राजनीति: इटावा से कांशीराम की जीत पर अखिलेश के दावे को बीएसपी ने बताया भ्रामक, सुधींद्र भदौरिया ने कहा– सपा का नहीं था कोई योगदान
नई दिल्ली, 13 अप्रैल (आईएएनएस)। समाजवादी पार्टी के अध्यक्ष अखिलेश यादव के बयान पर बहुजन समाज पार्टी के विचारक सुधींद्र भदौरिया ने कड़ी प्रतिक्रिया व्यक्त की है। अखिलेश यादव ने हाल ही में दावा किया था कि बीएसपी के संस्थापक कांशीराम ने 1991 में अपनी पहली लोकसभा सीट मुलायम सिंह यादव के समर्थन से जीती थी और इससे पहले वह कोई चुनाव नहीं जीत पाए थे। इस दावे को खारिज करते हुए भदौरिया ने इसे पूरी तरह से तथ्यहीन और भ्रामक बताया।
भदौरिया ने कहा कि अखिलेश यादव उस समय राजनीति में सक्रिय नहीं थे और ना ही उन घटनाओं के प्रत्यक्ष गवाह थे। उन्होंने स्पष्ट किया कि 1991 के लोकसभा चुनाव में कांशीराम इटावा सीट से बहुजन समाज पार्टी के उम्मीदवार के रूप में चुनाव लड़े और जीते। इस जीत में बीएसपी कार्यकर्ताओं का परिश्रम और मायावती की रणनीतिक भूमिका अहम थी। उन्होंने यह भी कहा कि उस चुनाव में समाजवादी पार्टी ने कांशीराम के खिलाफ अपना उम्मीदवार राम सिंह साखी को उतारा था, जबकि भारतीय जनता पार्टी की ओर से लाल सिंह वर्मा मैदान में थे। बीजेपी उम्मीदवार दूसरे स्थान पर रहे, जबकि समाजवादी पार्टी को करीब एक लाख वोट मिले और वह तीसरे स्थान पर रही। भदौरिया ने स्पष्ट किया कि कांशीराम की जीत सपा के समर्थन से नहीं, बल्कि बीएसपी की अपनी ताकत और नेतृत्व की मेहनत का परिणाम थी।
उन्होंने अखिलेश यादव के बयान को झूठा बताते हुए कहा कि इस प्रकार की बयानबाजी से दलित, वंचित और शोषित वर्ग की सहानुभूति हासिल करने की कोशिश की जा रही है। भदौरिया ने कहा कि बहुजन समाज पार्टी, कांशीराम और मायावती के बताए हुए रास्ते पर चलने वाली पार्टी है, और पार्टी के कार्यकर्ता ऐसे झूठे बयानों से प्रभावित नहीं होते।
इसके अलावा, उन्होंने कहा कि बाबा साहेब डॉ. भीमराव अंबेडकर हमारे देश और दुनिया के लिए एक महान निधि हैं, जिन्होंने भारत का संविधान रचा। अखिलेश यादव को यह समझना चाहिए कि ऐसे भ्रामक बयान देकर न तो उन्हें बाबा साहेब का आशीर्वाद मिलेगा और न ही बहुजन समाज के करोड़ों लोगों का समर्थन। उत्तर प्रदेश में बीएसपी ने हर लोकसभा सीट पर अच्छा प्रदर्शन किया है और पार्टी को लगभग 10 प्रतिशत वोट प्राप्त हुए हैं। अंत में भदौरिया ने कहा कि अखिलेश यादव एक जिम्मेदार नेता हैं, इसलिए उन्हें गैर-जिम्मेदाराना बयान देने से बचना चाहिए, क्योंकि इससे न केवल भ्रम फैलता है, बल्कि उनकी राजनीतिक विश्वसनीयता पर भी सवाल उठते हैं।
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Created On :   13 April 2025 5:57 PM IST