Chhatrapati Sambhaji Nagar News: तनवानी के पाला बदलाने से बदले हालात, जीतते-जीतते हारने वाले को भी बाजीगर कहते हैं!

  • शिवसेना (उद्धव) प्रत्याशी तनवानी के ऐन वक्त पर पाला बदलने से बदले हालात
  • 32 वर्ष से हैं शिवसैनिक
  • मध्य में जीत की उठापटक

Bhaskar Hindi
Update: 2024-10-31 12:48 GMT

Chhatrapati Sambhaji Nagar News : दीपक अग्रवाल | राजनीति में पाला बदलने की घटनाएं अप्रत्याशित ही रहती हैं। ऐसे ही यहां औरंगाबाद मध्य की हॉट सीट पर नामांकन भरने से पहले ही शिवसेना (उद्धव) के वरिष्ठ नेता, पूर्व विधायक, पूर्व महापौर किशनचंद तनवानी ने सभी को आश्चर्य में डालते हुए हिंदू वोटों को नहीं कटने देने के लिए नाम वापस लेने की घोषणा ही नहीं की, शिवसेना (शिंदे) उम्मीदवार प्रदीप जायसवाल को खुल्ला समर्थन भी दे डाला। हालांकि, शिवसेना (उद्धव) इस संकट से उबरते हुए एक मराठा उम्मीदवार बालासाहब थोरात को मैदान में उतार दिया, लेकिन जो नुकसान हुआ, जो संदेश गए, वे किस पार्टी के हित में बैठेंगे, यह वक्त ही बेहतर बताएगा।

32 वर्ष से हैं शिवसैनिक

प्रदीप जायसवाल और किशनचंद तनवानी दोनों कट्टर शिवसैनिक हैं। दोनों के बीच दोस्ती भी है। गत 32 वर्ष से शिवसेना में कार्यरत तनवानी महापौर, विधान परिषद में सदस्य भी बने। 2014 में शिवसेना और भाजपा अलग होकर लड़े तो वह टिकट की आस में भाजपा में आए और जायसवाल से लड़ाई में मत विभक्त होने से एमआईएम के इम्तियाज जलील बाजी मार ले गए। अनेक पदों की आस लगाए-लगाए बैठने के बाद 2019 में महाविकास आघाड़ी की सरकार आते ही उनका भाजपा से मोह भंग हुआ और वे घर लौट गए। शिवसेना में विभाजन के बाद भी तनवानी उद्धव के साथ बने रहे और उन्हें जिलाध्यक्ष की जिम्मेदारी देने के साथ ही एक बार फिर से मविआ की ओर से औरंगाबाद मध्य से उम्मीदवारी दी गई।

सवाल तो उठेंगे ही

इस उठापटक पर सवाल यह भी है कि जो तनवानी इतने दिनों से चुनाव की तैयारियों में लगे थे, क्या उनको हिंदू मतों के बंटवारे का अंदाजा नहीं था? वह कहते रहे हैं कि मुस्लिम आज केवल एमआईएम को ही वोट नहीं करता, भाजपा को हराने के लिए शिवसेना (उद्धव) के साथ भी जाता है, तो उन्होंने एक जीती हुई बाजी को हारने का फैसला क्यों किया? जीतते-जीतते हारे क्यों? क्या कहीं कोई डील हुई? हालांकि, उन्होंने अप्रत्यक्ष रूप से वरिष्ठ नेता अंबादास दानवे को इस कदम के लिए जिम्मेदार ठहराया है, जो कथित रूप से अपने प्रिय मराठा उम्मीदवार को ही चुनाव में उतारने के पहले दिन से पक्षधर थे। जिले के अन्य उम्मीदवारों के चयन में भी उनकी प्रतिक्रिया नहीं लिए जाने और उनकी चुनावी बैठकों को कार्यकर्ताओं का समर्थन नहीं मिलने से वह आहत थे। कयास बहुत सारे हैं, विभिन्न दृष्टिकोण के हें, लेकिन यकीनन कदम खींचने का फैसला तनवानी के लिए आसां तो नहीं रहा होगा। इस निर्णय से बहुत सहज तो शिवसेना (उद्धव) भी नहीं रहेगी, लेकिन शिवसेना व भाजपा मजबूत बनेंगे, इस पर भी प्रश्नचिन्ह रहेगा।

ऐसी रही है मध्य में जीत की उठापटक

औरंगाबाद मध्य शहर में सर्वाधिक मुस्लिम बहुत इलाका है। मुस्लिम मतदाता यहां करीब एक लाख, 20 हजार हैं। 2024 के लोकसभा चुनाव में एमआईएम उम्मीदवार को मध्य से 85,937 मत मिले थे। 2009, 2014 और 2019 के विधानसभा चुनावों के विजयी उम्मीदवारों के मतों की तुलना में बहुत अधिक है। 2009 में निर्दलीय के रूप में जायसवाल जब जीते थे, तो उन्होंने केवल 49965 मत ही पाए थे। 2014 में वह हार गए। उन्हें 41,861 तो विजेता एमआईएम को 61,481 वोट मिले थे। 2019 में 82217 मत लेकर जायसवाल ने एक बार फिर विजय पताका लहराई और एमआई्रएम उम्मीदवार सिद्दीकी को 13,892 वोटों से हराया था।

वोटों का ऐसा है मायाजाल

मध्य में तीनों पूर्व चुनावों में हिंदू विरुद्ध मुस्लिम की लड़ाई ही देखने को मिली है। अब यह भी देखना होगा कि जरांगे के आंदोलन के बाद हिंदू मत मराठा व ओबीसी में कितने बंटे हैं। यहां करीब 35 हजार मराठा मत हैं। 50 हजार मत दलित समाज के हैं। 2019 में वंचित बहुजन आघाड़ी को 27,032 मत मिले थे। इस बार भी वंचित ताल ठोंक चुकी है, तो नतीजों का बाजीगर कौन बनेगा, अंदाजा लगाना आसान नहीं है।


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