World Red Cross Day 2019: आपात स्थिति में हमेशा तत्पर रहती है संस्था, ऐसे हुई शुरुआत
डिजिटल डेस्क,नई दिल्ली। आज वर्ल्ड रेडक्रॉस डे है। इंटरनेशनल कमेटी ऑफ द रेड क्रॉस (आईसीआरसी) की स्थापना 1863 में हुई थी। रेडक्रॉस एक ऐसी संस्था है, जो युद्ध में घायल हुए लोगों और आकस्मिक दुघर्टनाओं व आपातकाल की स्थिति में मदद करती है। इसके साथ यह लोगों को स्वास्थ के प्रति जागरूक रखने में भी मदद करती है। इसका मुख्यालय स्विटजरलैंड के जिनेवा में है। आईसीआरसी को दुनिया भर की सरकारों के अलावा नेशनल रेड क्रॉस और रेड क्रिसेंट सोसायटीज की ओर से फंडिंग मिलती है। वर्ल्ड रेडक्रॉस डे 8 मई को ही इसलिए मनाया जाता है, क्योंकि इस दिन सन् 1828 में जनक जॉन हेनरी डिनैंट का जन्म हुआ था। उनके जन्मदिन को ही विश्व रेडक्रॉस दिवस के तौर पर मनाया जाता है। हर साल इस दिन को मनाने के लिए एक थीम का आयोजन किया जाता है। इस साल वर्ल्ड रेडक्रॉस डे की थीम है "#लव"।
ऐसे हुई इस संस्था की शुरुआत
जिनेवा पब्लिक वेल्फेयर सोसायटी ने फरवरी 1863 में एक कमेटी का गठन किया। इस कमेटी में स्विटजरलैंड के पांच नागरिक शामिल थे। कमेटी को हेनरी डिनैंट के सुझावों पर गौर करना था। इन पांचों ने अपना पूरा जीवन रेड क्रॉस कार्यों को समर्पित कर दिया। इस कमेटी को पहले International Committee for Relief to the Wounded के नाम से जाना गया। बाद में इसका नाम इंटरनेशनल कमेटी ऑफ द रेड क्रॉस हो गया। अक्टूबर 1863 में कमेटी की ओर से एक अंतरराष्ट्रीय सम्मेलन का आयोजन किया गया। इस सम्मेलन में 16 राष्ट्रों के प्रतिनिधी शामिल हुए। इस सम्मेलन में कई उपयुक्त प्रस्तावों और सिद्धांतों को अपनाया गया। साथ ही इसे एक ऐसी कमेटी बनाने की अपील की गई, जो युद्ध और आपातकाल में लोगों की मौत कर सके। इसके अलावा कमेटी के अंतरराष्ट्रीय प्रतीक चिह्न का भी चयन किया गया।
ऐसे आया इस कमेटी को बनाने का आइडिया
जॉन हेनरी डिनैंट स्विटजरलैंड के एक उद्यमी थे। वे 1859 में वह फ्रांस के सम्राट नेपोलियन तृतीय की तलाश में गए थे। वे किसी वजह से नेपोलियन से नहीं मिल सके। इसके बाद वे इटली गए। वहां उन्होंने सोल्फेरिनो का युद्ध देखा। इस युद्ध में 40,000 से ज्यादा सैनिक मारे गए और घायल हुए। वहां घायल सैनिकों की देखभाल के लिए किसी भी तरह की चिकित्सा सेवा उपलब्ध नहीं थी। तब डिनैंट ने स्वंयसेवकों के एक समूह को संगठित किया। उन लोगों ने घायलों तक खाना और पानी पहुंचाया। घायलों का उपचार किया और उनके परिवार के लोगों को पत्र लिखा।
घटना के करीब 3 साल बाद डिनैंट ने अपने इस अनुभव को एक किताब की शक्ल दी और सोल्फेरिनो के युद्ध के बारे में विस्तार से बताया। किताब का नाम था "अ मेमरी ऑफ सोल्फेरिनो" रखा गया। किताब में उन्होंने बताया कि कैसे युद्ध में अपने अंगों को गंवाने वाले लोग कराह रहे थे। उनको मरने के लिए छोड़ दिया गया था। इस किताब के अंत में उन्होंने उन्होंने एक स्थायी अंतरराष्ट्रीय सोसायटी की स्थापना का सुझाव दिया था। ऐसी सोसायटी जो युद्ध में घायल लोगों का इलाज कर सके। ऐसी सोसायटी जो हर नागरिकता के लोगों के लिए काम करे। उनके इस सुझाव के एक साल बाद इस पर अमल कर लिया गया। हेनरी डिनैंट द्वारा किए गए मानव कार्यो के लिए उन्हें साल 1901 में पहला नोबेल शांति पुरस्कार भी मिला।
Created On :   8 May 2019 2:19 PM IST