झाबुआ की विधानसभा सीटों पर जयस बिगाड़ सकती है बीजेपी कांग्रेस का चुनावी गेम

झाबुआ की विधानसभा सीटों पर जयस बिगाड़ सकती है बीजेपी कांग्रेस का चुनावी गेम
BJP can spoil the election game of Congress on Jhabua assembly seats

डिजिटल डेस्क,नई दिल्ली। राजनीति की दृष्टि से देखें तो झाबुआ आदिवासी बाहुल्य इलाका है। झाबुआ जिले में तीन विधानसभा सीट झाबुआ, थांदला औऱ पेटलावद आती है। तीनों सीट अनुसूचित जनजाति के लिए आरक्षित है। तीनों सीटों पर एसटी मतदाताओं का एकतरफा दबदबा है। जयस के आने से बीजेपी और कांग्रेस का गणित गड़बडा गया है। जिले की आधी आबादी गरीबी रेखा से नीचे अपना जीवन यापन करती है। आगामी चुनाव में यहां त्रिकोणीय देखने को मिल सकता है। बीजेपी पेसा कानून,जनजातीय गौरव यात्रा और आदिवासी महापुरूषों की जंयती और चौराहों पर मूर्ति लगाकर एसटी मतदाताओं का साधा जा रहा है। तो वहीं विपक्षी पार्टियां प्रदेश में आदिवासियों पर हो रहे अन्याय अत्याचार को लेकर जनता के बीच पहुंच रही है।

झाबुआ का प्रचाीन नाम जवाईबूआ था। जिसका अर्थ होता था निजी राज्य के बाहर। कई राजवंशों के अधीन रहने के बाद भी यहां के आदिवासियों की अपनी शासन प्रणाली हुआ करती थी। मध्यप्रदेश के झाबुआ,अलीराजपुर, धार और रतलाम जिले, गुजरात के दाहोद, राजस्थान के बांसवाड़ा, महाराष्ट्र के नंदुरबार एक चतुर्भुज बनाते है जो भील जनजाति का घर है। इसे भारत के बहादुर धनुष परूष भी कहा जाता है। सबसे पहले यहां भील जाति के राजाओं का शासन रहा। भील जाति में सबसे पहले बने डामोर जाति बनी।उसके बाद कई उपजातियां बनी। राजा भोज के समय तक भील इस क्षेत्र में राज करते रहे है। भगोरिया पर्व यहां बड़े धूम धाम से मनाया जाता है।

झाबुआ विधानसभा सीट

झाबुआ विधानसभा के चुनाव में नर्मदा पानी, रेलवे लाइन में देरी,रोजगार की किल्लत के चलते पलायन, जिला मुख्यालय पर मेडीकल कॉलेज ना होना, एग्रीकल्चर कालेज का अभाव आदि प्रमुख होंगे।

2019 उपचुनाव में कांग्रेस से कांतिलाल भूरिया

2018 में बीजेपी से जीएस डामोर

2013 में बीजेपी से शांतिलाल बिलवल

2008 में कांग्रेस से जेवियर मेढ़ा

2003 में बीजेपी से पवे सिंह पारगी

1998 में कांग्रेस से स्वरूप बाई

1993 में कांग्रेस से बापू सिंह

थांदला विधानसभा सीट

थांदला विधानसभा में मेघनगर मुख्य रूप से औद्योगिक क्षेत्र है,बड़े उद्योग होने के बाद भी बेरोजगार युवा पलायन को मजबूर होते है क्योंकि स्थानीय लोगों को इन इंडस्ट्रीज में काम नहीं मिलता है। जिस कारण यहां के युवा बेरोजगार हैं। जिसके चलते युवाओं को दूसरे राज्यों में पलायन करना करना पड़ता है। किसान को फसल के उचित दाम, बीज, पानी और बिजली नहीं मिल पाती।

2018 में कांग्रेस से वीर सिंह भूरिया

2013 में निर्दलीय कालू सिंह

2008 में कांग्रेस से वीर सिंह भूरिया

2003 में बीजेपी से कल सिंह

1998 में बीजेपी से ईश्वर रोहाणी

1993 में कांग्रेस से कांतिलाल भूरिया

पेटलावाद विधानसभा सीट

अनुसूचित जनजाति के लिए आरक्षित इस सीट पर एसटी समुदाय के करीब ढा़ई लाख मतदाता है। यहीं सीट पर हार जीत का फैसला करते है। चुनाव में यहां शिक्षा, स्वास्थ्य, और किसान के मुद्दे छाए रहते है,लेकिन बाद में मुद्दे रह जाते है और चुनाव बीत जाता है।

2018 में कांग्रेस से बाल सिंह मेढ़ा

2013 में बीजेपी से निर्मला भूरिया

2008 में कांग्रेस से बाल सिंह मेढ़ा

2003 में बीजेपी से निर्मला भूरिया

1998 में बीजेपी से आंचल सोनकर

1993 में कांग्रेस से निर्मला भूरिया

Created On :   5 Aug 2023 3:29 PM IST

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