विधानसभा चुनाव 2023: राजनीति का हॉट स्पॉट बिलासपुर, कांग्रेस और बीजेपी के लिए मुसीबत बनती है बसपा और जोगी कांग्रेस

राजनीति का हॉट स्पॉट  बिलासपुर, कांग्रेस और बीजेपी के लिए मुसीबत बनती है बसपा   और जोगी कांग्रेस
  • बिलासपुर जिले में 6 विधानसभा सीट
  • हर राजनैतिक दल की नजर रहती है बिलासपुर जिले पर
  • निर्णायक भूमिका में होते है ओबीसी वोटर्स

डिजिटल डेस्क, नई दिल्ली। बिलासपुर जिले में 6 विधानसभा सीट कोटा,तखतपुर,बिल्हा, बिलासपुर,बेलतरा,मस्तुरी सीट है। मस्तुरी सीट एससी के लिए सुरक्षित है। 6 सीटों में से 3 सीटों पर बीजेपी, 2 पर कांग्रेस और एक पर जोगी कांग्रेस है। हर राजनैतिक दल की नजर बिलासपुर जिले पर रहती है। इस संभाग की अहमियत अविभाजित मध्यप्रदेश से रही है. इस संभाग ने कई बड़े राजनेताओं की जमीन तैयार की. स्व. काशीराम, बीआर यादव, राजेन्द्र प्रसाद शुक्ल, अर्जुन सिंह, अजीत जोगी, दिलीप सिंह जूदेव, हीरा सिंह मरकाम जैसे नेताओं के नाम शामिल हैं। बिलासपुर वर्तमान में राजनीति का हॉट स्पॉट बना हुआ है।

बेलतरा विधानसभा सीट

2008 में बीजेपी से बद्रीधर दीवान

2013 में बीजेपी से बद्रीधर दीवान

2018 में बीजेपी से रजनीश सिंह

बेलतरा विधानसभा सीट बिलासपुर शहर से लगी हुई है। बेलतरा सीट 2008 में अस्तित्व में आई थी। सामान्य के लिए सुरक्षित इस सीट पर अब तक बीजेपी ने ही जीत दर्ज की है, इस सीट को बीजेपी का गढ़ माना जाता है। यहां ओबीसी मतदाताओं की संख्या सर्वाधिक है। सीट पर करीब 34 फीसदी ओबीसी और 28 फीसदी एससी वर्ग के वोटर्स है। चुनाव में राजनैतिक दलों को इन वर्गों पर अधिक ध्यान रहता है। साथ ही ये दोनों ही समाज चुनाव में अहम भूमिका निभाते है। इलाकों में साफ सफाई, सड़कों की समस्या के साथ बिजली की समस्या यहां प्रमुख समस्या है। शिक्षा और स्वास्थ्य सेवाओं का भी टोटा है।

कोटा विधानसभा सीट

2003 में कांग्रेस से राजेंद्र शुक्ला

2008 में कांग्रेस से डॉ रेणु जोगी

2013 में कांग्रेस से डॉ रेणु जोगी

2018 में जेसीसी जे से डॉ रेणु जोगी

कोटा विधानसभा सीट सामान्य सीट है। यह सीट कांग्रेस के अभेद किले के रूप में मानी जाती है। लेकिन पिछले चुनाव में यहां से जोगी कांग्रेस ने जीत हासिल की थी। बीजेपी यहां जीत से कोसों दूर है। अनुसूचित जनजाति वर्ग के मतदाताओं की संख्या सर्वाधिक है। आदिवासी बाहुल इलाका होने के कारण यहां एसटी समुदायों का दबदबा है। चुनाव में भी अहम भूमिका निभाते है। इसलिए इस सामान्य सीट आदिवासी समुदाय के नेता भी अपनी दावेदारी करते है। यहां करीब 65 फीसदी आबादी एसटी है।

घने जंगलों, पहाड़ों, छोटे- बड़े नदी नालों से घिरे इस हरे भरे इलाके में आदिवासी और पिछड़े तबके के लोगों की बड़ी आबादी है । रतनपुर, बेलगहना, कोटा, पेंड्रा, और गौरेला ये पांच जगह यहां के सियासी शक्ति केंद्र है। इलाके में मूलभूत सुविधाओं का अभाव है। सड़क, स्वास्थ्य और शिक्षा व्यवस्था जर्जर है।

तखतपुर विधानसभा सीट

2003 में कांग्रेस से बलराम सिंह

2008 में बीजेपी से राजू सिंह

2013 में बीजेपी से राजू सिंह

2018 में कांग्रेस से डॉ रश्मि सिंह

सीट पर ओबीसी और सामान्य वर्ग का दबदबा है।दोनों ही वर्ग के वोटर्स किंगमेकर की भूमिका निभाते है। ओबीसी और क्षत्रिय समाज के मतदाता यहां विनिंग फैक्टर है। पेयजल और बिजली समस्या के साथ साथ इलाके में मूलभूत सुविधाओं का अभाव है। कई गांवों में आज भी सड़क नहीं है।

बिल्हा विधानसभा सीट

2003 में कांग्रेस से सियाराम कौशिक

2008 में बीजेपी से धरमलाल कौशिक

2013 में कांग्रेस से सियाराम कौशिक

2018 में बीजेपी से धरमलाल कौशिक

कभी सवर्णों की सीट कही जाने वाली बिल्हा में अब कुर्मी वोटर ही प्रत्याशियों के किस्मत का फैसला करते हैं। बिल्हा विधानसभा में 45 फीसदी ओबीसी,25 फीसदी एससी और एसटी ,30 फीसदी सवर्ण वोटर्स है। जो चुनावी उम्मीदवार के भाग्य का फैसला करते है। सीट पर जोगी कांग्रेस और बीएसपी नेकांग्रेस और बीजेपी के लिए मुसीबतखड़ी कर दी है।

बोदरी, सिरगिट्टी, पथरिया, सरगांव,तिफरा और बिल्हा। इन छह नगर पंचायतों से मिलकर बनी बिल्हा विधानसभा सीट का भूगोल जितना उलझा हुआ है, उतना ही उलझा हुआ है यहां का सियासी समीकरण। कभी सवर्ण वर्ग के प्रभाव वाली इस सीट पर अब कुर्मी और पिछड़े वर्ग का असर देखा जा सकता है। पिछले कुछ चुनावों के परिणाम भी इसकी तस्दीक करते हैं। इस सीट के बारे में एक धारणा ये भी है कि यहां से विधायक बनने वाला नेता सियासत में ऊंचा मुकाम हासिल करता है। राजनीतिक इतिहास बताता हैं कि इस सीट पर कांग्रेस को मात देना आसान नहीं रहा है। पीने के पानी, अवैध उत्खनन ,सिंचाई व्यवस्था और सरकारी योजनाओं का ठीक तरह से क्रियान्वयन नहीं होना बड़ी समस्या है। बुनियादी सुविधाओं का अभाव है।

बिल्हा विधानसभा सीट का भूगोल जितना उलझा हुआ है, उतना ही यहां का सियासी समीकरण उलझा हुआ है। कभी सवर्ण वर्ग के प्रभाव वाली इस सीट पर अब कुर्मी और पिछड़े वर्ग का असर स्प्ष्ट तौर पर देखा जा सकता है। इस सीट के बारे में एक धारणा यह भी बनी हुई ये भी है कि यहां से विधायक बनने वाला नेता सियासत में ऊंचा मुकाम हासिल करता है। राजनीतिक इतिहास बताता हैं कि इस सीट पर कांग्रेस को मात देना आसान नहीं रहा है।

बिलासपुर विधानसभा सीट

2003 में बीजेपी से अमर अग्रवाल

2008 में बीजेपी से अमर अग्रवाल

2013 में बीजेपी से अमर अग्रवाल

2018 में कांग्रेस से शैलेश पांडेय

बिलासपुर विधानसभा में चुनाव जाति पर टिक कर होता है। जाति की रणनीति ही चुनाव में हार जीत तय करती है। यहां मुस्लिम, ब्राह्णण, एससी और सिंधी व पंजाबी समाज के मतदाता अधिक है। इन पांच वर्गों के पास कुल वोटों का आधा हिस्सा है। ग्रामीण क्षेत्रों में मूलभूत सुविधाओं के साथ ही सड़कों की स्थिति नहीं सुधरी और शासकीय योजनाओं का सही से लाभ लोगों को नहीं मिला। अभी भी कई गांव है जहां बिजली और नाली की समस्या है।

मस्तुरी विधानसभा सीट

2003 में बीजेपी से डॉ कृष्ण मूर्ति बंधी

2008 में बीजेपी से डॉ कृष्ण मूर्ति बंधी

2013 में कांग्रेस से दिलीप लहरिया

2018 में बीजेपी से डॉ कृष्ण मूर्ति बंधी

अनुसूचित जाति के लिए आरक्षित मस्तुरी विधानभा पर कांग्रेस की तुलना में बीजेपी का अधिक कब्जा रहा है। 2013 में यहां से कांग्रेस ने जीत दर्ज की थी ,वहीं 2003,2008 और 2018 में बीजेपी को जीत मिली थी।यहां करीब 70 फीसदी अनुसूचित जाति, 20 फीसदी ओबीसी की आबादी है। क्षेत्र में सड़कों, स्वास्थ्य सुविधआओं की खराब हालात जबकि बेरोजगारी एक प्रमुख समस्या है।

छत्तीसगढ़ का सियासी सफर

1 नवंबर 2000 को भारतीय संविधान के अनुच्छेद 3 के अंतर्गत देश के 26 वें राज्य के रूप में छत्तीसगढ़ राज्य की स्थापना हुई। शांति का टापू कहे जाने वाले और मनखे मनखे एक सामान का संदेश देने वाले छत्तीसगढ़ की सियासी लड़ाई में कई उतार चढ़ाव देखे। छत्तीसगढ़ में 11 लोकसभा सीट है, जिनमें से 4 अनुसूचित जनजाति, 1 अनुसूचित जाति के लिए आरक्षित हैं। विधानसभा सीटों की बात की जाए तो छत्तीसगढ़ में 90 विधानसभा सीट है,इसमें से 39 सीटें आरक्षित है, 29 अनुसूचित जनजाति और 10 अनुसूचित जाति के लिए आरक्षित है, 51 सीट सामान्य है।

प्रथम सरकार के रूप में कांग्रेस ने तीन साल तक राज किया। राज्य के पहले मुख्यमंत्री के रूप में अजीत जोगी मुख्यमंत्री बने। तीन साल तक जोगी ने विधानसभा चुनाव तक सीएम की गग्गी संभाली थी। पहली बार विधानसभा चुनाव हुए और बीजेपी की सरकार बनी। उसके बाद इन 23 सालों में 15 साल बीजेपी की सरकार रहीं। 2003 में 50,2008 में 50 ,2013 में 49 सीटों पर जीत दर्ज कर डेढ़ दशक तक भाजपा का कब्जा रहा। बीजेपी नेता डॉ रमन सिंह का चौथी बार का सीएम बनने का सपना टूट गया। रमन सिंह 2003, 2008 और 2013 के विधानसभा कार्यकाल में सीएम रहें। 2018 में कांग्रेस ने 71 विधानसभा सीटों पर जीत दर्ज कर सरकार बनाई और कांग्रेस का पंद्रह साल का वनवास खत्म हो गया। और एक बार फिर सत्ता से दूर कांग्रेस सियासी गद्दी पर बैठी। कांग्रेस ने भारी बहुमत से जीत हासिल की और सरकार बनाई।

Created On :   18 Sept 2023 7:32 PM IST

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