बीजेपी की सुरक्षा कमान क्या सपा के अजेय कन्नौज को भेद पाएगी?
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- जातीय समीकरण तय करते है जीत
डिजिटल डेस्क, लखनऊ। उत्तरप्रदेश विधानसभा चुनाव के तीसरे चरण में दो दशक से अधिक समय से सपा के कब्जे वाली कन्नौज सदर सीट पर इस बार लोग कुछ नये कल की तलाश में मतदान करने वाले है। सुरक्षित कन्नौज सदर सीट पर अनुसूचित जाति और ब्राह्मण वोटरों का बाहुल्य है। तीसरे नंबर पर यहां मुस्लिम मतदाताओं की संख्या है। करीब 23 फीसद ब्राह्मण मतदाता हर बार यहां जीत में निर्णायक होते हैं। कन्नौज अपने इत्र कारोबार की खुशबू देश दुनिया में फैला रहा है। व्यापार रूप से समृद्ध कन्नौज सांस्कृतिक इतिहास में भी अव्वल दर्जा प्राप्त किए हुए है। कन्नौज से सम्राट हर्षवर्धन, राजा जयचंद से लेकर बुंदेलखंड के महोबा के वीर आल्हा-ऊदल की यादें जुड़ी हैं।
सपा से पहले इस सीट पर बीजेपी का दबदबा था। बीजेपी के बनवारी लाल दोहरे का साल 2002 से पहले इस सीट पर एक तरफा राज था। इस सीट पर जीत की हैट्रिक बनवारी के नाम दर्ज है।
साल 2002 में समाजवादी के कल्याण सिंह ने बीजेपी के बनवारी लाल को हराकर इस सीट पर अपना कब्जा किया। सपा ने साल 2007 में सपा ने कल्याण सिंह को बदलकर अनिल दोहरे को प्रत्याशी बनाया। तब से कन्नौज पर अनिल का कब्जा है। इस बार भी सपा के अनिल के सामने बीजेपी टिकट पर कन्नौज वासी कानपुर के पुलिस कमिश्नर आईपीएस असीम अरूण उन्हें चुनावी मैदान में टक्कर दे रहे है। बीएसपी ने समरजीत दोहरे और कांग्रेस ने विनीता देवी पर दांव लगाया है, इस बार के चुनावी महासमर में कन्नौज को नए और बेहतर कल की तलाश है।
चुनावी मैदान में नए लोग नए रंग बिखेर रहे है। चुनावी माहौल में मुद्दे नदारद है जातियों के बीच जाति की बात हो रही है, और चुनावी मोड़ में हर राजनैतिक पार्टी जातीय समीकरण को साधने में लगे है। वोट करने के लिए लालायित शिक्षित युवाओं के बीच सुरक्षा, कानून व्यवस्था, बेरोजगारी, अराजकता की बयार चल रही है। आने वाले कल और उज्जवल भविष्य के लिए कन्नौज में नए रंग दिखने तय हैं।
Created On :   19 Feb 2022 12:08 PM IST