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भारत में निर्मित होगा Elon musk के स्पेसएक्स जैसी खूबियों वाला रॉकेट, दुनिया देखेगी फिर भारत की ताकत
डिजिटल डेस्क,दिल्ली। इसरो का वर्कहॉस कहे जाने वाला पीएसएलवी जो भारत का सबसे विश्वसनीय रॉकटों में से एक है। लेकिन आज के आधुनिकता के जमाने को देखें तो यह काफी पुराना हो चुका है। स्पेश में शोध के लिए अब नई तकनीक के साथ नए रॉकेट्स की जरुरत है। इन्हीं को ध्यान रखते हुए अब केंद्र सरकार ऐसे रॉकेट्स को बनाने की तैयारी कर रही है जो स्वयं ही टेकऑफ करने में सक्षम हो। रॉकेट्स का एक हिस्सा खुद ही वापस आकर लैंड कर सके। जिसे सामान्य भाषा में वर्टिकल टेकऑफ एंड वर्टिकल लैंडिंग कहा जाता है। बता दे कि केंद्र सरकार की ओर से बताया गया कि स्पेस डिपार्टमेंट ऐसे रॉकेट्स बनाने जा रहा है, जो एलन मस्क की कंपनी स्पेसएक्स ने फॉल्कन-9 और स्टारशिप रॉकेट्स की तरह खुद ही टेकऑफ एंड वर्टिकल लैंडिंग कर सकेंगा। इस तरह की रॉकेट्स को आज से दो दशक पहले बनाने के बारे में कोई सोच भी नहीं सकता था लेकिन भारत उन चुनिंदा देशों में शामिल होने जा रहा है जो इस तरह के रॉकेट्स को बनाएगा। हालांकि, इसके पहले भी भारत अतिरिंक्ष में नया कीर्तिमान स्थापित कर चुका है। जिसकी लोहा सारी दुनिया मानती रही है।
फॉल्कन-9 जैसै बनाना चाहती है सरकार रॉकेट
एलन मस्क की फॉल्कन-9 रॉकेट को सबसे भरोसेमंद माना जाता है। इस रॉकेट को कई बार उपयोग में लाया जा सकता है। इसको पंसद किए जाने की मुख्य वजह है रॉकेट का रीयूजेबल होना। यानि इसके एक बड़े भाग को दोबारा से इस्तेमाल किया जा सकता है। इसी तरह एलन मस्क की स्पेसएक्स एजेंसी ने स्टारशिप नाम के रॉकेट का प्रशिक्षण कर रही है। केंद्र सरकार कुछ इसी तरह का रॉकेट बनाना चाहती है।
रीयूजेबल है रॉकेट्स फॉल्कन-9
मौजूदा सरकार में केंद्रीय विज्ञान मंत्री डॉ. जितेंद्र सिंह से लोकसभा में सवाल पुछा गया था कि, केंद्र सरकार ऑटोनॉमस प्रसिशन लैडिंग ऑफ स्पेस रॉकेट पर क्या काम कर रही है? सवाल का जवाब देते हुए केंद्रीय मंत्री डॉ. जितेंद्र सिंह ने कहा कि अंतिरिक्ष विभाग ऐसे रॉकेट्स टेक्नोलॉजी पर काम कर रही है। जिसे आसानी से वर्टिकल टेकऑफ एंड वर्टिकल लैंडिंग कराया जा सके। जानकारी के लिए बता दे कि अगर भारत ने ये रॉकट बना लिया तो वो एलन मस्क की फॉल्कन-9 रॉकेट्स की तरह दोबार से उपयोग किया जा सकता है। फॉल्कन-9 रॉकेट्स की विशेषता है कि ये अंतरिक्ष मे जाकर घूमते नहीं बल्कि रॉकेट पर स्थित सैटेलाइट को एक सीमा तक छोड़ कर खुद वापस आने की क्षमता रखता है। अगर किसी वजह से फॉल्कन-9 रॉकेट्स में गड़बड़ी दिखाई देती है तो उसे ठीक कर दोबारा इस्तेमाल में लाया जा सकता है। यही काम एलन मस्क की स्पेसएक्स एजेंसी कर रही है।
प्राइवेट कंपनियां हैं तैयार
कुछ ही दिनों पहले इसरो ने निजी कंपनियों के लिए रॉकेट लॉन्च किया था। जिसमे किसी दूसरी निजी कंपनी के लिए लॉन्च पैड और कंट्रोल सेंटर तैयार किया गया था। भविष्य में हो सकता है कि निजी कंपनियां भी अपना रीयूजेबल रॉकेट्स बनाए। ऐसा संभव है कि शुरूआत किसी छोटे सैटेलाइट्स को लॉन्च करने वाले रीयूजेबल ऑटोनॉमस रॉकेट्स से हो सकती है। इनके सफल होने के बाद बड़े आकार के रॉकेट बनाए जा सकते है। जिसे भारी सैटेलाइट्स को बिना किसी रूकावट के स्पेस में भेजा जा सके।
इस प्रकार के रॉकेट्स का फायदा सीधे तौर पर दूसरे देश की कंपनियां को होता है। इस तरह के रॉकेट्स को सरकारें या संस्थाएं अपने छोटे सैटेलाइट्स को लॉन्च करने के लिए सस्ते व भरोसेमंद रॉकेट्स स्पेस एजेंसी को खोजती रहती हैं। इस काम के लिए भारत उन देशों में सबसे भरोसेमंद देश है। विज्ञान के क्षेत्र में भारत भी नए-नए कीर्तिमान स्थापित कर रहा है। ऐसी संभावना है कि अगले पांच साल में भारत भी रीयूजेबल ऑटोनॉमस रॉकेट्स की सीरीज शुरू कर सकता है। . उम्मीद है कि स्पेस टेक्नोलॉजी का नया दौर नये रॉकेट्स से ही हो।
Created On :   10 Dec 2022 10:04 PM IST