भाजपा की 2023 की तैयारी, चंबल के सियासी जातीय गणित को हल करने में जुटे दिग्गज , कांग्रेस किस चेहरे से करेगी सिंधिया की भरपाई
- कांग्रेस की मजबूरी बन सकती है मुसीबत
डिजिटल डेस्क, भोपाल, आनंद जोनवार। करीब डेढ़ साल बाद मध्यप्रदेश में होने वाले विधानसभा चुनावों में उत्तरप्रदेश चुनावों की रणनीति नजर आने की उम्मीद है। चुनावों को लेकर बीजेपी ने अपनी बिसात बिछाना शुरू कर दी है, जबकि अन्य दल अभी चुनावी हार के मंथन मैथ का विश्लेषण कर रहे हैं। बीजेपी के हाल ही के कार्यक्रमों को देखें तो उसके ज्यादातर प्रोग्रामों में चुनावों की प्लानिंग साफ दिखाई दे रही है।
यूपी चुनावों के मुद्दे जिन्हें लेकर बीजेपी चुनावी मैदान में उतरने वाली है उनमें सबसे प्रमुख बुलडोजर के जरिए सुशासन का नारा, धार्मिक बयानों मंदिरों गलियारों के जरिए ध्रुवीकरण की कोशिश, विशेष पिछड़े वर्ग एससी एसटी वोट को अधिक से अधिक अपने पाले में करना। इसके लिए बीजेपी सरकार ने इन समाज के नेताओं को एक मंच पर लाना शुरू कर दिया है। हाल ही में ग्वालियर में संपन्न हुई एससी वर्ग के नेताओं की बैठक इसी प्लानिंग की ओर इशारा कर रही है। इससे पहले प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी का भोपाल में बिरसा मुंडा जयंती पर आदिवासी गौरव दिवस बनाना इसी चुनावी कड़ी का हिस्सा था। उसके बाद वरिष्ठ बीजेपी नेता व केंद्रीय गृहमंत्री अमित शाह के भोपाल कार्यक्रम में लाखों आदिवासी वोटर इकट्ठे हुए। जंगलवासियों के लिए विशेष कानून बनाकर उनके हितकारी योजना पर अधिक ध्यान केंद्रित किया जा रहा है।
ग्वालियर चंबल इलाके में बीजेपी नेतृत्व के साथ एससी मैथ और मंच
चंबल ग्वालियर इलाके में राजनीतिक नेतृत्व, जिम्मेदारी की बात की जाए तो कांग्रेस से कई गुना आगे बीजेपी है। अकेले मुरैना से बीजेपी पार्टी से तीन सांसद सदन में मौजूद है। प्रदेश के सांगठनिक मुखिया वीडी शर्मा मुरैना से ही आते है। इसके अलावा केंद्रीय कृषि मंत्री नरेंद्र सिंह तोमर का मुरैना से गहरा नाता है। भिंड दतिया सांसद संध्या राय भी मुरैना से आती है। तीनों को ही राष्ट्रीय स्तर का नेता माना जाता है। पूरे मध्यप्रदेश में सांसदों की बात की जाए तो एससी वर्ग की इकलौती महिला सांसद इसी क्षेत्र से है। जिनका इस वर्ग के वोटरों पर काफी प्रभाव हैं।
2018 के विधानसभा चुनावों में बीजेपी को यहां पहले के चुनावों की अपेक्षा काफी नुकसान उठाना पड़ा था। इसके पीछे की वजह 2 अप्रैल के एससी एसटी एट्रोसिटी बदलाव के कारण हुआ दंगा प्रमुख रहा , स्थानीय लोग इसके पीछे तर्क देते है कि दलित वोटों का एक धड़ा बीजेपी को हराने के लिए कांग्रेस में कूद पड़ा और उसने किसी अन्य दलित पार्टी को वोट देने की बजाय कांग्रेस में वोट किया। जिसके चलते इस पूरे इलाके में ज्यादातर सीटों पर कांग्रेस ने जीत हासिल की। लेकिन तत्कालीन समय में कांग्रेस पार्टी में ज्योतिरादित्य सिंधिया की अनदेखी के चलते कांग्रेस के दो दर्जन विधायक बीजेपी में चले गए जिसके चलते कांग्रेस की कमलनाथ सरकार अल्पमत में आ गई।
सिंधिया के बीजेपी में जाने से इस इलाके में एक बार फिर बीजेपी अपनी रणनीति मजबूत करने की फिराक में है। बीजेपी ने ज्योतिरादित्य सिंधिया को केंद्रीय मंत्री बनाने के साथ संगठन में विशेष तवज्जो दिया है ताकि इस इलाके में बीजेपी कांग्रेस के उन वोटरों पर मजबूती से पकड़ बना सकें जो सिंधिया के कांग्रेस में रहते हुए बने थे।
भारतीय जनता पार्टी अनुसूचित जनजाति अध्यक्ष लाल सिंह आर्य भी इसी इलाके से ताल्लुक रखते हैं। बीजेपी की दलित सियासी मंच से साफतौर पर इस बात का अंदाज लगाया जा सकता है कि ग्वालियर चंबल सूबे में बीजेपी दलित वोटरों को लुभावने में जुट गई है। क्योंकि उत्तरप्रदेश के चुनावी नतीजों में इस वर्ग का काफी वोट बीजेपी के पक्ष में आया। मध्यप्रदेश में भी बीजेपी इसी फॉर्मूले पर चलना चाहेगी।
कांग्रेस का सूनापन
बात इलाके में कांग्रेस के नेतृत्व और जिम्मेदारी की कि जाए तो ग्वालियर चंबल से बड़े नेतृत्व का सूनापन है। इलाके में कांग्रेस के खालीपन का चुनावों पर बुरा असर पड़ने की अटकलें लगाई जा रही हैं। हालांकि अभी तक सिंधिया के जाने के बाद से इस सूबे को कांग्रेस ने बड़ी जिम्मेदारी नहीं दी है। जिसका गुस्सा उनकी जनता में साफ तौर पर दिखाई देता है। हाल ही में कांग्रेस प्रदेश अध्यक्ष व पूर्व मुख्यमंत्री कमलनाथ ने एक पद छोड़ने की बात कही है, कयास लगाए जा रहे हैं कि कमलनाथ विधानसभा सदन में नेता प्रतिपक्ष का पद छोड़ सकते है। यदि ऐसा होता है संभावना लगाई जा रही है कि इस पद को चंबल के खाते में डाला जा सकता है। पार्टी नेता प्रतिपक्ष पद लहार से विधायक और वरिष्ठ विधायक डॉ गोविंद सिंह को दे सकती है। वहीं अगर किसी दलित नेता की बात कही जाए तो मध्यप्रदेश में पूर्व में हुए राज्यसभा चुनावों में हार का सामना कर चुके फूल सिंह बरैया को कांग्रेस पार्टी अगले तीन माह बाद होने वाले राज्यसभा चुनावों में प्रत्याशी घोषित कर सकती है, क्योंकि उस समय बीजेपी ने बरैया की हार को एक दलित अपमान के तौर पर प्रचारित किया था। दलित बाहुल्य वोट इलाके से बीजेपी के सामने एससी लीडर पेश करना,कांग्रेस के सामने सबसे बड़ी चुनौती रहेगी। यदि कांग्रेस राज्यसभा में एक दलित चेहरे के तौर बरैया को भेजकर आने वाले विधानसभा चुनावों में अपनी पकड़ मजबूत कर सकती है। बहुमत के आधार पर तीन सीटों पर होने वाले राज्यसभा चुनाव में दो सीट पर बीजेपी और एक सीट पर कांग्रेस की जीत तय है।
Created On :   27 April 2022 2:02 PM IST