एक्सक्लूसिव: मराठाओं के साथ धोखा हुआ है, जिसको भी गिराना है, ताकत से गिराएं - जरांगे पाटील

  • 6 जून तक मराठा आरक्षण नहीं मिला तो विधानसभा चुनाव लड़ने का अल्टीमेटम
  • प्रधानमंत्री मोदी ने समाज को ‘चिल्लर’ समझा, देवेंद्र फडणवीस को द्वेष है

Bhaskar Hindi
Update: 2024-05-07 13:41 GMT

डिजिटल डेस्क, जालना, संजय देशमुख। मराठा आरक्षण आंदोलन की अगुवाई कर रहे मनोज जरांगे-पाटील अपने साथ हुए विश्वासघात के बाद लोकसभा चुनाव में आरक्षण के विरोधियों को सबक सिखाने के मूड़ में हैं। उन्होंने सरकार पर मराठा समुदाय के साथ ‘धोखा’ करने का आरोप लगाया। समुदाय से कहा कि मराठा-कुणबी कानून और ‘सगे-सोयरे’ की मांग का समर्थन करने वाले लोगों को सहयोग करें और इस बार जिनको भी गिराना है, उसे ताकत से गिराएं। जरांगे ने कहा कि 6 जून तक आरक्षण नहीं मिलने पर मराठा समाज तीन महीने बाद होने वाले विधानसभा चुनाव में अपने प्रत्याशी खड़े करेगा। उन्होंेने स्पष्ट किया कि वह खुद कभी राजनीति में नहीं उतरेंगे। मराठा समाज की भूमिका अब मांगने वाले की नहीं, बल्कि देने वाला बनने की होगी। इस समय मराठवाड़ा की 8 लोकसभा सीटों पर प्रचार अंतिम चरण में है। मराठवाड़ा के अलावा महाराष्ट्र के अन्य हिस्सों में जहां चुनाव होने हैं, वहां मराठा आरक्षण का भावनात्मक मुद्दा चुनाव में छाया हुआ है। दैनिक भास्कर ने जालना जिले के अंतरवाली सराटी गांव में पहुंचकर जरांगे पाटील से मराठा आरक्षण आंदोलन को लेकर विभिन्न मुद्दों पर खुलकर चर्चा की। जरांगे ने कहा कि प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी ने मराठा समाज को ‘चिल्लर’ समझा और उपमुख्यमंत्री देवेन्द्र फडणवीस को मराठा समाज के प्रति द्वेष है।

ऐसा क्या हुआ कि सरकार अपने वादे से मुकर गई और विश्वासघात हुआ?

जुबान उन्होंने दी थी। हमारी तो पहले दिन से ही मराठा समुदाय को सरसकट (पूर्ण रूप से) आरक्षण देने की मांग थी। तब सरकार ने कहा था कि तकनीकी तौर पर दिक्कत है। कानून विशेषज्ञ, आईएएस, आईपीएस सचिव स्तर के अधिकारी, मंत्रीगण सभी तो अंतरवाली सराटी गांव में आए थे। ‘सगे-सोयरे’ शब्द की संकल्पना इन्हीं लोगों की थी। उनका ही मानना था कि इस शब्द के आधार पर आरक्षण दिया जा सकता था। हम भी तैयार थे कि ‘सरसकट’ की बजाए ‘सगे-सोयरे’ के नाम पर आरक्षण मिल रहा है। सबकुछ तय होने के बाद सरकार ने धोखा’ किया। 6 जून तक आरक्षण नहीं मिला तो विधानसभा चुनाव में हम मैदान में होंगे। हमारी गरीबों की सरकार बनेगी, तो वह हमें आरक्षण देगी।

चुनाव में जरांगे इफेक्ट काम कर रहा है?

इफेक्ट है या नहीं यह हमें बताने की जरूरत नहीं। उनको खुद ही समझ आ रहा है। सरकार मराठा को कमतर आंक रही थी। गांव-खेड़े का मराठा हमारे साथ है। कुछ फितूर नेता भी हैं। मराठा समाज एक नहीं होता तो नरेन्द्र मोदी क्यों लगातार महाराष्ट्र में आ रहे हैं? उन पर यह नौबत आन पड़ी है कि वे महाराष्ट्र के मराठी चैनल को इंटरव्यू दे रहे हैं। मोदी को मराठा के एकजुटता का डर है।

मराठवाड़ा की आठ सीटों पर कितना असर होगा?

मराठवाड़ा ही नहीं, महाराष्ट्र में भी आरक्षण आंदोलन का इफेक्ट होगा। ऐसा नहीं होता तो पुणे, बारामती के लोग अंतरवाली सराटी में क्यों आ रहे हैं। जलगांव-नागपुर, मुंबई-सिंधुदुर्ग के लोगों का यहां क्या काम है। क्योंकि उन्हें डर लग रहा है।

आपने कहा था कि उम्मीदवार होने की बजाए उन्हें हराने वाले बनो?

भले ही हम चुनाव मैदान में नहीं हैं, लेकिन गिराने में भी एक तरह की विजय ही होती है। वोटों का डर लगना चाहिए। जहां 88 सीटें हैं, वहां एक ही चरण में वोटिंग हो रही है। पर, महाराष्ट्र की 48 सीटों के लिए पांच चरण में चुनाव हो रहे हैं। क्योंकि उन्हें नरेंद्र मोदी को महाराष्ट्र में प्रचार के लिए घुमाना है। यह जो डर है यही मराठा समुदाय की विजय है। मैंने मराठा-कुणबी कानून के पक्ष में और ‘सगे-सोयरे’ की मांग के समर्थन में जो लोग हैं, उन्हें मराठा समुदाय से सहयोग करने की अपील की है। मैंने किसी को हराने अथवा जिताने के लिए नहीं कहा है, लेकिन यह जरूर कहा है कि इस बार जिनको भी गिराना है, उसे ताकत से गिराएं।सरकार ने जो 10 प्रतिशत का आरक्षण दिया है, उससे नुकसान होगा या लाभ?

नुकसान ही होगा, क्योंकि पिछड़ा आयोग खुद कह रहा है कि मराठा समाज का पिछड़ापन 10 प्रतिशत है। ऐसी स्थिति में कानून कहता है कि उसे ओबीसी कोटे से आरक्षण मिलना चाहिए। आरक्षण की सीमा 50 प्रतिशत से ऊपर गई है। इन्द्र साहनी (आयोग) के फैसले के अनुसार 50% से ऊपर होने पर अदालत में आरक्षण टिकेगा नहीं। सरकार के 10 प्रतिशत के फैसले का भी सरकारी भर्ती में लाभ नहीं है। दोनों परिस्थिति में मराठा समुदाय की गर्दन मरोड़ी गई है।

चुनाव के दौरान भूमिका बदलने के लिए कोई दबाव आया है?

किसी की ताकत नहीं है, मुझ पर दबाव बनाने की। 75 वर्ष से हमारा समाज अन्याय सहन कर रहा है। हमारे ही बाप-दादाओं ने इन्हें राजगद्दी पर बिठाया है। मराठा समुदाय कभी जातिवाद नहीं करता। ऐसा किया होता तो गोपीनाथ मुंडे और उनकी बेटी इतनी बार सांसद नहीं बनते। छगन भुजबल, सुशील कुमार शिंदे भी नहीं बनते। ए.आर. अंतुले, वसंतराव नाईक, मनोहर जोशी मुख्यमंत्री नहीं बनते।

आरोप है कि मराठा आरक्षण आंदोलन के पीछे शरद पवार और अन्य नेता हैं?

समर्थन देने का आरोप है या पैसे देने का? इतना कमजोर नहीं है मराठा समुदाय। लोग पसीना बहाकर पैसे दे रहे हैं आंदोलन के लिए। खुद के अस्तित्व को बचाने का समाज में दम है। हमें इन नेताओं की जरूरत नहीं है। इतने दिन तक आंदोलन चलाना आसान नहीं है। पैसे मिले होते तो हमें देने वालों के इशारे पर चलना होता। युति सरकार में ही संभ्रम है, पहले कह रहे थे कि विपक्ष का समर्थन है। फिर कहा कि मुख्यमंत्री एकनाथ शिंदे हमारे पीछे खड़े हैं, फिर उद्धव ठाकरे, कांग्रेस और अंत में शरद पवार का नाम लिया जा रहा है।

एसआईटी में फंसाने की कोशिश की?

देवेन्द्र फडणवीस में मराठा समाज के प्रति द्वेष है। मुझे एसआाईटी में फंसाने का प्रयास किया। फडणवीस को ईमानदार लोग नहीं चाहिए। फडणवीस के मराठा द्वेष के चलते नरेंद्र मोदी को रात बिताने के लिए महाराष्ट्र में आना पड़ता है। मोदी कभी भी उनकी पार्टी के चुनाव चिह्न को छोड़कर दूसरे दलों के चिह्न के प्रचार के लिए नहीं आए। मोदी पर इस बार इतना खराब समय आया है कि वे दूसरे दलों के चिह्न के लिए प्रचार कर रहे हैं। अब तक मोदी मराठाओं को ‘चिल्लर’ समझते थे। अब उनके ध्यान में आया कि महाराष्ट्र में मराठाओं के बगैर पत्ता भी नहीं हिलता है। 6 जून तक आरक्षण नहीं मिला तो मराठा समुदाय के अलावा दलित, मुस्लिम, लिंगायत सब को साथ लेकर आंदोलन किया जाएगा। मुझे राजनीति में नहीं जाना है। हम मांगने वाले नहीं देने वाले बनेंगे।

आपने मराठा-ओबीसी समुदाय के बीच जहर घोलने का काम किया?

मराठा-ओबीसी में कोई विवाद नहीं है। भ्रम फैलाया जा रहा है। राजनीति हो रही है। सतही स्तर पर हम सब सुख-दुख में साथ हैं।

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