है।
चौथा चरण
इस चरण मे चंद्रयान-3 चांद की कक्षा में सात से आठ बार चक्कर लगाएगा। इस दौरान चंद्रयान-3 धीरे-धीरे चंद्रमा की सतह से करीब 100 किमोमीटर की उंच्चाई पर चक्कर लगाना शुरू करेगा।
पांचवी चरण
यह चरण काफी महत्वपूर्ण है। इस दौरान प्रोपल्शन मॉड्यूल और लूनर मॉड्यूल एकदूसरे से अलग होंगे। यानि साधारण भाषा में समझें तो ऑर्बिटर और लैंडर एक दूसरे से अलग होंगे। इस दौरान ऑर्बिटर लैंडर को चंद्रमा की सतह पर लैंड करना करने में मदद करेगा।
छठा चरण
इस दौरान लैंडर की लैंडिंग जिस दिशा में हो रही है, उसमें और स्पेस केंद्र से ऑर्बिटर द्वारा गति को कम किया जाएगा। (बता दें कि, लैंडर के अंदर ही रोवर होता है। जो लैंडर के चंद्रमा पर सफल लैंडिंग होने के बाद रोवर लैंडर से बाहर निकलता है। जिसके बाद रोवर चंद्रमा की सतह पर शोध करने के तैयार हो जाता है।)
सातवां चरण
यह चरण सबसे ज्यादा महत्वपूर्ण होता है। इसे प्री-लैंडिंग कहा जाता है। यानी लैंडिंग से ठीक पहले ही स्थिति।
आठवां चरण
इसमें लैंडर को लैंडिंग कराई जाएगी।
नौवां चरण
चंद्रमा की सतह पर लैंडर और रोवर लैंड होकर सामान्य होने की प्रक्रिया। मतलब इस दौरान लैंडर और रोवर स्थिति को सामान्य होने में लगने वाला समय।
दसवां चरण
इसके बाद प्रोपल्शन मॉड्यूल वापस चंद्रमा की 100 किलोमीटर की कक्षा में पहुंचेगा।
प्रोपल्शन मॉड्यूल ऑर्बिटर से कैसे अलग?
इसरो ने चंद्रयान-3 में ऑबिटर को नहीं भेजने का निर्णय लिया है। इस बार वैज्ञानिक चंद्रयान-3 के साथ स्वदेशी प्रोपल्शन मॉड्यूल भेजने की तैयारी में है। यह लैंडर और रोवर को चंद्रमा की कक्षा में पहुंचाने काम करेगा। इसके बाद यह लैंडर से अलग होकर चंद्रमा के चारों तरफ 100 किलोमीटर की गोलाकर कक्षा में चक्कर लगाना शुरू कर देगा। इसे हम सभी ऑर्बिटर इसलिए नहीं कह सकते हैं, क्योंकि यह चंद्रमा की स्टडी नहीं करेगा। इसके वजन की बात करें तो यह 2145.01 किलोग्राम है। जिसमें 1696.39 किलोग्राम ईंधन शामिल है। इस हिसाब से देखे तो मॉड्यूल का असली वजन 448.62 किलोग्राम है।
LVM3-M4/Chandrayaan-3️ Mission:
— ISRO (@isro) July 5, 2023
Today, at Satish Dhawan Space Centre, Sriharikota, the encapsulated assembly containing Chandrayaan-3 is mated with LVM3. pic.twitter.com/4sUxxps5Ah
इसमें एस बैंड ट्रांसपोंडर भी लगा है। जिसका सीधा संपर्क इंडियन डीप स्पेस नेटवर्क के पास रहेगा। यानी जो सिग्नल लैंडर-रोवर से मिलेगा, उसे बैंड ट्रांसपोंडर भारत भेजेगा। इस ट्रांसपोंडर की उम्र तरकरीब 3 से 6 माह तक रहेगी। इसका मतलब है कि यह तीन से छह माह तक रोवर से मिले सिग्नल को भारत भेजेगा।