RSS के विजयादशमी उत्सव में पहली बार मुख्यअतिथि होगी महिला, संघ के अन्य कार्यक्रमों में पहले भी शामिल हो चुकी है महिलाएं, जानिए संघ कैसे बना दुनिया का सबसे बड़ा स्वयं सेवी संगठन
- आरएसएस की देश भर में वर्तमान में 60 हजार से अधिक शाखाएं चल रही है
डिजिटल डेस्क भोपाल,राजा वर्मा। 5 अक्टूबर को पूरे देश भर में दशहरा पर्व मनाया जाएगा वहीं इसी दिन राष्ट्रीय स्वयं सेवक संघ भी हर साल की तरह विजयदशमी उत्सव मनाएगा। संघ के इस उत्सव पर देश ही नहीं बल्कि पूरी दुनिया की विशेष नजर है जिसकी मुख्य वजह यह है कि संघ के द्वारा पहली बार शस्त्र-पूजन के कार्यक्रम में मुख्य अतिथि के रूप में किसी महिला के आमंत्रित किया गया है। दरअसल विजयदशमी के अवसर पर नागपुर में वार्षिक उत्सव का आयोजन होना है जिसमें पर्वतारोही पद्मश्री संतोष यादव मुख्यअतिथि होंगी।
बता दें संतोष यादव देश ही नहीं बल्कि दुनिया की ऐसी महिला हैं जिनके नाम दो बार माउंट एवरेस्ट फतह करने का रिकार्ड है। उन्होंने साल 1992 और 1993 में माउंट एवरेस्ट में फतह हासिल किया था। इस उपलब्धि के लिए उन्हें साल 2000 में पद्मश्री से सम्मानित किया जा चुका है।
मोहन भागवत करेंगे संबोधित
विजयदशमी उत्सव पर आरएसएस प्रमुख मोहन भागवत शस्त्र पूजन के बाद स्वयंसेवकों को संबोधित करेंगे। भागवत अपने संबोधन में कई महत्वपूर्ण एवं गंभीर मुद्दे पर अपनी बात रख सकते हैं। क्योंकि वह कई बार सामाजिक मामलों की बात मंच से उठाते रहे हैं। कई बार उनके द्वारा उठाए गए मुद्दों ने मीडिया और समाज में नया विमर्श खड़ा किया है। साथ ही स्वयंसेवकों के लिए भी उनका संबोधन अहम रहता है।
संघ के कार्यक्रम में महिलाएं
संघ के विजयदशमी उत्सव में पहली बार कोई महिला मुख्य अतिथि के रूप में शामिल होने वाली हैं। लेकिन लेखक राकेश सिन्हा की एक किताब की मानें तो पहले भी संघ के अन्य कार्यक्रमों में महिलाओं को आमंत्रित किया जा चुका है। डॉ. हेडगेवार महिलाओं की सार्वजनिक भूमिका के प्रशंसक थे। तभी तो संघ की शाखाओं एवं शिविरों में महिला नेताओं को व्याख्यान के लिए आमंत्रित किया जाता था।
अखिल भारतीय महिला परिषद ने संघ के सामाजिक सुधार के दृष्टिकोण का समर्थन किया था। इसकी अध्यक्षा राजकुमारी अमृत कुंवर एवं अन्य सदस्य, जिनमें राज्य विधानसभा की उपसभापति अनसूया बाई काले भी थीं,जो नागपुर के संघ शिविर में 28 दिसंबर, 1937 को आए थे। यह कोई पहली घटना नहीं थी। जब सार्वजनिक जीवन में कार्यरत महिला नेताओं एवं समाजसेवियों को आमंत्रित किया गया था।
कांग्रेस नेता कमलाबाई ने 21 नवंबर, 1938 को कोंकण में संघ की शाखा में अपना भाषण दिया था। इसी प्रकार पार्वतीबाई चिटणवीस 9 दिसंबर, 1934 को संघ की नागपुर शाखा के वार्षिक उत्सव में मुख्य अतिथि थीं। मध्यप्रांत विधानसभा की मनोनीत सदस्या रमाबाई तांबे संघ के प्रशंसकों में शामिल थीं। (डॉ. केशव बलिराम हेडगेवार - लेखक राकेश सिन्हा, पृष्ठ सं. 208)
विजय दशमी उत्सव
विजय दशमी उत्सव संघ के प्रमुख उत्सवों में से एक है। केशव बलिराम हेडगेवार ने 27 सितंबर 1925 को विजयदशमी के दिन ही आरएसएस की स्थापना की थी। तब से हर साल संघ विजय दशमी उत्सव मनाता रहा है।
विजय दशमी उत्सव (शस्त्र पूजन) को लेकर स्वयंसेवक विशेष तैयारी करते हैं। संघ के कार्यकर्ता इस दौरान नियुद्ध,पदविन्यास,घोष और दण्डयुद्ध का प्रदर्शन करते हैं। स्वयंसेवकों के द्वारा इस दिन घोष दल के साथ कदमताल मिलाते हुए संचलन निकाला जाता है। इसके बाद संघ प्रमुख का संबोधन होता है।
संघ की यात्रा
केशव बलिराम हेडगेवार के नेतृत्व में 17 लोगों की मौजूदगी में गठित हुआ संघ अब दुनिया के सबसे बड़े स्वयंसेवी संगठन के रूप में खुद को स्थापित कर चुका है। नागपुर में अखाड़ों के माध्यम से धीरे-धीरे बढ़ते हुए संघ ने वर्तमान में विराट रूप ले चुका है। इस साल विजयदशमी के दिन संघ 97 साल पूरे करेगा और 2025 में संघ 100 साल की यात्रा पूरी कर लेगा।
तीन बार लगा संघ पर प्रतिबंध
संघ ने अपनी लंबी यात्रा में कई उपलब्धियां अर्जित की लेकिन तीन बार प्रतिबंध का भी सामना करना पड़ा। संघ को राष्ट्रपिता महात्मा गांधी की हत्या से जोड़कर देखा गया और दूसरे सरसंघचालक गुरू गोलवलकर को बंदी बनाया गया। लेकिन 18 महीने बाद प्रतिबंध हटा लिया गया। दूसरी बार आपातकाल के समय 1975 से 1977 तक आरएसएस पर प्रतिबंध लगाया गया। तीसरी बार 1992 के दिसंबर में जब 6 दिसंबर को बाबरी मस्जिद गिरा दी गई थी।
पं. जवाहर लाल नेहरू ने भेजा था संघ को आमंत्रण
राष्ट्रीय स्वंय सेवक संघ की पहचान धीरे-धीरे राष्ट्रवादी और अनुशासित संगठन के रूप में हुई। साल 1962 में जब चीन द्वारा धोखे से किए गए हमले से पूरा देश हैरान था उस समय संघ के स्वंयसेवकों ने सरहदी इलाकों में रसद पंहुचाने में मदद की थी। देश भर से संघ के स्वयंसेवक जिस उत्साह से सीमा पर पहुंचे, उसे पूरे देश ने देखा और सराहा। संघ के इसी अनुशासित कार्य से प्रभावित होकर प्रधानमंत्री नेहरू ने साल 1963 में गणतंत्र दिवस की परेड में राष्ट्रीय स्वंयसेवक संघ को बुलाया था। आमतौर पर परेड करने वालों को आज भी 1 महीनें तक तैयारी करनी होती है लेकिन मात्र दो दिन पहले मिले निमंत्रण पर भी करीब 3000 स्वयंसेवक गणवेश में अपने बैंड दल के साथ उपस्थित हुए थे। साल 1965 में पाकिस्तान के साथ हुए युद्ध के दौरान भी संघ ने दिल्ली में ट्रेफिक व्यवस्था सुधारने में मदद की थी।
संघ के बुलावे पर पूर्व पीएम इंद्रिरा गांधी पहुंची थी कन्याकुमारी
पूर्व प्रधानमंत्री इंदिरा गांधी 1977 में आरएसएस के न्योते पर कन्याकुमारी स्थित विवेकानंद रॉक मेमोरियल के उद्घाटन के लिए पहुंची थीं। वे संघ के वरिष्ठ कार्यकर्ता एकनाथ रानाडे के बुलावे पर इस कार्यक्रम में गई थीं।
संघ का विस्तार
राष्ट्रीय स्वयंसेवक संघ ने अपने गठन के बाद से तेजी से विस्तार किया है। जिसमें संघ के प्रचारक और कार्यकर्ताओं ने अहम भूमिका निभाई। संघ देश ही नहीं दुनिया के करीब 40 देशों में कार्य कर रहा है।
देश में 60 हजार से अधिक शाखाएं
आरएसएस की देश भर में वर्तमान में 60 हजार से अधिक शाखाएं चल रही है। इसके अलावा 20 हजार से अधिक साप्ताहिक मिलन और 8 हजार के करीब संघ मंडली भी हैं।
Created On :   4 Oct 2022 9:13 PM IST