कांग्रेस के लिए चुनौती है परिवारवाद और परंपरागत नेता, कम सीटों पर चुनाव लड़ने की बजाय उन मुद्दों पर फोकस करे जिनसे पनपते हैं क्षेत्रीय दल

कांग्रेस के लिए चुनौती है परिवारवाद और परंपरागत नेता,  कम सीटों पर चुनाव लड़ने  की बजाय उन मुद्दों पर फोकस करे जिनसे पनपते हैं  क्षेत्रीय दल
जीत का मंत्र कांग्रेस के लिए चुनौती है परिवारवाद और परंपरागत नेता, कम सीटों पर चुनाव लड़ने की बजाय उन मुद्दों पर फोकस करे जिनसे पनपते हैं क्षेत्रीय दल
हाईलाइट
  • हित से अधिक जनकल्याण पर फोकस करें कांग्रेस

डिजिटल डेस्क, नई दिल्ली, आनंद जोनवार ।  अभी हाल ही में कांग्रेस पार्टी में आगामी चुनावों और भविष्य में पार्टी के परफॉर्मेंस की प्रोग्रेस को लेकर पार्टी आलाकमान  की चुनावी रणनीतिकारों के साथ  बैठक हुई।  खबरों से  मिली जानकारी के मुताबिक चुनावी रणनीतिकारों ने कांग्रेस को कुछ राज्यों में अकेले और कुछ राज्यों में अन्य सहयोगी दलों के साथ चुनाव लड़ने पर फोकस करने की सलाह दी है। साथ ही आने वाले लोकसभा चुनावों में पार्टी अच्छा प्रदर्शन करे इसके लिए पार्टी को करीब 370 सीटों पर विशेष फोकस करने की हिदायत दी गई है। लेकिन कांग्रेस के गिरते ग्राफ और खोती हुई विश्वसनीयता को पाने के लिए कांग्रेस के लिए ये रणनीति पर्याप्त नहीं है। कम सीटों पर चुनाव लड़ना ही कांग्रेस के लिए पर्याप्त नहीं है, कांग्रेस को उन फेक्टरों पर भी फोकस करना होगा जिनकी वजह से वह सत्ता से दूर हुई। मुरैना विधायक राकेश मावई ने भास्कर हिंदी संवाददाता आनंद जोनवार से बात करते हुए ये बात कही। 

वरिष्ठ नेताओं की सलाह

सत्ता से दूर होती कांग्रेस के लिए वो कारक भी शामिल हो जिनके जरिए उनका प्रतिद्वंदी उन पर चुनावी प्रहार करता है। उन विपक्षी प्रहारों से एक कदम आगे चलकर उनसे बेहतर सामाजिक सियासी राजनैतिक और संगठनात्मक विचार जनता के बीच लाने चाहिए। वर्तमान समय में कांग्रेस भले ही अपने देशभक्ति के तमाम प्रमाण देते हुए देश के कोने कोने में चक्कर काट रही है , लेकिन विपक्ष की पार्टियों के हमलों को जनता के बीच में सटीक जवाब न देना कांग्रेस की कमजोरी का विशेष कारण है। यदि कोई पार्टी अपने हित में देश भक्ति की परिभाषा देश हित में अपने स्तर पर गढ़ती है तो अन्य पार्टियों को जनता के बीच देश भक्ति की परिभाषा  सामाजिक स्तर पर जनता के हित से इतर व्यक्तिगत कल्याण या सामाजिक कल्याण से देश भक्ति की नई डेफिनेशन प्रतिक्रियास्वरूप देना जरूरी है। क्योंकि देशहित में केवल देश ही नहीं होता, उसमें देश, देश की सीमा, और देश के लोग भी शामिल होते है। देश सुरक्षा को छोड़ दिया जाए तो सामाजिक कल्याण के बिना देशभक्ति और देशहित अधूरा है। देश की सबसे पुरानी पार्टी अपने पक्ष में विरोधी से इतर इसकी अलग परिभाषा गढ़ सकती  हैं। 

चौंकाने वाले फैसलों की दरकार

कांग्रेस को उन सवालों का तोड़ निकालना चाहिए जिनकी वजह से उनकी विरोधी पार्टी उन पर हमलावर हो रही है।  वर्तमान दौर में विरोधी पार्टी कांग्रेस को परिवारवाद और पंरपरागत नेताओं की पार्टी के दौर पर जनता के बीच प्रचारित कर लोकतंत्र के लिए खतरा बता रही है तो कांग्रेस को दिल्ली से नहीं बल्कि स्थानीय स्तर से चौंकाने वाले फैसले लेने होंगे, न केवल फैसले लेने होंगे बल्कि उन पर अमल भी करने होगा। कांग्रेस को अपने पुराने नेताओं को भरोसे में लेकर नए चेहरों को जमीनी स्तर से मौका देना होगा। चूंकि आजादी के समय से ही लोकतांत्रिक भारतीय राजनीति पर परिवारवाद के साथ साथ वर्गवाद जातिवाद और धार्मिकवाद का प्रभाव रहा है। तब उसे भी नकारा नहीं जा सकता है। कांग्रेस को सियासी स्तर के साथ सामाजिक स्तर पर संगठनात्मक शक्ति पैदा करनी चाहिए और सबसे बड़ी बात उसे फैसले के लिए स्वतंत्र भी होना चाहिए। तभी  राजनैतिक के साथ सहयोगी संगठन में भरोसे के जरिए कांग्रेस में लोगों का जुड़ाव होगा।   

कम सीटों पर चुनाव लड़ना कांग्रेस के भविष्य के लिए पर्याप्त  नहीं है, कांग्रेस को इस बात पर मंथन करना चाहिए कि सियासी कुर्सियों से हरी भरी कांग्रेस धीरे धीरे कैसे सियासत से फिसलती गई। कांग्रेस को आगामी चुनावों और सियासत पाने की इच्छा से दूर  भविष्यगामी और सियासत की लंबी पारी खेलने पर  गौर करना चाहिए। उसे अपने बीते समय में जाकर इस बात पर मंथन करना चाहिए कि उसकी पंरपरागत वोट उससे कैसे पिछड़ गया। विशेषतौर पर उन राज्यों में जहां क्षेत्रीय राजनीति हावी होती चली गई। यदि कांग्रेस ऐसे राज्यों में चुनाव नहीं लड़ती तो कांग्रेस के लिए ये हमेशा हमेशा के लिए हानिकारक हो सकता है क्योंकि कांग्रेस अपने उन वोटरों को खो देगी जो अभी उसके हैं। इससे ज्यादा उचित होगा कांग्रेस उन मुद्दों का समाधान खोजे जिनकी वजह से ये क्षेत्रीय दल पनपे।  

प्रियंका का "महिला मंत्र"

कांग्रेस महासचिव प्रियंका गाँधी का यूपी चुनावी महिला मंत्र को आज भले ही जनता ने नकार दिया है लेकिन राजनीति की भागीदारी की नीति से नहीं नकारा जा सकता है। गाँधी के इस मूल मंत्र को देश की आधी आबादी जो अभी सियासत से दूर है भले ही न समझ पायी हो लेकिन आने वाले समय में जब वो अपने हक अधिकार और भागीदारी को जानेगी तब उन्हें प्रियंका गाँधी का मूल मंत्र याद आएगा, क्योंकि देश की आजादी के सत्तर साल बाद भी हर राजनैतिक दल और कानूनी भवनों, सदनों और कार्यालयों में महिलाओं का हिस्सा पुरूषों की अपेक्षा लगभग नगण्य है। महिलाएं उस दिन अपने वोट की अहमियत समझ पाएंगी जब उन्हें अपने वोट की शक्ति का एहसास होगा । और बेलन, घर और परिवार चलाने वाली ये नारी शक्ति सियासी गद्दी पर बैठकर देश चलाएंगी। कांग्रेस को जरूरत है ऐसे दूरगामी निर्णयों लेने और उन पर अमल करने की। 

पार्टी नेताओं की राय

भास्कर हिंदी संवाददाता आनंद जोनवार ने मुरैना कांग्रेस विधायक राकेश मावई से पीके के कम सीटों पर चुनाव लड़ने के फॉर्मूले पर बात की, इस संबंध में विधायक मावई ने पीके के कम सीटों पर चुनाव लड़ने के मंत्र को सिरे से खारिज दिया, विधायक का कहना है कि कांग्रेस देश की सबसे पुरानी पार्टी है, उसे सभी सीटों पर पूरी ताकत और नई रणनीति से चुनाव लड़ना चाहिए। विधायक ने इस संदर्भ में आगे कहा कि पार्टी को हर स्तर पर फोकस करना चाहिए। विधायक मावई  से दूसरा सवाल  देश की आधी आबादी यानि महिलाओं की भागीदारी को लेकर पूछा गया,इस सवाल के जवाब में विधायक मावई ने प्रियंका गांधी के महिला मंत्र को सही ठहराया और कहा राजनीति में महिलाओं को अधिक से अधिक मौका देना  देश  भविष्य के साथ साथ कांग्रेस के लिए उचित है। 

Created On :   17 April 2022 4:54 PM IST

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